हैदराबाद : कर्नाटक में मंगलवार को हिजाब विवाद हिंसक हो गया. राज्य में प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों में पथराव और लाठीचार्ज की घटनाएं सामने आईं. पथराव में कई छात्र घायल हो गए. छात्रों के विरोध के दौरान पथराव की घटनाओं की सूचना मिलने पर कर्नाटक पुलिस ने लाठीचार्ज किया. शिवमोग्गा में बापूजीनगर गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज के आसपास के इलाकों से भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस ने छात्रों और प्रदर्शनकारियों पर लाठियां बरसाईं. शिवमोग्गा में धारा 144 लागू कर दी गई है. यहां अतिरिक्त बल तैनात किया गया है. एहतियातन सरकार ने तीन दिनों के लिए सभी स्कूलों और कॉलेजों को बंद कर दिया है.
विरोध का वीडियो आया सामने
दरअसल कॉलेजों में यूनिफॉर्म के साथ हिजाब (मुस्लिम महिलाओं द्वारा सार्वजनिक रूप से पहना जाने वाला सिर ढंकना) पहनने के मुद्दे ने कर्नाटक राज्य में शिक्षा प्रणाली को प्रभावित करने वाली धार्मिक प्रथाओं को लेकर एक तीखी बहस छेड़ दी है. हालांकि वर्तमान में यह मामला हाईकोर्ट में लंबित है. सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार हाई कोर्ट ने इस मामले की तह में जाने के लिए कुरान की कॉपी मंगाई है .ऐसे में जानना जरूरी है कि हिजाब को लेकर क्या मान्यता है और उसके पक्ष और विरोध में लोगों की राय है.
क्या है विवाद
कर्नाटक में हिजाब विवाद की कई घटनाएं सामने आई हैं. मुस्लिम छात्राओं को हिजाब में कॉलेजों या कक्षाओं में जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है. कुछ हिंदू छात्र हिजाब के जवाब में भगवा शॉल पहनकर शैक्षणिक संस्थानों में आ रहे हैं. यह मुद्दा जनवरी में उडुपी के एक सरकारी महाविद्यालय से शुरू हुआ था. यहां छह छात्राएं निर्धारित ड्रेस कोड का उल्लंघन कर हिजाब पहनकर कक्षाओं में आई थीं. इसके बाद इसी तरह के मामले कुंडापुर और बिंदूर के कुछ अन्य कॉलेजों से भी आए. कर्नाटक के उडुपी के गवर्नमेंट गर्ल्स प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज में छह छात्राओं को हिजाब पहनने की अनुमति नहीं देने के विवाद ने राज्य के शिक्षा मंत्री बी.सी. नागेश ने इसे एक 'राजनीतिक' कदम करार दिया और पूछा कि क्या शिक्षण संस्थान धार्मिक केंद्रों में बदल गए हैं. कुल मिलाकर मामला हाई कोर्ट तक पहुंच गया है. कई जगह तनाव देखते हुए मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने स्कूल-कॉलेज तीन दिन के लिए बंद करने के आदेश दिए हैं.
धर्मिक मान्यता पर कोर्ट ने ये किया सवाल
कुरान की बात की जाए तो उसकी आयतों में, हिजाब शब्द का अर्थ एक परदा है. मामला हाई कोर्ट में है इसलिए कोर्ट ने भी पूछा कि कुरान का कौन सा पृष्ठ कहता है कि हिजाब अनिवार्य है. जज ने कोर्ट के पुस्तकालय से कुरान की एक प्रति भी मांगी. इसने याचिकाकर्ता से यह समझने के लिए पवित्र पुस्तक में से पढ़ने के लिए भी कहा कि ऐसा कहां कहा गया है. पीठ ने यह भी पूछा कि क्या सभी परंपराएं मौलिक प्रथाएं ही हैं और उनका अधिकार क्षेत्र क्या है.
पीठ ने यह भी पूछा कि क्या उन्हें सभी जगहों पर एक्सरसाइज (अभ्यास) करना होगा. इसने एक समय सरकार से सवाल किया कि वे दो महीने के लिए हिजाब की अनुमति क्यों नहीं दे सकते और समस्या क्या है?
इस बीच, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि सरकार केवल उन मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है जो धर्म के अनुसार मौलिक नहीं हैं. सरकार उन चीजों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती जो मौलिक हैं.
याचिकाकर्ता ने दलील देते हुए कहा, सरकार को मामले में उदारता दिखानी चाहिए. मामले को धर्मनिरपेक्षता के आधार पर तय नहीं किया जा सकता. सरकार को वर्दी के रंग के हिसाब से हिजाब पहनने की अनुमति देनी चाहिए. अनुमति लेनी होगी. परीक्षा समाप्त होने तक अनुमति देनी होगी. इसके बाद वे मामले पर फैसला ले सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि हिजाब पहनना भावनात्मक मुद्दा नहीं बनना चाहिए.
संविधान में क्या, कोर्ट के ये फैसले भी हैं नजीर
संविधान का अनुच्छेद 25 (1) अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, उसका पालन करने और प्रचार करने के लिए स्वतंत्र रूप से अधिकार की गारंटी देता है. जिसका अर्थ है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि इस स्वतंत्रता का प्रयोग करने में कोई हस्तक्षेप या बाधा नहीं है. हालांकि, सभी मौलिक अधिकारों की तरह, राज्य सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता, स्वास्थ्य और अन्य राज्य हितों के आधार पर अधिकार को प्रतिबंधित कर सकता है. वर्षों से सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्धारित करने के लिए यह पाया है कि किन धार्मिक प्रथाओं को संवैधानिक रूप से संरक्षित किया जा सकता है और क्या अनदेखा किया जा सकता है. 1954 में, सुप्रीम कोर्ट ने शिरूर मठ मामले में कहा था कि 'धर्म' शब्द में एक धर्म के लिए 'अभिन्न' सभी अनुष्ठानों और प्रथाओं को शामिल किया जाएगा.
'व्यक्तिगत अधिकार को लागू करने की मांग नहीं कर सकते'
चूंकि बात हिजाब की है ऐसे में केरल उच्च न्यायालय के दो फैसले का जिक्र करना जरूरी है. 2015 में दो याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसमें अखिल भारतीय प्री-मेडिकल प्रवेश के लिए ड्रेस कोड के नुस्खे को चुनौती दी गई थी, जिसमें 'आधी आस्तीन वाले हल्के कपड़े, जिसमें बड़े बटन, ब्रोच / बैज, फूल आदि नहीं थे' पहनने का प्रावधान था. केंद्रीय स्कूल शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) का तर्क था कि ऐसे कपड़ों के भीतर वस्तुओं को छुपाकर अनुचित तरीकों का इस्तेमाल नहीं हो सकेगा. केरल एचसी ने सीबीएसई को उन छात्रों की जांच के लिए अतिरिक्त उपाय करने का निर्देश दिया जो अपने धार्मिक रिवाज के अनुसार पोशाक पहनना चाहते हैं.
हालांकि एक अन्य मामले में, एक स्कूल द्वारा निर्धारित वर्दी के मुद्दे पर केरल उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने अलग तरीके से फैसला सुनाया. एक पिता चाहते थे कि उनकी बेटियां सिर पर स्कार्फ और पूरी बाजू की शर्ट पहनें. स्कूल ने हेडस्कार्फ़ की अनुमति देने से इनकार कर दिया. मामला कोर्ट पहुंचा. न्यायमूर्ति मोहम्मद मुस्ताक ने कहा, 'याचिकाकर्ता संस्था के व्यापक अधिकार के खिलाफ अपने व्यक्तिगत अधिकार को लागू करने की मांग नहीं कर सकते.