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karnataka Election : चुनाव में गन्ना मूल्य बना मुद्दा, गन्ना उत्पादक गुजरात मॉडल के आधार पर कीमत तय करने पर दे रहे हैं जोर

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Published : Apr 22, 2023, 9:40 PM IST

Updated : Apr 23, 2023, 2:45 PM IST

कर्नाटक में 10 मई को विधानसभा चुनाव है. राज्य में किसानों का मुद्दा अहम है. गन्ना किसानों का आरोप है कि कई सरकारें आईं और गईं लेकिन उन्हें अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिल रहा है. किसानों ने कर्नाटक में गुजरात मॉडल के आधार पर गन्ना फसल का दाम तय करने की मांग की है (Sugarcane growers insisting on fixing prices based on Gujarat Model).

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चुनाव में गन्ना मूल्य बना मुद्दा

बेलगावी :विधानसभा चुनाव नजदीक होने के बावजूद राजनीतिक दल गन्ना किसानों की समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए गहरी दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं, जिसके कारण विशेष रूप से बेलगावी जिले के किसानों में रोष है. गन्ना किसान उनकी फसल का वाजिब मूल्य दिलाने की मांग को लेकर पिछले कई दशकों से संघर्ष कर रहे हैं. किसानों की पुकार सत्ताधारी सरकारों द्वारा नहीं सुनी जा रही है.

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बेलगावी जिले में कुल 10 लाख हेक्टेयर भूमि है, जिसमें से 7 लाख हेक्टेयर भूमि पर किसान खेती करते हैं. तीन लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ने की खेती होती है. रिपोर्ट के अनुसार पूरे राज्य में सबसे अधिक गन्ने की खेती बेलगावी जिले में की जाती है.

प्रदेश में इस वर्ष कुल 6,01,12,006 मीट्रिक टन गन्ने की पिराई हुई है तथा 6,26,13,935 मीट्रिक टन चीनी का उत्पादन हुआ है. अकेले बेलगावी जिले में 2,09,94,484 मीट्रिक टन गन्ने की पिराई की गई है और 2,20,38,703 मीट्रिक टन चीनी का उत्पादन किया गया है.

गुजरात राज्य में प्रति टन गन्ने की औसत कीमत 4,000 रुपये प्रति टन है. किसानों को शुद्ध मूल्य का भुगतान किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश और पंजाब में 3,500 रुपये प्रति टन मिल रहा है. हालांकि, कर्नाटक में गन्ने में चीनी की मात्रा अधिक है और उप-उत्पादों पर आय भी अच्छी है. कर्नाटक में गन्ना उद्योग का कुल कारोबार 59 हजार करोड़ रुपए है. गन्ने से उत्पादित स्प्रिट से होने वाली आय भी औसतन 4900 रुपये प्रति टन है. इथेनॉल और उप-उत्पादों से होने वाली आय भी पर्याप्त है.

इंडियन फार्मर्स सोसायटी के राज्य अध्यक्ष और कर्नाटक गन्ना नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सिदागौड़ा मौदगी (Sidagowda Moudagi) ने मांग की है कि कर्नाटक में दरें गुजरात मॉडल के आधार पर तय की जानी चाहिए. परिवहन लागत निकालने वाले किसानों को शुद्ध लाभ प्राप्त होना चाहिए. किसानों के कृषि उत्पादों को ले जाने वाले वाहनों को टोलगेट पर मुफ्त में जाने की अनुमति दी जानी चाहिए.

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उन्होंने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के वित्तीय सलाहकार सी. रंगराजन की रिपोर्ट में 70:30 के अनुपात में लाभांश वितरण का जिक्र है, लेकिन गन्ना किसान इस बात से नाखुश हैं कि किसानों को कोई लाभांश नहीं दिया जा रहा है. प्रति किमी गन्ने की परिवहन लागत के मापदंड का पालन किया जाए. इससे स्थानीय कारखानों को गन्ने की अधिक आपूर्ति होगी और चीनी उत्पादन में वृद्धि होगी. फैक्ट्रियों को भी फायदा होगा.

सिदागौड़ा मोदगी ने कहा, चीनी मिलें प्रभावशाली लोगों द्वारा चलाई जाती हैं. सरकार से जुड़े कई विधायक और मंत्री चीनी कारखानों के मालिक हैं इसलिए किसी भी आदेश का सही तरीके से पालन नहीं हो रहा है. सबसे अच्छे दाम गुजरात और पंजाब में हैं, जहां कम उपज वाले गन्ने की कटाई की जाती है लेकिन कर्नाटक में गन्ना कम कीमत पर बेचा जाता है, जहां सबसे अधिक उपज निकाली जाती है.

उन्होंने कहा कि गन्ना किसान दशकों से अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. यह अब भी जारी है. हालांकि गन्ने की प्रति टन उपज 12 फीसदी से ज्यादा है लेकिन कई फैक्ट्रियां इसे कम दिखा रही हैं. नतीजतन, केंद्र सरकार ने एफआरपी दर बढ़ाकर 3,050 रुपये प्रति टन गन्ना कर दिया है. एफआरपी तय होने के बाद भी किसानों को उचित दाम नहीं मिल रहा है. गन्ने की तौल के समय प्रति लोड 1-2 टन कम दिखाकर फैक्ट्रियां गन्ना किसानों के साथ धोखा कर रही हैं.

किसान नेता रवि सिद्दान्ना (Ravi Siddanna) ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि सरकार ने आदेश दिया है कि चीनी मिलें गन्ने के खेत से कारखाने तक की दूरी के आधार पर कटाई और परिवहन दरों को तय करें. लेकिन, फैक्ट्रियां एक ही कीमत तय कर रही हैं. कटाई व ढुलाई की दर से औसतन 750-1000 रुपए प्रति टन का भुगतान किया जा रहा है इससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है.

मांड्या जिला के एक किसान नेता अन्नय्या ने कहा, गन्ना मंड्या जिले की भी मुख्य फसल है. यहां भी सैकड़ों किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. यहां गन्ने का वर्तमान बाजार मूल्य 2700 रुपये प्रति टन है, लेकिन जुताई, जुताई, कटाई, परिवहन आदि के पर 2700 रुपये से अधिक खर्च हो रहा है.

उन्होंने कहा कि हाल ही में मुख्य रूप से गन्ना मूल्य वृद्धि की मांग को लेकर जिले में 109 दिवसीय संघर्ष किया गया. इस पर किसी का ध्यान नहीं गया. और अब तक एक रुपया भी नहीं बढ़ाया गया है. सत्ताधारी सरकारें बस इतना कहती हैं कि हम किसानों के पक्ष में हैं. यह सिर्फ आज की बात नहीं है, पिछली सभी सरकारों की यही कहानी है. इसलिए समाज को जागना चाहिए. उन्होंने युवाओं, महिलाओं को महत्व देने वाले और किसानों की परवाह करने वाले राजनीतिक दलों को वोट देने की अपील की है.

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Last Updated : Apr 23, 2023, 2:45 PM IST

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