नई दिल्ली : बांग्लादेश में अगले साल जनवरी महीने में आम चुनाव होने वाले हैं. चुनाव से पहले वहां पर व्यापक पैमान पर हिंसा शुरू हो गई है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक विपक्ष के कुछ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था, जिसके बाद हिंसा भड़की गई.
बांग्लादेश में मुख्य रूप से दो पार्टियां हैं. अवामी लीग पार्टी और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी. यही दोनों पार्टियां सत्ता में आती हैं. इस समय अवामी लीग की सरकार है. अवामी लीग की नेता शेख हसीना हैं. वह बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं. शेख हसीना बांग्लादेश के जनक मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं. इस्लामवादी जमात पार्टी का भी बांग्लादेश में अच्छा खासा प्रभाव है. वह बीएनपी के साथ मिलकर काम करती है.
बीएनपी की नेता खालिदा जिया हैं. उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. इस समय उन्हें अपने घर में ही नजरबंद रखा गया है. खालिदा जिया के बाद दूसरे नंबर पर मिर्जा फखरूल इस्लाम हैं. लेकिन पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया है. इसलिए पार्टी का नेतृत्व कौन करे, बड़ा सवाल खड़ा हो गया है.
इस बीच प्रमुख विपक्षी दल बीएनपी ने मांग की है कि चुनाव से पहले एक अंतरिम सरकार का गठन हो और उनके अधीन चुनाव की प्रक्रिया संपन्न हो. बीएनपी ने कहा है कि शेख हसीना के सत्ता में रहते हुए निष्पक्ष चुनाव संपन्न नहीं हो सकता है. शेख हसीना ने उनकी मांग को ठुकरा दिया है.
पिछले सप्ताह विपक्ष की हुई एक रैली के दौरान हिंसा को लेकर सरकार के एक मंत्री ने बीएनपी पर हमला बोला. मंत्री ने मीडिया में बयान देते हुए कहा कि विपक्ष के समर्थकों ने रैली के दौरान अराजकता फैलाई. उनके अनुसार उन्होंने पत्थरबाजी की, इसलिए पुलिस को सख्त कदम उठाने पड़े. हालांकि, बीएनपी ने इन आरोपों से इनकार किया है. उनकी ओर से जारी बयान में बताया गया है कि उनकी रैली शांतिपूर्ण थी, सरकार समर्थित भीड़ ने इसे हिंसक बना दिया.
आपको बता दें कि अवामी लीग लगातार तीन बार से सत्ता में जीतती आ रही है. क्या चौथी बार उसे सत्ता मिलेगी, यह कहना मुश्किल है. बांग्लादेश में महंगाई 9.6 फीसदी के करीब है. विदेशी मुद्रा भंडार 20 अरब डॉलर के आसपास है. बढ़ती महंगाई के कारण विपक्षी दलों को लोगों का समर्थन मिल रहा है. लेकिन यह समर्थन बीएनपी को फायदा पहुंचाएगा या नहीं, कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. वह भी तब जबकि निष्पक्ष चुनाव को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
क्या बांग्लादेश में स्वतंत्रपूर्वक चुनाव संभव है. यह सवाल अमेरिका पूछ रहा है. एक दिन पहले अमेरिकी पत्रिका टाइम ने शेख हसीना की एक तस्वीर फ्रंट पेज पर प्रकाशित की है. पत्रिका ने हसीना पर प्रजातांत्रिक मूल्यों को ह्रास करने के आरोप लगाए हैं. वैसे, पूछने वाले यह पूछ रहे हैं कि कहीं यह अमरीकी हस्तक्षेप तो नहीं है.
आश्चर्य ये है कि एक सप्ताह पहले ही बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर हास ने अवामी लीग सरकार को बीएनपी से बातचीत करने का सुझाव दिया था. इतना ही नहीं उन्होंने तो ऐसे भी कदम उठाए, जिसके बारे में किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी. पीटर हास ने बांग्लादेश के मुख्य चुनाव आयुक्त से मिलकर उन्हें निष्पक्ष चुनाव कराने का कथित तौर पर 'लेक्चर' दिया. अवामी लीग समर्थकों ने इसे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बताया है.
इसी साल मई में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने नई वीजा नीति की घोषणा की थी. इसमें कहा गया था कि जो भी बांग्लादेशी प्रजातांत्रिक वैल्यू का पालन नहीं कर रहे हैं, उन्हें अमेरीका का वीजा नहीं मिलेगा. अमेरिका की ओर से अगर ऐसे बयान आ रहे हैं, तो इसका क्या अर्थ हो सकता है, आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं. इसी साल फरवरी में वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी डेरेक शोलैट बांग्लादेश आए थे, और उन्होंने सरकार पर कड़ी टिप्पणी की थी. दिसंबर 2022 में पीटर हास ने विपक्षी नेताओं के गायब होने पर सवाल उठाए थे. दिसंबर 2021 में यूएस ट्रेजरी डिपार्टमेंट ने बांग्लादेश पुलिस की एंटी टेरर यूनिट रैपिड एक्शन बटालियन पर मानव अधिकार हनन के आरोप लगाए थे. इन सारे आरोपों से झल्लाकर ही शेख हसीना ने मीडिया में जबाव दिया था, कि क्या बाइडेन और ट्रंप मिलकर काम करते हैं, और नहीं करते हैं, तो हमें 'उपदेश' न दें.
बांग्लादेश चुनाव संबंधित कुछ अन्य जानकारियां- बीएनपी और जमात ने 1999 में समझौता किया था. पिछले 17 सालों से अवामी लीग सरकार में है. एक अगस्त 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने जमात का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया था. लोग सवाल पूछ रहे हैं कि जब कोर्ट ने इसका निबंधन ही रद्द कर दिया है, तो अमेरिका किस हैसियत से इनसे वार्ता करने को कहा रहा है. बीएनपी अब जमात से अलग हटकर चुनाव लड़ रही है. वैसे, रैलियों और हड़ताल के दौरान बीएनपी को जमात का साथ मिल रहा है.
बीएनपी की नेता बेगम खालिदा जिया अस्वस्थ हैं. अनाथ बच्चों के लिए धन जुटाने के मामले में वह हिरासत में हैं. उनका बेटा तारिक रहमान लंदन में रहता है. उन पर भी ग्रेनेड हमला का आरोप है. आरोप के अनुसार तारिक ने शेख हसीना को मारने को कोशिश की थी. कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहरा दिया है.
2014 के चुनावों का बीएनपी ने बहिष्कार कर दिया था. 2018 के चुनाव में भी वह रेस से बाहर हो गया था. 1996, 2001 और 2006 में चुनाव से पहले कार्यवाहक सरकारें बनी थीं. लेकिन उसके बाद शेख हसीना ने इसकी मंजूरी नहीं दी. इसके लिए हसीना ने संविधान में संशोधन कर दिया. एक समय तो ऐसा भी आ गया था जब कार्यवाहक सरकार ने शेख हसीना और खालिदा जिया, दोनों को जेल भेज दिया था.
भारत के हित में क्या है -आधिकारिक रूप से भारत का कहना है कि बांग्लादेश में जिसकी भी सरकार आए, वह उनके साथ काम करेगी. लेकिन भारत यह नहीं चाहता है कि जमात जैसी पार्टी सत्ता में आए. जमात को आतंकियों का समर्थक माना जाता है. वह भारत के खिलाफ लगातार स्टैंड अपनाता रहा है. जब भी बीएनपी सत्ता में आती है, तो भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्तों में तनाव भी देखने को मिला है. मीडिया रिपोर्ट की मानें तो बीएनपी की सरकार चीन की ओर अधिक झुकी रहती है. और भारत कभी नहीं ऐसा चाहेगा. भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि हमारे संबंध बीएनपी से भी उतने ही अच्छे हैं, जितने अवामी लीग से. मंत्रालय के अनुसार भारत चाहता है कि बांग्लादेश में एक स्थिर सरकार बने, ताकि भारत के पड़ोस में अस्थिरता का असर हमपर न पड़े.
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