हैदराबाद: भारत इस साल 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. देश को आजादी दिलाने में कई महान सपूतों ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया. अपनी मातृभूमि को ब्रिटिश प्रभुत्व से मुक्त करने के लिए भारतीय सेनानियों के अथक प्रयास को भुलाया नहीं जा सकता.
देश के विभिन्न राज्यों के सेनानियों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था. इन्हीं योद्धाओं में शामिल थे केरल वर्मा पयहस्सी राजा. अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति करने वालों में इनका नाम आज भी इतिहास में दर्ज है. बता दें, पयहस्सी राजा के नेतृत्व में वायनाड में हुए दंगे ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष का एक ज्वलंत अध्याय है. उनके संघर्षों को चिह्नित करने के लिए वायनाड में वीर पयहस्सी राजा के दो स्मारक आज भी स्थित हैं.
पजहशीराजा के संघर्ष को भुलाया नहीं जा सकता जानकारी के मुताबिक केरल में जहां पयहस्सी राजा शहीद हुए थे (पुलपल्ली मविलमथोडु के तट पर) वहां पयहस्सी राजा मेमोरियल स्तूप बनाया गया है. वहीं, मनंतवाडी में बना पयहस्सी राजा मकबरा उनकी अद्वितीय लड़ाई की कहानियों की याद दिलाता है.
भारत को आजाद कराने के लिए पयहस्सी राजा ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. नायर सैनिकों और कुरिच्य सैनिकों की मदद से छेड़ा गया इनका गुरिल्ला युद्ध बहुत आक्रामक था. जानकारी के मुताबिक कन्नवम और वायनाड के जंगल अंग्रेजों के खिलाफ इनके प्रतिरोधों के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं. पयहस्सी राजा ने युद्ध के मैदान में अपने वीर सैनिकों का हौसला बढ़ाया था. बता दें, पयहस्सी राजा की मृत्यु 1805 में केरल-कर्नाटक सीमा के पास मविलमथोडु नदी के तट पर हुई थी.
वहीं, इनकी मृत्यु को लेकर दो कहानियां प्रचलित हैं. लोगों का दावा है कि ब्रिटिश सेना उनको पकड़ न सके इस वजह से उन्होंने हीरे की अंगूठी निगलकर आत्महत्या कर ली थी. वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि उन्हें अंग्रेजों ने गोली मार दी थी.
इतिहासकारों से पता चलता है कि इनकी मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने इनके शव को मविलमथोडु नदी के तट से मनंतवाडी पहाड़ी की चोटी पर अत्यंत सम्मान के साथ दफनाया था, लेकिन पयहस्सी राजा के सेनापतियों, तलक्कल चंथु और एडाचेना कुंकन को अभी भी पर्याप्त स्मारक नहीं मिला है. इतिहासकारों की मांग है कि वीर पयहस्सी राजा के संघर्ष के इतिहास, जो विभिन्न अभिलेखागारों में बिखरे हुए हैं, का मिलान किया जाए और उनकी क्रांति के अभिलेखों को पुनः ढूंढा जाए.
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पयहस्सी राजा को लेकर लेखक एकोम गोपी का कहना है कि इन्होंने वायनाड के लोगों की जाति या पंथ को न देखते हुए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कुरीचियार, कुरुंबर, कुंकन और तलक्कल चंदू ने पजहशीराजा के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. उन्होंने ब्रिटिश हथियारों के सामने धनुष-बाण चलाए. विश्व के इतिहास में धनुष बाण से युद्ध पयहस्सी राजा के शासनकाल में हुआ था, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में पयहस्सी राजा के दौर और उनके संघर्षों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया. बता दें, यह पयहस्सी राजा ही थे जो ब्रिटिश साम्राज्य के लिए सबसे अधिक परेशानी का कारण बने.