नई दिल्ली : हिन्दी भाषा के गजलकार दुष्यंत कुमार त्यागी समकालीन हिन्दी कविता और गजल के ऐसे सशक्त हस्ताक्षर बनकर उभरे, जिनके गीत व गज़लें आम आदमी की जुबान पर छा गयीं. हालांकि उन्होंने कविता व गज़लों के साथ साथ गीति नाट्य व उपन्यास जैसी कई साहित्यिक विधाओं पर लिखा है, लेकिन उनकी असली पहचान जनता की आवाज उठाने वाली गज़लों ने बनायी. इन्होंने ही हिन्दी गज़ल को एक नया आयाम देते हुए महबूबा के नखशिख वर्णन व मधुशाला की दुनिया से बाहर निकाल कर लोगों की आवाज बना दिया. हर आंदोलन व हक की लड़ाई बिना इनके शेर व कविता के पूरी नहीं होती है. 1 सितंबर को हिन्दी भाषा के गजलकार दुष्यंत कुमार को उनके जन्मदिन (Dushyant Kumar Birthday) पर याद कर रहे हैं.
दुष्यंत कुमार ने हिन्दी गज़ल को आम आदमी की संवेदना से जोड़ते हुए अपने शब्दों में ऐसे पिरोया कि उनकी हर गज़ल आम आदमी की गज़ल बन गयी है. उसमें चित्रित बातें आम आदमी के संघर्ष, आम आदमी के जीवन आदर्श, राजनैतिक विडम्बनाओं और विसंगतियों को आइने की तरह दिखाने लगीं. इतना ही नहीं उन्होंने सराकारी और राजनीतिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार और तंत्र की संवेदनहीनता को अपना स्वर बनाया और मुखर होकर इस पर अपनी लेखनी चलायी.
दुष्यंत कुमार ने जब साहित्य की दुनिया में अपना कदम रखा तो उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था. वहीं हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था. साथ ही उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि अपनी लेखनी चला रहे थे.
दुष्यंत कुमार का जीवन परिचय
दुष्यंत कुमार का पूरा नाम वैसे तो दुष्यंत कुमार था. उनका जन्म 1 सितम्बर सन् 1933 में बिजनौर जनपद की नजीबाबाद के ग्राम राजपुर नवादा के एक सम्पन्न त्यागी परिवार में हुआ था. उनके पिता श्री भगवतसहाय तथा माता का नाम श्रीमती राजकिशोरी था. इनकी प्रारम्भिक शिक्षा बिजनौर जिले के नहटौर से हुयी. वहीं हाई स्कूल की परीक्षा एनएसएम इन्टर कॉलेज चन्दौसी से उत्तीर्ण की. इसी दौरान उनका विवाह सन् 1949 में सहारनपुर जनपद निवासी श्री सूर्यभानु की सुपुत्री राजेश्वरी से हो गया. इसके बाद वह स्नातक व परास्नातक की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद (अब प्रयागराज) चले गए. जहां पर उन्होंने सन् 1954 में हिन्दी में एमए की उपाधि प्राप्त की.
बताया जाता है कि इसी दौरान वह डॉ. धीरेन्द्र वर्मा और डॉ. रामकुमार वर्मा जैसे साहित्यकारों के सानिध्य में आए. साथ ही कथाकार कमलेश्वर और मार्कण्डेय तथा कवि मित्रों धर्मवीर भारती, विजय देवनारायण साही आदि के संपर्क से साहित्यिक अभिरुचि को निखारने का काम किया। इनमें कमलेश्वर उनके अभिन्न मित्र थे और बाद में वह उनके समधी बन गए. दुष्यंत के बेटे आलोक त्यागी की शादी कमलेश्वर की बेटी से हुई है.
इसके उपरांत वह सन् 1958 में आकाशवाणी दिल्ली में पटकथा लेखक के रूप में कार्य करना शुरू किया। कुछ दिनों के बाद वह सहायक निदेशक के पद पर पोदन्नत सन् 1960 में भोपाल आ गये. अंत में वह अपनी साहित्य साधना स्थली भोपाल में 30 दिसम्बर 1975 को मात्र 42 वर्ष की अल्पायु में साहित्य जगत् से विदा हो गये.
1975 में उनका प्रसिद्ध ग़ज़ल संग्रह 'साये में धूप' प्रकाशित हुआ था. इसमें लिखी गज़लों को इतनी लोकप्रियता हासिल हुई कि उसके कई शेर कहावतों और मुहावरों के तौर पर लोगों द्वारा कहे जाने लगे. 52 ग़ज़लों की इस लघुपुस्तिका को युवामन की गीता कहा जाने लगा.
जन्मतिथि को लेकर मतभेद
दुष्यंत कुमार के पुत्र आलोक त्यागी का कहना है कि स्कूली दस्तावेजों में पिता जी की जन्मतिथि 1 सितंबर 1933 ही दर्ज है. लेकिन, उनका जन्म 27 सितंबर 1931 को ही हुआ था. यह बात उनकी घर में मौजूद जन्मकुंडली से भी पता चली थी. आलोक ने यह भी बताया कि उनकी मां राजेश्वरी देवी कहा करती थीं कि 27 तारीख आते-आते वेतन खत्म हो जाया करता था. लिहाजा, जन्मदिन मनाने में कंजूसी आड़े आया करती थी. इसीलिए मस्तमौला दुष्यंत ने कहा था कि जन्मदिन की खुशियां तो पहली तारीख को मिले वेतन पर ही मनाई जा सकती हैं. इसलिए दुष्यंत अपना जन्मदिन 1 सितंबर को ही मनाया करते थे.
बदलते रहे उपनाम
दुष्यंत कुमार ही पहले गजलकार थे, जिन्होंने आम आदमी की आवाज को अपनी गजल में जगह देकर अपनी हनक बनायी. अपनी नहटौर में पढ़ाई के दौरान दुष्यंत ने अपनी पहली कविता 'परदेशी' उपनाम से लिखी. लेकिन जब वह आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद पहुंचे तो 'परदेशी' उपनाम हटाकर 'विकल' लगा लिया. उन्होंने कभी भी अपने नाम में 'त्यागी' नहीं लिखा. बाद में 'विकल' तकल्लुस भी हटाकर केवल दुष्यंत कुमार के नाम से लिखने लगे.