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भाजपा संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति की क्यों हो रही चर्चा, कब मोदी बने थे सदस्य, जानें - gadkari and shivraj out from parliamentary body bjp

जेपी नड्डा 2020 में भाजपा के अध्यक्ष बने थे. तभी से संसदीय बोर्ड के गठन को लेकर अटकलें लगने लगीं थीं. पिछली बार 2014 में भाजपा संसदीय बोर्ड का गठन हुआ था, जब अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष बने थे. केंद्रीय चुनाव समिति और संसदीय बोर्ड पार्टी के लिए कितना अहम है, कितनी अधिक शक्ति इनके पास होती है, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर.

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Published : Aug 17, 2022, 5:56 PM IST

नई दिल्ली : आठ साल बाद भारतीय जनता पार्टी ने संसदीय बोर्ड का गठन किया है. आपको बता दें कि पिछली बार भाजपा संसदीय बोर्ड का गठन 2014 में हुआ था. तब अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष बने थे, उसके बाद उन्होंने अपनी टीम का ऐलान किया था. उन्होंने संसदीय बोर्ड में नरेंद्र मोदी, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू और थावरचंद गहलोत जैसे कद्दावर नेताओं को जगह दी थी. अन्य नेताओं में शिवराज सिंह चौहान और बीएल संतोष भी शामिल थे. बाद में थावरचंद गहलोत को राज्यपाल बना दिया गया. वेंकैया नायडू उप राष्ट्रपति बन गए. जेटली और सुषमा स्वराज का निधन हो गया. ये सभी जगह तब से खाली थी.

संसदीय बोर्ड का काम- पार्टी की यह ताकतवर इकाई होती है, जहां सभी महत्वपूर्ण फैसले लिए जाते हैं. इसका गठन राष्ट्रीय कार्यकारिणी करती है. यह संसदीय गतिविधियों के संचालन और समन्वय का काम करती है. मंत्रिमंडल गठन (राज्य हो या केंद्र) पर यह मार्गदर्शन का काम करती है. अनुशासन भंग होने पर बोर्ड अंतिम फैसला लेता है. इसमें कुल ग्यारह सदस्य होते हैं. पार्टी अध्यक्ष संसदीय बोर्ड का प्रमुख होता है. संसद में पार्टी का नेता भी इसका सदस्य होता है. संसदीय बोर्ड का सचिव पार्टी के महामंत्रियों में से किसी एक को बनाया जाता है.

अमित शाह के बाद पार्टी की कमान जेपी नड्डा को दी गई. तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि संसदीय बोर्ड का गठन कब होगा और किन-किन को इसमें जगह मिलेगी. और अब जाकर संसदीय बोर्ड का गठन किया गया है. जानकारी के लिए बता दें कि इसमें से शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी को जगह नहीं मिली है. चौहान के बारे में कहा गया है कि क्योंकि किसी भी मुख्यमंत्री को संसदीय बोर्ड में जगह नहीं दी गई है, इसलिए उनका नाम भी हटा दिया गया है. जिनका नाम जुड़ा है, उनमें बीएस येदियुरप्पा, सर्बानंद सोनोवाल, के लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव और सत्यनारायण जटिया प्रमुख हैं. ये सभी नए चेहरे हैं. कर्नाटक में पार्टी की स्थिति बेहतर हो सके, इसलिए पार्टी ने येदियुरप्पा को जगह दी है. उन्हें सीएम पद से हटा दिया गया था. पार्टी नहीं चाहती है कि उनकी लोकप्रियता और समर्थन को यों ही जानें दें. पार्टी में यह भी संदेश जा रहा था कि उन्हें दरकिनार करने की कोशिश की जा रही है.

संसदीय बोर्ड की तरह ही केंद्रीय चुनाव समिति होती है. इस समिति में 15 सदस्यों को पार्टी ने जोड़ा है. पार्टी अध्यक्ष ही इस समिति के अध्यक्ष होते हैं. संसदीय बोर्ड के सभी सदस्य इसके सदस्य होते हैं. महिला मोर्चा की अध्यक्ष पदेन सदस्य होती हैं. संसद और विधानमंडलों के चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नामों पर अंतिम मुहर चुनाव समिति ही लगाती है. किस तरह से चुनाव अभियान की शुरुआत होगी, किस तरह से प्रचार होगा, किसको टिकट मिलेगा, सभी फैसले चुनाव समिति ही करती है. पार्टी ने इस बार इस समिति में देवेंद्र फडणवीस, ओम माथुर और वनथी श्रीनिवास को सदस्य बनाया है. पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष चुनाव समिति में भी सचिव के तौर पर शामिल किए गए हैं.

भाजपा संसदीय दल के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य- पिछले दो सालों में शायद ही कभी संसदीय बोर्ड की बैठक हुई है. एक या दो बार इसकी बैठक हुई. इस बीच पार्टी ने कई मुख्यमंत्री भी बदले. उत्तराखंड में दो बार सीएम बदला गया. गुजरात और असम में सीएम को बदला गया. शिवराज सिंह चौहान दोबारा से सीएम बने. विधानसभा चुनाव के बाद यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में सीएम को बरकरार रखा गया. यानी इतने सारे महत्वपूर्ण फैसले लिए गए, लेकिन पार्टी की संसदीय बोर्ड ने कोई भी फैसला नहीं लिया.

एलके आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता को 2014 में ही मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया गया था. शाह ने जब अपनी टीम बनाई तो जिन नेताओं को जगह मिली, उनमें जेटली और सुषमा स्वराज सबसे मुखर नेताओं में से एक थे. लेकिन उनके निधन के बाद संसदीय बोर्ड का महत्व घटने लगा. मीडिया रिपोर्ट की मानें तो कुछ मौकों पर नितिन गडकरी जरूर आवाज उठाते रहे हैं. और अब उन्हें भी इस बॉडी ने निकाल दिया गया है. राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी को पहली बार 2006 में संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाया था. हालांकि, एक साल बाद उन्हें फिर से हटा दिया गया. उसके बाद मोदी को 2013 में फिर से राजनाथ सिंह ही लेकर आए थे.

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