तिनसुकिया: भारत अब दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. यह एक विश्व नेता और एक ताकत के रूप में उभर रहा है. हालांकि, अगर हम घड़ी की सूई को पलटें और आज़ादी से पहले के युग में जाएं, तो देश सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहा था. लेकिन साथ ही, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत की विकास यात्रा भारत में ब्रिटिश राज के दौरान शुरू हुई थी.
आधुनिक भारत की नींव अंग्रेजों ने ही रखी थी. चाहे वे स्मारक हों, इमारतें हों, संस्थान हों या सड़कें हों. वर्तमान समय में, यदि कोई पूरे देश का दौरा करता है, तो विकास कार्यों की विरासत स्पष्ट होती है. लेकिन शायद औपनिवेशिक शासकों द्वारा हमारे देश को दिए गए सबसे बड़े उपहारों में से एक इसकी रेलवे कनेक्टिविटी है, जो अब दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में बदल गई है.
आज हम आपको भारतीय रेलवे के 135 साल पुराने इतिहास से रूबरू कराएंगे और आपको पूर्वोत्तर क्षेत्र के सबसे पुराने, बल्कि देश के सबसे पुराने रेलवे स्टेशनों में से एक से परिचित कराएंगे. क्या आप जानते हैं कि इस क्षेत्र में 18वीं शताब्दी के दौरान स्थापित पहला रेलवे स्टेशन कौन सा था? ख़ैर, आपमें से बहुत से लोग इसका उत्तर नहीं दे पाएंगे. अंग्रेजों द्वारा बनाया गया पूर्वोत्तर का पहला रेलवे स्टेशन, जो कभी यात्रियों से खचाखच भरा रहता था, अब किस हालत में है? आइए एक नजर डालते हैं असम के पहले रेलवे स्टेशन पर...
स्टेशन की कहानी 1888 की है. तब तक अंग्रेज असम में चाय की खेती शुरू कर चुके थे. तत्कालीन अविभाजित डिब्रूगढ़ जिले में कई चाय बागान स्थापित किए गए थे और दुनिया के बाकी हिस्सों में चाय का निर्यात करने के लिए एक प्रभावी परिवहन नेटवर्क की आवश्यकता थी. इसलिए चाय के व्यापार को बढ़ाने के लिए अंग्रेजों ने असम और पूर्वोत्तर का पहला रेलवे स्टेशन तिनसुकिया से 60 किलोमीटर दूर सदिया क्षेत्र में डांगरी बनाया.
डांगरी के अलावा, रेल नेटवर्क के माध्यम से राज्य से चाय के निर्यात की सुविधा के लिए बाद के समय में सादिया, सैखोवा, तलप, डूम डूमा जैसे कुछ अन्य स्टेशन भी बनाए गए थे. जयमती, गदापानी, लाचित बोरफुकन जैसे प्रतिष्ठित भाप इंजनों का उपयोग सामान ले जाने के लिए किया जाता था और साथ ही सैकड़ों यात्री प्रतिदिन डिब्रूगढ़ से सदिया तक यात्रा करते थे. हालांकि उस समय रेलगाड़ियां मीटर गेज होती थीं. तीन से चार इंजन होते थे, लेकिन अधिकतर रेलगाड़ियां मालवाहक होती थीं.