नई दिल्ली :देश के दक्षिणी भाग के अंतिम छोर पर स्थित तमिलनाडु के एक छोटे से गांव से राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचने वाले डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के परिवार के ज्यादातर लोग सिविल सर्विस या विदेशों में रहने लगे हैं. जो लोग सिविल सर्विस में गए वह सेक्रेटरी और अंडर सेक्रेटरी तक का सफर पूरा किया. फिलहाल जीवित लोगों में से राधाकृष्णन की एक बेटी बेंगलुरु और दूसरी अमेरिका में रहती हैं. वहीं जबकि बहू इंदिरा गोपाल चेन्नई के उसी घर में रहती हैं, जहां डॉ. राधाकृष्णन का अंतिम समय में रहा करते थे. उसी घर में इंदिरा गोपाल अकेली रह रही हैं. वह बहुत बूढ़ी हो चुकी हैं और बिस्तर पर पड़ी रहती हैं. उनकी देखभाल करने वाले उनकी देखभाल करते हैं. उसके रिश्तेदार हर महीने बैंगलोर से उसके पास आते जाते रहते हैं. अब वे लोग इस घर को स्मारक में बदलने की तैयारी कर रहे हैं.
आज 5 सितंबर (5 September) है. आज के दिन शिक्षक दिवस 2022 (Teachers Day 2022) मनाया जाता है. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन ( Dr Sarvepalli Radhakrishnan Birthday) मनाकर देशभर के शिक्षकों को सम्मान देने की कोशिश करते हैं. हमारे पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति राधाकृष्णन पेशे से टीचर थे और चाहते थे कि अच्छी बुद्धि के बुद्धिमान लोगों को शिक्षा जगत में जाना चाहिए. तभी वह अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध पुजारी की जगह अध्यापक बनने का फैसला किया और धीरे धीरे देश के सर्वोच्च पर आसीन होने के साथ साथ देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न भी हासिल किया.
शिक्षक दिवस 2022 के अवसर पर आज ईटीवी भारत उनके घर परिवार के बारे में जानकारी देने की कोशिश कर रहा है. बताया जाता है कि उनके पास पांच बेटियां व एक बेटा था. डॉ. राधाकृष्णन की इच्छा थी कि परिवार के लोग अपनी मेहनत व काबिलियत के दम पर अपना मुकाम बनाएं और किसी और काम के लिए लोग उनके नाम का सहारा न लें. इसीलिए परिवार के लोग सुर्खियों में बने रहने से बचते रहे.
परिवार में कुल चार शिक्षक (Teachers in Dr Sarvepalli Radhakrishnan Family)
आपको बता दें कि उनके परिवार में कुल चार शिक्षक हुए. पहले खुद राधाकृष्णन और फिर राधाकृष्णन के बेटे सर्वपल्ली गोपाल पिता के बाद परिवार में दूसरे शिक्षक बनने का गौरव हासिल किए. वह ऑक्सफोर्ड और जेएनयू में पढ़ा चुके हैं. 1950 में वो विदेश मंत्रालय में डायरेक्टर बने और फिर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ भी काम किया. 1960 में वह ऑक्सफोर्ड चले गए और वहां इंडियन हिस्ट्री पढ़ाने लगे. जब इंदिरा गांधी ने जेएनयू की स्थापना की तो एस. गोपाल सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज के एचओडी बनकर भारत आए. इसके साथ ही 1970 में वे नेशनल बुक ट्रस्ट यानी एनबीटी के चेयरमैन भी बनाए गए. अपने काम के लिए उन्हें पद्मविभूषण जैसे सम्मान से भी सम्मानित किया गया. वह अपने पिता सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बायोग्राफी भी लिख चुके हैं.
बताया जाता है कि सर्वपल्ली गोपाल की पांचों बहनें हाउस वाइफ रही हैं. गोपाल की 2002 में मृत्यु हो चुकी है. उनकी तीन बहनों की भी मृत्यु हो चुकी है. फिलहाल जीवित दो बहनों में से एक बेंगलुरु और दूसरी अमेरिका में रहतीं हैं. गोपाल के बच्चे नहीं हैं. उनकी पत्नी और राधाकृष्णन की बहू इंदिरा गोपाल चेन्नई के उसी घर में रहती हैं, जहां राधाकृष्णन अपने अंतिम वक्त में रहा करते थे.
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