चंडीगढ़: हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी की पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनने के बाद हर तरफ इस जीत को लेकर राजनीतिक विश्लेषक अपना-अपना आकलन कर रहे हैं. कोई इस जीत को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की सफलता और उनके एक परिपक्व नेता बनने की ओर बढ़ते कदम के तौर पर देख रहे हैं तो कोई इस पर सियासी मुद्दों पर आधारित विश्लेषण कर रहा है.
कर्नाटक जीत और रणदीप सुरजेवाला:भले ही विश्लेषण कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी को कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों में से 135 सीटें मिलने पर अपने-अपने आकलन कर रहे हो. लेकिन, पार्टी की इस जीत में हरियाणा के दिग्गज नेता राज्यसभा सांसद और कर्नाटक कांग्रेस के प्रभारी रणदीप सुरजेवाला और उनकी टीम का भी अहम योगदान है. कर्नाटक चुनाव को लेकर उनकी बनाई गई रणनीति का पार्टी को लाभ हुआ है. इसको लेकर राजनीतिक मामलों के जानकार प्रोफेसर गुरमीत सिंह कहते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि रणदीप सुरजेवाला और उनकी टीम ने कर्नाटक में जिस तरीके से काम किया उससे पार्टी को सफलता मिली है.
'सुरजेवाला का कर्नाटक जीत से बढ़ेगा कद': रणदीप सुरजेवाला के राज्यसभा सांसद बनने से पहले वे कांग्रेस पार्टी के कम्युनिकेशन इंचार्ज थे. इसके साथ ही पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कर्नाटक के प्रभारी भी रहे. रणदीप सुरजेवाला को पहली बार किसी राज्य के प्रभारी के तौर पर इंडिपेंडेंटली काम करने का मौका मिला. कर्नाटक प्रभारी के तौर पर उन्होंने जिस तरीके से पार्टी को पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लाया उसने उनके कद को पार्टी में और बढ़ा दिया है. राजनीतिक मामलों के जानकार प्रोफेसर गुरमीत सिंह कहते हैं कि जब कोई नेता पार्टी की जीत में अहम योगदान निभाता है तो निश्चित तौर पर ही उसका पार्टी के अंदर कद भी बढ़ता है और उस नेता का खुद का आत्मविश्वास भी बढ़ता है.
'रणदीप सुरजेवाला की रणनीति रही कामयाब':कर्नाटक प्रभारी के तौर पर रणदीप सुरजेवाला को लेकर कहा जाता है कि उन्होंने ही पार्टी हाईकमान को चुनाव से एक महीने पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा करने की सलाह दी थी. माना जाता है कि उनकी इस सलाह के पीछे जो उनका तर्क था वह यह था कि, अगर कोई विरोध भी करता है तो उसको शांत करने का भी पार्टी के पास मौका रहेगा, और चुनाव करीब आते ही किसी भी तरह की गुटबाजी पर नियंत्रण किया जा सकेगा. राजनीतिक मामलों के जानकार विधायक गुरमीत सिंह कहते हैं कि चुनाव जीतना आसान नहीं होता है. उसके लिए एक लंबी चौड़ी रणनीति तैयार करनी पड़ती है. जिसे जमीन पर उतार कर उसे अमलीजामा पहनाया जाता है. कर्नाटक में चुनावी सफलता कांग्रेस की इस रणनीति का ही परिणाम है.
'कर्नाटक में दिखाई रणनीतिक सूझबूझ': इसके साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया और डीके शिव कुमार के साथ मिलकर जिस तरीके से उन्होंने पूरे चुनाव अभियान को जारी रखा, वह भी उनकी और उनकी टीम की रणनीतिक सूझबूझ को दर्शाता है. उन्होंने पार्टी के अंदर किसी भी तरह की गुटबाजी को चुनाव के दौरान नहीं पनपने दिया. साथ ही कर्नाटक के राजनीतिक मुद्दों को किस तरह से चुनाव प्रचार के दौरान आगे बढ़ाना है, उसको लेकर भी उनकी रणनीति कामयाब रही. राजनीतिक मामलों के जानकार गुरमीत सिंह कहते हैं कि किसी भी नेता को उस प्रदेश के राजनीतिक मुद्दों की समझ होना जरूरी है. जब नेता को इसकी समझ होती है तो उसका फायदा पार्टी को मिलता है.
बीजेपी में भी सेंध मारने में रहे कामयाब:इतना ही नहीं कर्नाटक बीजेपी के बड़े चेहरों को कांग्रेस में शामिल करने में भी वे और उनकी टीम सफल रहे. फिर चाहे बात पूर्व मुख्यमंत्री रहे जगदीश शेट्टर की हो या फिर बीजेपी के पूर्व विधायक विश्वनाथ पाटिल हेबबल और अरविंद चौहान की हो. उन्होंने अपनी रणनीति के तहत बीजेपी में भी सेंधमारी कर कांग्रेस की जीत को सुनिश्चित बनाने में योगदान दिया.