पटनाः1857 के पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (Indian Freedom Movement 1857) के महानायक बाबू वीर कुंवर सिंह की कृति आज भी लोगों के स्मृतियों में है. अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले वीर कुंवर सिंह अपनी वीरता के लिए जाने जाते हैं. 80 साल की उम्र में भी उन्होंने जो हिम्मत और साहस का परिचय दिया, वह इतिहास के पन्नों में दर्ज है. बाबू वीर कुंवर सिंह (Freedom Fighter Babu Veer Kunwar Singh) के अंदर नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी. आरा के जगदीशपुर में 17 नवंबर 1777 को जन्मे वीर कुंवर सिंह को इतिहास में 80 साल की उम्र में दुश्मनों से लड़ने और जीत हासिल करने के जज्बे के लिए जाना जाता है.
अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंकाः अंग्रेजों के खिलाफ देश की आजादी के लिए 1857 की लड़ाई को स्वतंत्रता का पहला आंदोलन भी कहा जाता है. मंगल पांडे ने जिस चिंगारी को भड़काया. वह पूरे देश में विप्लव बन गई और ये राष्ट्रव्यापी आंदोलन आग की तरह फैल गया. हिंदू और मुसलमानों के बीच अभूतपूर्व एकता आंदोलन के दौरान देखने को मिली. अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू हो गया. बिहार के दानापुर रेजिमेंट बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत का बिगुल फूंक दिया. देखते ही देखते मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आंदोलन की आग भड़क गई.
27 अप्रैल 1857 को भोजपुर पर किया कब्जाः ऐसे हालात में बाबू वीर कुंवर सिंह भी खुद को नहीं रोक पाए और खुद सेनापति बनकर भारतीय सैनिकों के साथ मैदान-ए-जंग में आ गए. बाबू वीर कुंवर सिंह की वीरता की पहली झलक तब मिली, जब 27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों और भोजपुर के जवानों और अन्य साथियों के साथ मिलकर आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा जमा लिया. अंग्रेजों की लाख कोशिश के बावजूद भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा. वीर कुंवर सिंह ने आरा जेल को तोड़कर कैदियों को मुक्त कराया और खजाने पर कब्जा जमाया. इतनी ही नहीं उन्होंने आजमगढ़ पर भी कब्जा किया. लखनऊ से भागे कई क्रांतिकारी भी कुंवर सिंह की सेना में आ मिले थे.