शिमलाः कालका-शिमला रेलवे हैरिटेज ट्रैक का इतिहास अपने आप में बेहद खास है. साल 1903 में बना यह रेलवे ट्रैक कालका से शिमला का जोड़ता है. ब्रिटिश हुक्मरानों ने ब्रिटिश शासन काल की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला को जोड़ने के लिए इस तरह का निर्माण करवाया.
सर्पीली पहाड़ियों के बीच से ट्रेन शिमला पहुंचाना बिलकुल पर आसान नहीं था. सोलन के समीप इंजीनियर बरोग टनल के दो छोर को नहीं मिला पा रहा था जिस वजह से रेलवे ट्रैक का काम रुक गया था. इससे नाराज होकर नाराज अंग्रेज सरकार ने इंजीनियरों पर 1 रुपये का जुर्माना लगाया था. असफलता और जुर्माने से खुद को अपमानित महसूस कर बरोक ने आत्महत्या कर ली थी.
इसके बाद टनल को बनाने का काम मस्तमौला बाबा भलकू को सौंपा गया. हैरत की बात है कि बाबा भलकू अपनी छड़ी के साथ पहाड़ और चट्टानों को ठोक ठोक कर स्थान को चिन्हित करते चले गए और अंग्रेज अधिकारी उनके पीछे चलते रहे. खास बात यह रही कि बाबा भलकू का अनुमान सौ फीसदी सही रहा.
बाबा भलकू की वजह से सुरंग के दोनों छोर मिल गए. इस तरह सुरंग नंबर 33 पूरी हुई. साथ ही रेलवे के इतिहास में अमर हो गया बाबा भलकू का नाम. शिमला गजट में दर्ज है कि ब्रिटिश हुकूमत ने बाबा भलकू को पगड़ी और मेडल देकर सम्मानित किया था. सोलन जिला के मशहूर पर्यटन स्थल चायल के समीप झाजा गांव के रहने वाले थे. उनके बारे में कई आख्यान बताए जाते हैं.