बेंगलुरु :कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि एक मुस्लिम पुरुष अपनी पूर्व पत्नी की इद्दत अवधि के बाद भी उसका भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है. अगर वह अविवाहित रहती है और खुद का भरण-पोषण नहीं कर सकती है, भले ही व्यक्ति द्वारा उसे मेहर की रकम अदा कर दी गई हो.
बता दें, इस्लाम धर्म में इद्दत एक प्रक्रिया है. पति के निधन या तलाक के बाद एक महिला को एक निर्धारित अवधि के लिए कुछ शर्तों का पालन करना होता है, जिसे इद्दत कहा जाता है.
जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित ने कहा कि मुसलमानों के बीच विवाह एक अनुबंध होता है. यही स्थिति कुछ न्यायोचित दायित्वों को जन्म देती है. ऐसा विवाह तलाक द्वारा खत्म कर दिया जाता है, लेकिन महिला-पुरुष के बीच सभी कर्तव्य और दायित्व समाप्त नहीं होते हैं. कानून में, नए दायित्व भी उत्पन्न हो सकते हैं, उनमें से एक व्यक्ति का परिस्थितिजन्य कर्तव्य है कि वह अपनी पूर्व पत्नी को आजीविका प्रदान करे, जिसका तलाक हुआ है.
अदालत ने स्पष्ट किया कि अविवाहित पूर्व पत्नी को भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार है, जोकि उसकी आवश्यकता है.
क्या है मामला