तिरुवनंतपुरम : केरल के जिस प्रार्थना घर पर रविवार को हमला किया गया है, उनका विवादों से पुराना संबंध रहा है. दरअसल, उनका इतिहास भी बड़ा ही अजीबो-गरीब रहा है. वे क्रिश्चियन धर्म में यकीन तो करते हैं, लेकिन ईसा मसीह को भगवान नहीं मानते हैं. उन्हें यहोवा के गवाह के नाम से जाना जाता है.
यहोवा के गवाह मुख्य रूप से ईसाई धर्म मानते हैं, लेकिन उनकी मान्यताएं मुख्यधारा के ईसाई धर्म से अलग है. इनकी आबादी पूरी दुनिया में दो करोड़ के आसपास है. इसकी स्थापना अमरीकी बाइबिल विद्वान चार्ल्स टेज रसेल ने की थी. शुरुआत में यहोवा को बाइबिल स्टूडेंट्स के नाम से जाना जाता था. उनका मानना है कि पूरी दुनिया में सिर्फ यहोवा ही एकमात्र भगवान हैं.
मुख्य धारा के ईसाई अनुयायियों का विश्वास ट्रिनिटी में है. जबकि यहोवा के अनुसार ईसा मसीह भगवान के दूत थे, न कि भगवान. वे यह भी मानते हैं कि उनके भगवान (यहोवा) स्वर्ग से पृथ्वी पर राज करते हैं और वे हमलोगों की इच्छाओं की पूर्ति भी करेंगे. यहोवा की मान्यताओं के अनुसार जब आप अपने पापों को नष्ट कर लेंगे, तो भगवान आपको सभी बाधाओं से मुक्त कर देंगे और वैसे अच्छे लोग जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उन्हें भी वापस बुलाएंगे. यहोवा क्रॉस और मूर्ति या किसी प्रकार के चिन्हों का प्रयोग नहीं करते हैं.
यहोवा का विश्वास मुख्य रूप से बाइबिल पर आधारित है. फिर भी वे सिद्धान्तवादी नहीं हैं. उनका कहना है कि बाइबिल का अधिकांश हिस्सा सांकेतिक भाषाओं (फिगरेटिव लैंगुएज) में लिखा गया है, इसलिए उन्हें हुबहू मानने की जरूरत नहीं है. वे राजनीतिक रूप से तटस्थ होते हैं. राष्ट्रीय झंडा को भी सैल्यूट नहीं करते हैं. न ही राष्ट्रगान गाते हैं. न सैन्य सेवा में उनका विश्वास है. उनकी इन्हीं विवादास्पद मान्यताओं की वजह से दुनिया के कई देशों ने उन पर पाबंदियां लगा रखी हैं. अमेरिका में भी वे प्रतिबंधित हैं.
ऐसा माना जाता है कि ये लोग 1905 में धर्म प्रचार के लिए केरल आए थे. टीसी रसेल ने 1911 में रसलपुरम में अपना पहला उपदेश दिया था. एक अनुमान के अनुसार केरल में 15 हजार के आसपास यहोवा रहते हैं. वे मुख्य रूप से केरल के मल्लापल्ली, मीनाडम, पांपडी, वाकतानम, कंगजा, आर्यकुन्नम और पुथुपल्ली में रहते हैं. वे एक साल में तीन बार कन्वेंशन का आयोजन करते हैं. 200 स्थानों से वे इसे ऑपरेट करते हैं. वे न तो क्रिसमस मनाते हैं, न ईस्टर या न ही ईसा मसीह का जन्मदिन.