त्रिवेंद्रम: केरल सरकार की प्रस्तावित सेमी हाई-स्पीड रेलवे परियोजना के अलावा के-रेल योजना विवाद में फंसती दिख रही है. वहीं विपक्षी दलों ने परियोजना के लिए रखे सर्वेक्षण पत्थरों को हटा दिया है, जिससे कई जगहों पर कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच झड़प भी हुई है. दूसरी तरफ सरकार व्यापक आंदोलन को राजनीति से प्रेरित बताकर खारिज कर रही है. जबकि विपक्षी दल का आरोप है कि सरकार एक ऐसी परियोजना को आगे बढ़ा रही है जिसका जनता विरोध कर रही है.
केरल रेल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (के-रेल), केरल सरकार और रेल मंत्रालय, भारत सरकार के एक संयुक्त उद्यम द्वारा कार्यान्वित सिल्वरलाइन परियोजना में राजधानी तिरुवनंतपुरम को जोड़ने वाली 529.45 किमी सेमी-हाईस्पीड रेल लाइन की योजना है. इस लाइन के बन जाने से यात्री को कासरगोड से तिरुवनंतपुरम तक पहुंचने में 4 घंटे से भी कम समय लगेगा. यह परियोजना, वर्तमान एलडीएफ सरकार के चुनावी घोषणा पत्र में सूचीबद्ध कई परियोजनाओं में से एक है. इसे मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की एक प्रमुख परियोजना के रूप में देखा जाता है. वहीं मुख्यमंत्री राज्य में इसको लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शनों से इतर दोहराया है कि उनकी सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में जो कुछ भी कहा था, उसे लागू करेगी.
इसीक्रम में विवादास्पद परियोजना पर विधानसभा में एक बहस के दौरान सत्तारूढ़ दल ने कहा है कि केरल के लोगों ने उन्हें जनादेश दिया था और यह अच्छी तरह से समझते हुए कि अपने चुनावी घोषणा पत्र में हमने क्या प्रस्ताव रखा था. दूसरी तरफ कांग्रेस और भाजपा के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने इस परियोजना के पीछे मुख्य मकसद भ्रष्टाचार को बताया है. परियोजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों की अगुवाई कर रही कांग्रेस का आरोप है कि यह परियोजना राज्य को दो भागों में बांट देगी साथ ही पर्यावरणीय क्षति के अलावा हजारों लोग विस्थापित हो जाएंगे. वहीं केरल सरकार ने परियोजना के लिए अधिग्रहण की जाने वाली संपत्तियों के लिए बाजार मूल्य से दो गुना की घोषणा की थी और दावा किया था कि प्रस्तावित परियोजना मार्ग के लिए कोई भी क्षेत्र पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील या संरक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत नहीं आता है.