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केजरीवाल का 'देशभक्ति पाठ्यक्रम' जरूरत या सियासत ?, आखिर क्यों बीजेपी की पिच पर उतरी 'आप' ? - Kejriwals deshbhakti curriculum is neccessity or pure politics

दिल्ली सरकार ने मंगलवार को देशभक्ति पाठ्यक्रम लॉन्च कर दिया. जिसके तहत दिल्ली के सरकारी स्कूलों में देशभक्ति का पाठ पढ़ाया जाएगा. इस पाठ्यक्रम में क्या-क्या पढ़ाया जाएगा ? ये जरूरत है या सियासत ? आखिर बीजेपी की पिच पर क्यों उतरे हैं अरविंद केजरीवाल ? जानने के लिए पढ़िये ईटीवी भारत एक्सप्लेनर (etv bharat explainer)

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Published : Sep 29, 2021, 9:10 PM IST

हैदराबाद : मंगलवार 28 सितंबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 'देशभक्ति पाठ्यक्रम' लॉन्च कर दिया. जिसके तहत ये पाठ्यक्रम दिल्ली के सरकारी स्कूलों में लागू हो गया है. लेकिन सवाल है कि आखिर क्या है ये देशभक्ति पाठ्यक्रम ? इसके सिलेबस में क्या-क्या है ? क्या देशभक्ति पाठ्यक्रम की जरूरत है या ये सिर्फ सियासी चाल है ? और आम आदमी पार्टी बीजेपी के नक्शेकदम पर क्यों चलती दिख रही है? इन सभी सवालों का जवाब आपको मिलेगा ईटीवी भारत एक्सप्लेनर में (etv bharat explainer)

क्या है ये देशभक्ति पाठ्यक्रम ?

इस पाठ्यक्रम के तहत दिल्ली के सरकारी स्कूलों के बच्चों को देशभक्ति और देशप्रेम का पाठ पढ़ाया जाएगा. पाठ्यक्रम के लॉन्च के मौके पर अरविंद केजरीवाल ने कहा कि 74 साल से हम अपने बच्चों को स्कूलों मं गणित, फिजिक्स, केमेस्ट्रीतो पढ़ा रहे हैं लेकिन देशभक्ति नहीं सिखाई. इस पाठ्यक्रम के जरिये अब दिल्ली के सभी सरकारी स्कूलों में बच्चोंको अपने देश से प्यार करना सिखाया जाएगा.

दिल्ली सरकार ने लॉन्च किया देशभक्ति पाठ्यक्रम

आज हमारे कॉलेज, इंस्टीट्यूट अच्छे डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, बिजनेसमैन जैसे पेशेवर तैयार हो रहे हैं लेकिन देशभक्त पेशेवर विकसित नहीं हो रहे हैं. अब सभी प्रकार की शिक्षा में देशभक्ति के मूल्यों को जोड़ेंगे. हम देशभक्त, डॉक्टर, वकील इंजीनियर, एक्टर, गायक, पत्रकार आदि विकसित करेंगे. आज पेशे कमाने के पेशेवर तैयार हो रहे हैं, हमें देशभक्त पेशेवर तैयार करने हैं. देशभक्ति की भावना कैसे बनी रहे, यही इस पाठ्यक्रम का मकसद है.

दिल्ली के डिप्टी सीएम और शिक्षा मंत्री मनीष सिसौदिया ने कहा कि ये पाठ्यक्रम सिर्फ देशभक्त की बात नहीं करेगा बल्कि ये छात्रों के दिल में देशभक्ति का जज्बा पैदा करेगा.

बच्चों में देशभक्ति का जज्बा जगाना है मकसद- केजरीवाल

लंबी प्लानिंग के बाद लागू हुआ है पाठ्यक्रम

मुख्यमंत्री केजरीवाल ने 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में देशभक्ति पाठ्यक्रम योजना की घोषणा की थी. पाठ्यक्रम दिल्ली सरकार के स्कूल के शिक्षकों, गैर सरकारी संगठनों की भागीदारों और विशेषज्ञों के सुझावों के साथ तैयार किया गया है. एससीईआरटी (SCERT) की गर्वनिंग काउंसिल ने 6 अगस्त को देशभक्ति पाठ्यक्रम का पहले फ्रेमवर्क अपनाया था जिसके बाद इस फ्रेमवर्क के आधार पर शिक्षकों के कोर ग्रुप ने देशभक्ति पाठ्यक्रम को विकसित किया. जिसे अब दिल्ली सरकार ने लागू किया है.

देशभक्ति पाठ्यक्रम को तीन उद्देश्यों के साथ तैयार किया गया है. बच्चों के मन में देश के प्रति प्यार सम्मान और गर्व की भावना जगाना. बच्चों के मन में देश के प्रति जिम्मेदारी को बढ़ाना और बच्चों के मन में देश के प्रति त्याग की भावना और त्याग करने वालों के प्रति सम्मान की भावना का विकास करना है. इसके लिए देशभक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियां सुनाई जाएंगी.

अब देशभक्त डॉक्टर, वकील, इंजनीयर बनेंगे- केजरीवाल

देशभक्ति का सिलेबस भी जान लीजिए

  • दिल्ली सरकार के स्कूलों में ये पाठ्यक्रम नर्सरी से 12वीं कक्षा तक में पढ़ाया जाएगा.
  • इस पाठ्यक्रम के लिए 45 मिनट की क्लास होगी.
  • नर्सरी से 8वीं क्लास तक रोजाना एक देशभक्ति पीरियड होगा.
  • 9वीं से 12वीं क्लास के लिए हफ्ते में दो देशभक्ति पीरियड होंगे.
  • पहले 5 मिनट 'देशभक्ति ध्यान' के लिए समर्पित होंगे.
  • इस दौरान किन्हीं 5 स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में ध्यान करेंगे, उनका आभार व्यक्त करेंगे.
  • देशभक्ति डायरी में बच्चे अपने विचार, भावनाएं, क्लास के अनुभव और एक्टिविटी दर्ज करेंगे.
  • सोचने और अभिव्यक्ति के लिए प्रेरित करने के लिए क्लासरूम चर्चा होगी.
  • क्लासरूम चर्चा के मुख्य प्रश्न के आधार पर होमवर्क मिलेगा.
  • होमवर्क में बच्चे को अपने से बड़े 3 लोगों के जवाब उस सवाल पर लेने होंगे.
  • जिनसे जवाब लेना है उनमें एक व्यक्ति परिवार का सदस्य और दो बाहर के होने चाहिए.
  • पाठ्यक्रम में 100 स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी दी जाएगी, जिसे भविष्य में बढ़ाया जाएगा.
  • 5वीं से 8वीं तक के पाठ्यक्रम में होमवर्क के बाद छात्रों को क्लास एक्टिविटी करनी होगी.
  • शिक्षकों को पाठ्यक्रम के तहत दी गई मैनुअल में अलग-अलग एक्टिविटी दी गई है.
  • 9वीं से 12वीं तक के छात्रों के लिए क्लासरूम चर्चा और होमवर्क के बाद ग्रुप डिस्कशन जरूरी होगी.
  • फ्लैग डे एक्टिविटी की जाएंगी, जिसमें तिरंगे से जुड़ी जानकारी होगी.
  • पाठ्यक्रम लागू करने के लिए सभी स्कूलों में तीन देशभक्ति नोडल शिक्षक नियुक्त किए जाएंगे.
  • देशभक्ति पाठ्यक्रम के लिए कोई परीक्षा नहीं होगी.
    अलग-अलग कक्षाओं के लिए अलग-अलग सिलेबस

क्या इस तरह के पाठ्यक्रम की जरूरत है ?

ये सवाल इसलिये क्योंकि पहला तो देश के स्वतंत्रता सेनानियों, स्वतंत्रता संग्राम और तिरंगे से जुड़ी जानकारियों से पहले से ही हमारी स्कूली किताबें अटी पड़ी हैं. जिनमें1857 के संग्राम से लेकर, महात्मा गांधी, भगत सिंह, बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चंद्र बोस जैसे अनेकों अनेक देशभक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी मौजूद है. जिन्हें बच्चे पढ़ते भी हैं और बकायदा परीक्षाओं में भी उनसे संबंधित प्रश्न पूछे जाते रहे हैं.

देशभक्ति पाठ्यक्रम जरूरत है या सियासत ?

दूसरा क्या अरविंद केजरीवाल ये कहना चाहते हैं कि अभी जो डॉक्टर, वकील, एक्टर, इंजीनियर आदि पेशेवर तैयार हो रहे हैं वो देशभक्त नहीं है. क्या कोई पाठ्यक्रम किसी बच्चे को देशभक्त बना सकता है ? ये सवाल इसलिये क्योंकि देश की सरहद पर मौजूद भारतीय सेना के किसी भी सिपाही की देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं उठा सकता. उन्होंने फौज में शामिल होने से पहले ना तो कोई देशभक्ति पाठ्यक्रम पढ़ा होता है और ना इस तरह का कोई कोर्स किया होता है. ऐसे में सवाल जस का तस है कि इस तरह के पाठ्यक्रम की क्या जरूरत है ?

'जरूरत नहीं ये खालिस सियासत है'

राष्ट्रवाद, देशभक्ति जैसे विषय भारत की सियासत में बहुत महत्वपूर्ण बन जाते हैं. बीते 7 सालों में हुए दो लोकसभा चुनाव और कई विधानसभा चुनावों में इन विषयों पर जैसे बीजेपी का एकाधिकार रहा है. तो क्या ये देशभक्ति पाठ्यक्रम सिर्फ सियासी रणनीति का हिस्सा हैं ?

क्या केजरीवाल को भी देशभक्ति और राष्ट्रवाद का सहारा है ?

कभी केजरीवाल के साथ रहे वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण कहते हैं कि 'ये खालिस सियासी रणनीति का हिस्सा है. इनको लगता है कि इससे उन्हें हिंदुओं के वोट मिल सकते हैं. ये एक तरह से बीजेपी को उसी के खेल में पछाड़ने और देशभक्ति, राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों के सहारे राष्ट्रीय पटल पर खुद को पेश करने की कोशिश है.

कभी आम आदमी पार्टी से जुड़े रहे पत्रकार आशुतोष कहते हैं कि धर्म और राष्ट्रवाद 'आप' और केजरीवाल की चुनावी मजबूरी है. केजरीवाल का अंदाजा है कि दिल्ली में भले बीते दो बार से उन्हें बंपर बहुमत मिला है लेकिन दिल्ली का एक बड़ा तबका बीजेपी को वोट करता है. जैसे बीते 2 बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को भारी बहुमत मिला है उसी तरह बीते दो लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली की सभी सातों सीटों पर जीत हासिल की है. साफ है कि विधानसभा में तो पार्टी जीत रही है लेकिन लोकसभा में नहीं जीत पा रही. इसलिये उन्हें लगता है कि अगर वोट बैंक को संभालकर रखना है तो खुद को हिंदू नेता के तौर पर स्थापित करना होगा.

क्यों बीजेपी की पिच पर खेलने उतरे हैं केजरीवाल ?

पार्टी के विस्तार के लिए भी जरूरी

अन्ना आंदोलन से निकली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की शुरुआत नवंबर 2012 में हुई. 2013 के दिल्ली विधानसभा में 28 सीटों पर जीत हासिल की और कांग्रेस के साथ मिलकर दिल्ली में पहली बार सरकार बनाई. 49 दिन में सरकार गिर गई और फिर 2015 में जब दिल्ली में चुनाव हुए तो पार्टी ने 70 में से 67 सीटों पर जीत का परचम लहरा दिया. 2020 में भी पार्टी ने 62 सीट जीतीं. पंजाब के बीते विधानसभा चुनाव में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया और मुख्य विपक्षी दल बनकर उभरी.

वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने देश की 432 लोकसभा सीटों से उम्मीदवारे उतारे लेकिन सिर्फ 4 लोकसभा सीटें ही जीत पाई और ये सारी पंजाब से मिलीं. 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सिर्फ 35 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और जीत सिर्फ पंजाब की एक सीट पर नसीब हुई. आम आदमी पार्टी ने विस्तार की कोशिश तो की लेकिन उसे सफलता नहीं मिली. दिल्ली में तीसरी बार सरकार और पंजाब में मुख्य विपक्षी दल बनने के अलावा पार्टी के 3 राज्यसभा सांसद हैं.

सियासी जानकार मानते हैं अब तक राजनीति की पिच पर केजरीवाल का जो भी स्टाइल रहा है उसके सहारे वो दिल्ली से बाहर अपनी पार्टी का विस्तार नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में उन्हें लग रहा है कि सॉफ्ट हिंदुत्व से खालिस हिंदुत्व, देशभक्ति, राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों के सहारे वो अपनी जड़ें फैला सकते हैं.

पार्टी का विस्तार करना चाहते हैं केजरीवाल

यूपी समेत अगले साल 7 राज्यों के चुनाव

अगले साल की शुरुआत में यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, मणिपुर और साल के आखिर में गुजरात और हिमाचल में विधानसभा चुनाव होनें हैं. आम आदमी पार्टी इनमें से ज्यादातर राज्यों में चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. जहां इस देशभक्ति पाठ्यक्रम की गूंज अरविंद केजरीवाल की रैलियों में सुनाई दे सकती है.

जानकार मानते हैं कि हिंदुत्व या देशभक्ति और राष्ट्रवाद का मुद्दा दिल्ली, पंजाब में नहीं चलता और किस्मत से आम आदमी पार्टी की पकड़ इन्हीं दो राज्यों में है. यहां से बाहर निकलने के लिए उसे अपना स्टैंड बदलना ही होगा. खासकर यूपी विधानसभा चुनाव के लिए हिंदुत्व और राष्ट्रवाद अहम साबित हो सकते हैं, वैसे बीजेपी इनके सहारे सत्ता तक पहुंच चुकी है और अब केजरीवाल को लग रहा है कि इसी राह पर चलकर वो पार्टी का विस्तार कर 'आप' को राष्ट्रीय पटल पर पहुंचाने में कामयाब होंगे.

दिल्ली और पंजाब के बाद गोवा ही एकमात्र ऐसा राज्य है. जहां से आम आदमी पार्टी की रिपोर्ट कार्ड में दिखाने लायक अंक हासिल हुए हैं. गोवा विधानसभा चुनाव 2017 में पार्टी ने राज्य की 40 में से 39 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. सीट तो एक भी नसीब नहीं हुई लेकिन पार्टी को 6 फीसदी से ज्यादा वोट मिले.

अगले साल यूपी समेत 7 राज्यों में है चुनाव

देशभक्ति की प्लानिंग के साथ स्टैंड बदल रही 'आप'

सियासी जानकार मानते हैं कि आम आदमी पार्टी ने भविष्य की सियासत और आगामी चुनावी राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश को देखते हुए उसी पिच पर उतर रही है जिसपर बीजेपी बैटिंग करती आई है और केजरीवाल बकायदा पूरी प्लानिंग के साथ उतर रहे हैं. आशुतोष कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल लगभग वही भाषा बोल रहे हैं जो बीजेपी बोलती आई है, बीते दिनों देशभक्ति या राष्ट्रवाद को लेकर दिए उनके बयानों से अगर उनका नाम हटा दिया जाए. तो कोई भी उन बयानों को सुनकर या पढ़कर उन्हें बीजेपी या आरएसएस का ही बताएगा.

क्यों स्टैंड बदल रहे हैं अरविंद केजरीवाल ?

दरअसल देशभक्ति की प्लानिंग के साथ आम आदमी पार्टी अपना स्टैंड बदल रही है वो भी चरणबद्ध तरीके की प्लानिंग के साथ. इसी साल की शुरुआत में वित्त वर्ष 2021-22 के लिए दिल्ली का जो बजट पेश किया गया था उसे बकायदा देशभक्ति बजट का नाम दिया गया था. राष्ट्रीय गौरव और देश की महानता को गिनाते हुए पूरी दिल्ली में 500 राष्ट्रीय ध्वज फहराने की बात कही गई थी. इससे पहले आम आदमी पार्टी ने बीते दिल्ली विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में बुजुर्गों को मुफ्त तीर्थ यात्रा का वादा किया था. सौ करोड़ की इस योजना को मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना का नाम दिया गया है. इसके अलावा प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान राष्ट्रीय ध्वज लगाने को लेकर बीजेपी ने जब केजरीवाल पर निशाना साधा तो यही देशभक्ति का मुद्दा केजरीवाल के लिए हथियार साबित हुआ था.

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