हैदराबाद: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है. बताया जा रहा है कि उनका शव उनके बाघम्बरी मठ आश्रम में फांसी के फंदे से लटका मिला है. पुलिस को एक सुसाइड नोट भी मिला है जिसमें उन्होंने अपने शिष्य आनंद गिरी पर परेशान करने का आरोप लगाया है. वैसे गुरु और शिष्य की ये जोड़ी पहले भी विवादों में रही है, अखाड़ों के इतिहास से लेकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद उनकी भूमिका और विवादों के बारे में भी जानेंगे लेकिन पहले जानिये
गुरु की मौत पर शिष्य ने क्या कहा ?
नरेंद्र गिरि के शिष्य आनंद गिरि का नाम सुसाइड नोट में भी है. जिसपर आनंद गिरी ने इसे साजिश करार दिया है. आनंद गिरि ने कहा कि महंत नरेंद्र गिरि की मौत की खबर से वे काफी आहत हैं. गुरु नरेंद्र गिरि आत्महत्या नहीं कर सकते हैं. जरूर यह किसी की साजिश है. पूरे मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए. आनंद गिरि ने तो यहां तक कहा है कि नरेंद्र गिरि को मारकर उनको फंसाने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने प्रदेश सरकार से हाथ जोड़कर निष्पक्ष जांच की मांग की है. ताकि सच सामने आ सके और दूध का दूध और पानी का पानी हो सके.
गुरु और शिष्य का पहले भी हुआ था विवाद ?
कुछ वक्त पहले महंत आनंद गिरि ने अपने गुरु महंत नरेंद्र गिरि पर अखाड़े और मठ की जमीन को बेचने का सनसनीखेज आरोप लगाया था. आनंद गिरि को महंत नरेंद्र गिरि का सबसे प्रिय शिष्य कहा जाता था. महंत आनंद गिरि ने महंत नरेंद्र गिरि पर ये आरोप अखाड़ा और बाघम्बरी मठ से निकाले जाने के बाद लगाए थे. आनंद गिरि ने इस मामले में अपनी जान का खतरा बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह के साथ ही यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर जांच की मांग की थी. आनंद गिरी लगातार अपने गुरु के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे.
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फिर शिष्य ने गुरु के पैर छूकर मांगी थी माफी
आनंद गिरि ने अपने गुरु महंत नरेंद्र गिरि के पैर पकड़कर माफी मांगी थी और इसका वीडियो बकायदा सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर खूब वायरल हुआ था. आनंद गिरी ने अपने गुरु के खिलाफ दिए गए सभी बयान वापस ले लिए थे. महंत नरेंद्र गिरि ने भी शिष्य आनंद गिरि को माफ करते हुए हनुमान मंदिर में आने पर लगी पाबंदी हटा लिया और शिष्य पर लगे सभी आरोपों को भी वापस ले लिया था.
बयानों को लेकर चर्चा में थे महंत नरेंद्र गिरि
महंत नरेंद्र गिरि ने कहा था ''हिंदुओं के साथ-साथ मुसलमानों और ईसाइयों का डीएनए समान है. कुछ लोगों ने हिंदू धर्म छोड़ दिया और लालच या दबाव में इस्लाम और ईसाई धर्म अपना लिया। सभी के पूर्वज भारत में रहने वाले मुसलमान और ईसाई पहले हिंदू थे.''
अगस्त, 2020 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने देश में बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए समान नागरिक संहिता (यूनीफॉर्म सिविल कोड) लाने की मांग की थी. परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने कहा कि जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए दो बच्चों वाली नीति लागू की जाए. उन्होंने कहा कि एक समुदाय देश में अल्पसंख्यक समुदाय बना हुआ है लेकिन बहुसंख्यक समुदाय को सता रहा है.
अब अखाड़ों का इतिहास जान लीजिये
अखाड़ा यानि ऐसा स्थान जहां पहलवानी और कुश्ती का शौक रखने वाले अपने दांव-पेच सीखते और सिखाते हैं. लेकिन अखाड़े का सनातन धर्म में एक अन्य रूप भी मौजूद है. मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने देश की चारों दिशाओं में बद्रीनाथ, रामेश्वरम, द्वारिका और जगन्नाथ पुरी की स्थापना की, इस दौरान धर्म विरोधी शक्तियों से मिलने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए आदि गुरु शंकराचार्य ने युवा साधुओं को सेहतमंद रहने के लिए कुश्ती और हथियार चलाने के लिए प्रेरित किया. उनका मानना था कि धर्म विरोधी शक्तियों का मुकाबला करने के लिए आध्यात्म ही काफी नहीं है. इसके लिए उन्होंने मठ स्थापित किए जहां कसरत के साथ हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती थी ऐसे ही मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा.
शंकराचार्य ने सुझाव दिया कि ये मठ मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पड़ने पर शक्ति का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. इस तरह अखाड़ों का जन्म हुआ. फिलहाल देश में कुल 13 अखाड़े हैं. ये संतों का सर्वोच्च निकाय है. अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद सर्वोच्च होता है, हालांकि कुछ अखाड़ों में महामंडलेश्वर नहीं होते हैं, उनमें आचार्य का पद ही प्रमुख होता है.
फर्जी बाबाओं को ब्लैक लिस्ट करता है अखाड़ा परिषद
10 सितंबर 2017 को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की एक बैठक हुई थी. जिसमें 14 बाबाओं को लिस्ट जारी कर उन्हें फर्जी करार दिया था. इनमें आसाराम उर्फ आशुमल शिरमानी, सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां, सचिदानंद गिरी उर्फ सचिन दत्ता, गुरमीत राम रहीम डेरा सच्चा सिरसा, ओम बाबा उर्फ विवेकानंद झा, निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह, इच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी, स्वामी असीमानंद, ऊं नम: शिवाय बाबा, नारायण साईं, रामपाल, खुशी मुनि, बृहस्पति गिरि और मलकान गिरि के नाम शामिल थे.
इसी बैठक में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने संत की उपाधि देने के लिए एक तय प्रक्रिया अपनाने का फैसला लिया ताकि गुरमीत राम रहीम या आसाराम जैसे फर्जी लोग इसका गलत इस्तेमाल ना कर सकें.
अखाड़ों की भूमिका और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद