हैदराबाद :कर्नाटक से शुरू हुआ हिजाब विवाद (Karnataka Hijab Row) देश ही नहीं विदेशों में भी चर्चा का विषय बना हुआ है. कर्नाटक से उठा यह विवाद अब सियासी तूफान की तरह जगह-जगह उठने लगा है. इस मसले पर पक्ष-विपक्ष में बहसबाजी भी तेज हो गई है. हालांकि नियमों को लेकर पूरे देश में एकरुपता नहीं है.
कर्नाटक में स्कूल ड्रेस नीति
राज्य में सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में सभी छात्रों द्वारा स्कूल यूनिफॉर्म नीति का पालन किया जाना चाहिए. सरकारी स्कूलों में वर्दी का रंग स्थानीय स्कूल विकास परिषद द्वारा तय किया जाना चाहिए. निजी स्कूलों के प्रबंधन को वर्दी प्रणाली तय करने की स्वतंत्रता है. पीयू कॉलेजों के लिए विशेष वर्दी अनिवार्य नहीं है.
पीयू कॉलेज प्रबंधन (सरकारी और निजी स्थानीय कॉलेज प्रबंधन परिषद दोनों) के पास यूनिफॉर्म सिस्टम तय करने के विकल्प हैं (यदि वे चाहें तो कुछ कॉलेज यूनिफॉर्म सिस्टम से बाहर हो सकते हैं). हालिया राज्य सरकार के आदेश (5 फरवरी) के अनुसार स्पष्ट रूप से सभी सरकारी स्कूलों (केवल कक्षा 1 से 10 वीं के लिए) को स्कूल वर्दी नीति का पालन करना चाहिए जो राज्य सरकार या एसडीएमसी द्वारा तय की जाती है. निजी स्कूलों को एक समान प्रणाली का पालन करना चाहिए जो स्कूल प्रबंधन और अभिभावक परिषद द्वारा तय किया जाता है. पीयू कॉलेजों के लिए राज्य सरकार के अनुसार ड्रेस कोड अनिवार्य नहीं है.
पंजाब-हरियाणा में क्या है स्थिति
पंजाब और हरियाणा में शिक्षण संस्थान हो या फिर कोर्ट या बैंक या अन्य स्थल यहां पर किसी भी तरह की पाबंदियां और नियम नहीं है. पंजाब और हरियाणा में सरकारी स्कूलों में सिख बच्चों द्वारा पगड़ी पहनने या कृपाण रखने और मुस्लिम बच्चों द्वारा टोपी पहनने या अन्य किसी धर्म के बच्चों द्वारा किसी भी तरह का धार्मिक चिन्ह धारण करने को लेकर कोई नियम नहीं बनाया गया है. बच्चे धार्मिक चिन्ह पहनकर स्कूल आ सकते हैं.
शिक्षा विभाग के अधिकारी ने बताया कि जब भी स्कूलों की वर्दी को लेकर नोटिफिकेशन जारी होता है तो उसमें सिर्फ यही शामिल किया जाता है कि लड़के क्या ड्रेस पहनेंगे लड़कियां कौन से कपड़े पहनेंगी. कपड़े किस रंग के होंगे. इसके अलावा नोटिफिकेशन में कोई बात में नहीं की जाती. हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रविंद्र ढुल कहते हैं कि कोर्ट हो या अन्य सार्वजनिक स्थल पंजाब और हरियाणा में सिखों द्वारा पगड़ी पहनने और कृपाण को धारण करने को लेकर कोई भी पाबंदी नहीं है. साथ ही किसी भी धर्म के प्रतीक को पहनने को लेकर भी कोई पाबंदियां या नियम नहीं हैं.
दिल्ली में ड्रेस कोड है, गाइडलान नहीं
दिल्ली में स्कूलों के प्रिंसिपल और शिक्षा विभाग के अधिकारियों से बात की गई तो पता चला कि यहां पर स्कूल यूनिफॉर्म ही छात्रों का ड्रेस कोड है. क्या नहीं पहनना है, इसे लेकर कोई गाइड लाइन नहीं है. सिर्फ क्या अनिवार्यताएं हैं, इसी का उल्लेख किया गया है. किसी धार्मिक परिधान को लेकर सरकार की ओर से स्पष्ट गाइड लाइन नहीं है.
हिमाचल में ड्रेस है जरुरी
हिमाचल प्रदेश में स्कूल ड्रेस को लेकर किसी भी तरह का कोई विशेष धार्मिक प्रावधान नहीं है. सभी के लिए निर्धारित स्कूल ड्रेस जरूरी है. हालांकि सिख छात्र पगड़ी पहनकर भी आते हैं
केरल में नहीं कोई पाबंदी
केरल में स्कूली शिक्षा के लिए शासी नियम केरल है. सरकारी स्कूलों में ड्रेस कोड पीटीए (माता-पिता शिक्षक संघ) द्वारा तय नहीं किया जाएगा. सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल और निजी स्कूल प्रबंधन द्वारा ही यह तय किया जाएगा. हिजाब या किसी भी धार्मिक चिन्ह के इस्तेमाल पर कोई पाबंदी नहीं है. लेकिन एक बात यह है कि यह ड्रेस के रंग से मेल खाएगा. डीपीआई द्वारा जारी आदेश के अनुसार सभी स्कूल धर्मनिरपेक्ष तरीके से चलेंगे. ईसाई संचालित प्राइवेट स्कूलों में लगभग सभी शिक्षक नन हैं और वे अपनी पारंपरिक पोशाक पहनती हैं. सरकारी स्कूलों में भी मुस्लिम महिला शिक्षिकाएं क्लास लेते समय हिजाब का इस्तेमाल करती हैं, जिस पर कोई प्रतिबंध नहीं हैं.
मुंबई के इस कॉलेज में दुपट्टा, बुर्का और घूंघट प्रतिबंधित
कर्नाटक के कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध का पूरे देश में विरोध हो रहा है. ऐसे में महाराष्ट्र के मुंबई में एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय द्वारा संचालित एमएमपी शाह कॉलेज में बुर्का, स्कार्फ पहनने वालों के कॉलेज में प्रवेश पर रोक लगा दी गई है. यह कॉलेज प्रॉस्पेक्टस नियम और विनियम कॉलम में कहा गया है. कॉलेज ने अपने प्रॉस्पेक्टस में स्पष्ट रूप से कहा है कि बुर्का, दुपट्टा और घूंघट पहनने वाले कॉलेज नहीं आ सकते.
असम के वैष्णव मठों में रहने वाले छात्र सफेद धोती पहनते हैं
असम के माजुली द्वीप में विशेष रूप से कुछ छात्रों के लिए अनूठा ड्रेस कोड है. माजुली द्वीप असम में वैष्णव संस्कृति का केंद्र है. इस वजह से पुरुष छात्र स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में जाते समय सूरिया (सफेद धोती) पहनते हैं. सूरिया (Suria) पहनना उनके लिए जरूरी है और उन्हें बहुत ही कम उम्र से इस तरह से प्रशिक्षित किया जाता है. सभी पुरुष छात्र जो इन सतराओं (वैष्णव मठों) के निवासी हैं, सूरिया पहनते हैं. पहले छात्र निचले हिस्से पर सूरिया और ऊपरी शरीर को ढकने के लिए कुर्ते पहनते थे. हालांकि बदलते समय के साथ उन्होंने टी-शर्ट और शर्ट को भी अपनाया है लेकिन सूरिया जस की तस बनी हुई है.
दिलचस्प बात यह है कि इन छात्रों को उनके दोस्तों और सहकर्मियों ने कभी भी बहिष्कृत नहीं किया. उन्हें किसी भी सामाजिक समूह में बहुत अधिक स्वीकार किया जाता है. माजुली द्वीप में स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्रों को सूरिया को चाय की चुस्की लेते और जींस और अन्य आधुनिक पोशाक पहने हुए दूसरों के साथ गपशप करते देखा जा सकता है.
यह भी पढ़ें- Karnataka Hijab Row: विवाद पर सियासत जारी, कहीं विरोध तो कहीं बयानों से हमला
यह भी पढ़ें- Karnataka Hijab Row: कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब विवाद बड़ी बेंच को भेजा
इन राज्यों में नहीं कोई नियम
जहां तक विभिन्न प्रकार के पहनावे और वर्दी का संबंध है तो झारखंड का कोई विशिष्ट धार्मिक प्रतीक नहीं है. जिस पर बैन लगा हो. पहनावे और वर्दी को लेकर बिहार में भी कोई विशिष्ट नियम नहीं हैं और न ही धार्मिक प्रतीक वर्गीकृत किए गए हैं. इसी तरह से राजस्थान राज्य में कोई निर्दिष्ट ड्रेस कोड या प्रतिबंध नहीं है. वहीं छत्तीसगढ़ में स्कूल यूनिफार्म ही छात्रों का ड्रेस कोड है. धार्मिक आधार पर कोई गाइडलाइन नहीं बनाई गई है.