दावणगेरे (कर्नाटक) : रोशनी की त्योहार दीपावली पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन लोगों के द्वारा नए कपड़े पहनकर और पटाखे फोड़कर त्योहार मनाने की प्रथा है. इससे इतर जिले के लोकिकेरे के ग्रामीणों द्वारा इस त्योहार को नहीं मनाया जाता है. बताया जाता है कि पिछले कुछ सदियों से इस शहर के लोगों ने दीपावली को मनाना बंद कर दिया है. कहा जाता है कि अतीत में त्योहार के दिन होने वाली बुराई की वजह से दीपावली के त्योहार को मनाना छोड़ दिया गया था.
वहीं ग्रामीणों का कहना है कि त्योहार के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करने की पीढ़ी-दर-पीढ़ी यही परंपरा चली आ रही है. अनुसूचित समुदाय के कई लोगों के अलावा नेताओं और चरवाहों की आबादी वाले इस गांव में दीपावली नहीं मनाई जाती है. यह व्यवस्था गांव के बुजुर्गों द्वारा दो सौ वर्षों से भी अधिक समय से चलायी जा रही है. हालांकि अधिक ग्रामीण विजयादशमी और महालया अमावस्या के दिन ज्येष्ठ उत्सव करते हैं. उस समय उनके द्वारा दीपावली की तरह जश्न मनाया जाता है. इसके अलावा ग्रामीणों का मानना है कि कि अगर दीपावली के दिन त्योहार मनाया गया तो ज्यादा अशुभ होगा. दीपावली के त्योहार के दौरान वे उत्सव मनाना छोड़ देते हैं और दूसरे शहरों में बसे अपने रिश्तेदारों के घर चले जाते हैं और भोजन और दावत करते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि दीपावली केवल लोकिकेरे गांव में ही नहीं मनाई जाती है.