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यूपी चुनाव में अयोध्या नहीं बल्कि काशी होगा मुख्य केंद्र

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Published : Dec 10, 2021, 7:44 PM IST

Updated : Dec 10, 2021, 8:09 PM IST

भारतीय जनता पार्टी किसानों को लेकर अत्यंत ही सजग हो गई है. हालांकि कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के बाद अब किसानों की वापसी की शुरुआत भी हो चुकी है. एक साल से ज्यादा चले इस आंदोलन से जो डैमेज हुआ है पार्टी उसकी भरपाई करने की भरपुर कोशिश कर रही है. पार्टी की तरफ से 23 दिसंबर को काशी में कृषि से जुड़ा मेगा कार्यक्रम तैयार किया गया है, जो दिव्य काशी, भव्य काशी के अंतर्गत ही किया जाएगा. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट.

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नई दिल्ली :वैसे तो दिव्य काशी, भव्य काशी के अंतर्गत प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में कई कार्यक्रम होने वाले हैं, लेकिन किसानों को भरोसे में लेने के लिए भाजपा 23 दिसंबर को किसानों के लिए एक मेगा कार्यक्रम आयोजित करने जा रही है, जिसमें प्राकृतिक खेती को लेकर भी एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. हालांकि, खेती तो एक बहाना है इस बहाने पार्टी, किसानों को बीजेपी के साथ जोड़ने की कोशिश करेगी.

हर बार उत्तर प्रदेश चुनाव में जिस तरह अयोध्या, राम मंदिर या फिर लखनऊ केंद्र बिंदु हुआ करता था. मगर इस बार लगता है कि 2022 में चुनाव का केंद्र बिंदु प्रधानमंत्री का निर्वाचन क्षेत्र को बनाने की तैयारी है.

सूत्रों की मानें तो किसानों को जोड़ने के लिए लंबी चौड़ी रणनीति भी तैयार की गई है, जिसमें इस कार्यक्रम को पहले नंबर पर रखा गया है. इस कार्यक्रम में देश भर से कृषि से जुडे बड़े वैज्ञानिक आएंगे, जो वहां किसानों को खेती विशेषकर ऑर्गेनिक खेती (Organic farming) के बारे में तमाम टिप्स देंगे.

जानकारी देतीं ईटीवी भारत संवाददाता

सूत्रों की मानें तो इस कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिक और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित प्रधानमंत्री भी किसानों को संबोधित करने की योजना प्रस्तावित है, जिससे पूरे देश में लाइव टेलीकास्ट भी किया जाएगा और इसके लिए बीजेपी ने किसान मोर्चा को यह निर्देश दिए हैं कि कार्यक्रम से देशभर के किसानों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में इस कार्यक्रम से जोड़ें.

भारतीय जनता पार्टी के पूर्व कार्यक्रम चौपाल की तरह अलग-अलग ब्लॉक और जिलों में बड़े बड़े स्क्रीनों के माध्यम से प्रधानमंत्री के इस भाषण को लाइव भी दिखाया जाएगा और खास तौर पर टारगेट ऑडियंस किसान रहेंगे.

इस कार्यक्रम में आने वाले किसानों से भी सुझाव लिए जाएंगे और साथ ही कृषि वैज्ञानिकों से भी कृषि से संबंधित सुझावों को संकलित किया जाएगा और किसानों से मिले सुझावों को सरकार सरकारी योजनाओं में तब्दील करने की कोशिश करेगी.

लगभग एक साल चले किसान आंदोलन से पार्टी को ऐसा लगता है कि खास तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी के वोट बैंक रहे किसान नाराज हैं. लिहाजा उन्हें मनाने में पार्टी कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहती. इस सम्बंध में राजनीतिक सलाहकार देश रतन निगम ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया की पहले की सरकारें सिर्फ राजधानी का विकास करती थीं. मौजूदा सरकार ऐसी नहीं है.

उन्होंने कहा कि काशी पहले से ही महत्वपूर्ण क्षेत्र था, लेकिन पहले की सरकारों ने सभी निर्वाचन क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया था और आज सरकार उत्तर प्रदेश में सर्वांगीण विकास कर रही हैं. यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी बार-बार यह दावा करती है कि वहां पर डबल इंजन की सरकार है. यानि कि पूरे प्रदेश को राज्य की योजनाओं का भी फायदा हो रहा है और प्रधानमंत्री क्योंकि काशी से सांसद है. इस वजह से केंद्र की योजनाओं को भी लागू किया जा रहा है आज कोई लाग लपेट नहीं तेजी से विकास हो रहा है.

प्रधानमंत्री वहां पर चुनाव लड़ें और वह वहां से जीतें इसका फायदा तो लोगों को मिलेगा ही और जब प्रधानमंत्री चुनाव वहां से लड़े तब से ही काशी केंद्र बिंदु में आ ही चुका था. राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि पूर्व की सरकारों को अगर देखा जाए, तो कोई पूर्वांचल का विकास करता था. कोई अपने वोट बैंक के हिसाब से करता था, मायावती की सरकार जब रही, तो उन्होंने सिर्फ लखनऊ का विकास किया, मुलायम की सरकार में एटा, इटावा विकास के केंद्र थे, लेकिन आज की तारीख में अगर देखा जाए तो सभी क्षेत्रों पर बीजेपी की सरकार ध्यान दे रही है.

पढ़ें - किसानों ने सरकार का नया प्रस्ताव स्वीकार किया, आज खत्म हो सकता है आंदोलन

इस सवाल पर कि किसानों का आंदोलन खत्म हो चुका है. बावजूद इसके काशी में किसानों के लिए बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है, क्या किसानों को लुभाने में भारतीय जनता पार्टी चुनाव में सफल हो पाएगी, तो राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम का कहना है कि, जहां तक किसानों के बीच भरोसे की बात है. जाट पहले भी कहीं नहीं गए थे और आज भी कहीं नहीं जाएंगे.

राकेश सिंह टिकैत जो जाट किसानों के मुख्य नेता माने जाते रहे हैं, वही दावा करते आए हैं कि जाट भारतीय जनता पार्टी के साथ नहीं रहेंगे मगर ऐसा नहीं है. जाट पहले भी भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर कहीं नहीं गए थे और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अगर देखा जाए तो वहां पर जाट किसानों की ही बहुतायत है. बाकी राज्यों में किसानों को कृषि बिल से कोई बहुत ज्यादा गुरेज नहीं है.

उन्होंने कहा कि यह कृषि बिल कहीं से भी किसानों के लिए खराब नहीं था और यह बात किसान बाद में जाकर महसूस करेंगे, लेकिन चूंकि यह एक सरकार और किसानों के बीच जिसमें कहा जाए तो कुछ किसानों के बीच जो राजनीति से ज्यादा प्रभावित थे. अहम का मुद्दा बन गया था और इसी वजह से सरकार को इनके आगे झुकना पड़ा.

Last Updated : Dec 10, 2021, 8:09 PM IST

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