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लक्षद्वीप : केरल HC ने मध्याह्न भोजन से मांस हटाने, डेयरी फार्म बंद करने की चुनौती खारिज की - लक्षद्वीप द्वीप समूह

केरल उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया, जिसमें लक्षद्वीप प्रशासन के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें लक्षद्वीप द्वीप समूह के स्कूलों में डेयरी फार्म बंद करने और मध्याह्न भोजन के मेनू से मांस को हटा दिया गया था.

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Published : Sep 17, 2021, 3:47 PM IST

लक्षद्वीप :केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार और न्यायमूर्ति शाजी पी चाली की खंडपीठ ने कवारत्ती द्वीप के निवासी अधिवक्ता अजमल अहमद द्वारा प्रशासनिक सुधारों के खिलाफ दायर एक याचिका को खारिज कर दिया.

कोर्ट ने लक्षद्वीप प्रशासन के लिए केंद्र सरकार के वरिष्ठ स्थायी वकील एस मनु के तर्क में योग्यता पाई कि अदालत प्रशासन द्वारा लिए गए ऐसे नीतिगत फैसलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. प्रशासन ने निर्णयों को सही ठहराते हुए कहा था कि डेयरी फार्मों के कामकाज से हर साल लगभग ₹1 करोड़ का भारी नुकसान होता है.

मध्याह्न भोजन योजना के मेनू में बदलाव के बारे में यह तर्क प्रस्तुत किया गया था कि नियमों में निर्धारित पोषण मूल्य को बनाए रखना सुनिश्चित करने के लिए एकमात्र कानूनी आवश्यकता है और सरकार द्वारा किसी भी मेनू को अपनाया जा सकता है बशर्ते पोषण मूल्य पूरा हो. याचिकाकर्ता जो कथित रूप से सेव लक्षद्वीप फोरम के सदस्य हैं, ने जून 2021 में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता पीयूस कोट्टम ने दलील दी कि प्रशासन के मध्याह्न भोजन मेनू को बदलने और द्वीपों पर डेयरी फार्मों को बंद करने का निर्णय जातीय संस्कृति, विरासत, भोजन की आदतों और निवासियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है.

याचिका में एक और प्रार्थना की गई थी कि प्रशासन को मसौदा नियमों को लागू करने से परहेज करने का निर्देश दिया जाए. जिसमें असामाजिक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम 2021 (गुंडा अधिनियम), लक्षद्वीप पशु संरक्षण विनियमन 2021, लक्षद्वीप पंचायत विनियमन 2021, लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन 2021 आदि मसौदा बिना प्रकाशित किए ही तैयार किए गए.

प्रकाशन इसलिए किया जाना चाहिए ताकि द्वीपवासियों को विनियमों के फायदे और नुकसान को समझने में सुविधा हो. साथ ही वे ऐसे नियमों को लागू करने के खिलाफ अपनी आपत्तियां प्रस्तुत कर सकें. उच्च न्यायालय ने 22 जून को इन फैसलों पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया था और लक्षद्वीप के स्कूलों में मध्याह्न भोजन से मांस की वस्तुओं को हटाने के औचित्य पर सवाल उठाया था. यहां तक ​​​​कि एक चिकित्सक ने भी मांसाहारी खाद्य पदार्थ (मछली, चिकन और अंडा) का सुझाव दिया था क्योंकि यह बच्चों के विकास के लिए आवश्यक है.

इसलिए इसने निर्देश दिया था कि लक्षद्वीप के स्कूल जाने वाले बच्चों को तैयार और परोसा जाने वाला मांस, चिकन, मछली और अंडे सहित अन्य सामान, जैसा कि पहले किया जाता था, अगले आदेश तक जारी रखा जाना चाहिए. इसने यह भी निर्देश दिया कि डेयरी फार्मों का कामकाज अगले आदेश तक भी जारी रखा जाए. हालांकि लक्षद्वीप प्रशासन की ओर से दायर जवाबी हलफनामे पर विचार करने के बाद जिसने नीतिगत फैसले को सही ठहराया, अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया.

लक्षद्वीप में नए प्रशासक प्रफुल्ल पटेल की ओर से पेश किए जाने वाले प्रस्तावित नए नियमों के संबंध में केरल उच्च न्यायालय में कई जनहित याचिकाएं दायर की गई थीं. प्रशासनिक सुधारों ने द्वीप की आबादी के बीच घबराहट पैदा कर दी थी और विरोध प्रदर्शन किया गया था.

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मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता सेव लक्षद्वीप फोरम का सदस्य है जो इन विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा रहे हैं. प्रस्तावित नियमों की लक्षद्वीप और केरल दोनों में लोगों ने व्यापक निंदा की थी और केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर नए प्रशासक को वापस बुलाने की मांग की गई है. हालांकि इस फैसले के साथ हाल के प्रशासनिक सुधार के खिलाफ दायर सभी जनहित याचिकाओं का निपटारा उच्च न्यायालय द्वारा प्रशासन के पक्ष में किया गया है.

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