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Karnataka Assembly Election: बेलगाम जिले में पार्टियां नहीं, बल्कि दिग्गज नेताओं का दबदबा है ज्यादा, क्या इस बार भी चलेगा उनका जादू?

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियां जीत के लिए पूरी ताकत झोंक रही हैं. वहीं बेलगाम जिले में मौजूद विधानसभा सीटों पर पार्टी से ज्यादा नेताओं का व्यक्तिगत रसूख उन्हें जीत दिलाता है. यहां हर विधानसभा सीट पर एक परिवार का दबदबा लंबे समय से बना हुआ है. पढ़िए इसे लेकर हमारी रिपोर्ट...

Personal dominance on seats in Belgaum district
बेलगाम जिले में सीटों पर व्यक्तिगत दबदबा

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Published : May 2, 2023, 10:48 PM IST

बेलगाम: कर्नाटक के बेलगाम जिले में पार्टी से ज्यादा व्यक्तिगत और पारिवारिक रसूख चुनाव में काम आता है. यहां के ज्यादातर राजनेता किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ें, लेकिन वे जीतने का दम रखते हैं. जी हां जराकीहोली परिवार, सावदी परिवार, कट्ठी परिवार, हुक्केरी परिवार और जोले परिवार, यहां के परिवारों की प्रतिष्ठा किसी भी पार्टी से ज्यादा है. साथ ही उनके विधानसभा क्षेत्र के मतदाता पार्टी के बजाय इन परिवारों को प्राथमिकता देते रहे हैं.

बेलगाम के नेता हैं रमेश: लगातार छह बार जीत चुके रमेश जराकीहोली अब सातवीं बार चुनाव लड़ रहे हैं. वे पांच बार कांग्रेस से जीते और उपचुनाव में बीजेपी से जीते. व्यक्तिगत रसूख से किसी भी पार्टी में चुनाव लड़कर जीतने में रमेश को महारत हासिल है. लेकिन इस बार तस्वीर थोड़ी बदली हुई है, गोकाका में पंचमसाली समुदाय की बड़ी संख्या की पृष्ठभूमि में कांग्रेस ने डॉ. महंतेश कडाडी को टिकट दिया है. इससे खिन्न अशोक पुजारी का विद्रोह शांत हो गया.

जेडीएस उम्मीदवार चंदन गिद्दनवारा ने भी कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान किया है. लक्ष्मण सावदी मूक क्रांति के नाम पर रमेश जरकीहोली को हराने के लिए तैयार हो रहे हैं, जो अठानी में लक्ष्मण सावदी को हराने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. साथ ही, लक्ष्मी हेब्बलकर के रमेश जरकीहोली की जीत में बाधा बनने की संभावना है. इन सब से परे, हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा कि क्या रमेश फिर से अपने दम पर जीत पाएंगे.

यमकनमर्दी में सतीश का दबदबा: सतीश जरकीहोली ने यमकनमर्दी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के गठन के बाद से लगातार तीन बार जीत हासिल की है, जो एक अनुसूचित जनजाति आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र है. यहां के मतदाताओं ने निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी के बजाय सतीश के व्यक्तिगत रसूख को ठीक बताया है. इस बार सतीश के प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा प्रत्याशी बसवराज हुंदरी मैदान में हैं, जबकि पिछली दो बार भाजपा से चुनाव लड़ चुके मारुति जेडीएस से मैदान में उतरे हैं, क्योंकि उन्हें इस बार भाजपा से टिकट नहीं मिला. हालांकि सीएम बसवराज बोम्मई, किच्छा सुदीप और अन्य ने प्रचार किया है, सतीश जराकीहोली के फिर से जीतने की संभावना अधिक है. क्योंकि मारुति की टक्कर से वोट बंट सकता है और बीजेपी हार सकती है.

अथानी में सावदी का व्यक्तिगत प्रभाव: भाजपा का टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व डीसीएम लक्ष्मण सावदी का भी अठानी में अपना निजी प्रभाव है. लगातार तीन बार जीत चुके सावदी पिछली बार हारे थे. अब रमेश जरकीहोली फिर से चुनाव लड़ रहे लक्ष्मण सावदी को हराने की कोशिश कर रहे हैं और बीजेपी के तमाम नेताओं ने अठानी पर निशाना साधा है. बीजेपी टीम किसी भी कीमत पर महेश कुमथल्ली को जिताने की रणनीति बना रही है.

हुक्केरी में कट्ठी परिवार का वर्चस्व: स्वर्गीय उमेश कट्टी, जो सात बार विधायक चुने गए, जनता दल से दो बार, जद (यू) से एक बार, जद (एस) से एक बार, भाजपा से तीन बार जीत चुके हैं. साथ ही उमेश कत्थी के राजनीति में आने से पहले उनके पिता विश्वनाथ कत्थी एक बार जनता पार्टी से जीते थे. बाद में उनकी मृत्यु हो गई. अब उमेश कट्टी के निधन के बाद उनके बेटे निखिल ने बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा है. कांग्रेस की तरफ से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री एबी पाटिल फिर चुनाव लड़े हैं. कुल मिलाकर देखना यह होगा कि क्या कट्ठी परिवार का दबदबा फिर कायम रहेगा या वोटर एबी पाटिल के आगे झुकेंगे.

बेलगाम ग्रामीण के लिए लक्ष्मी हेब्बलकर की पुष्टि?

विधायक लक्ष्मी हेब्बलकर बहुत कम समय में एक शक्तिशाली राजनेता के रूप में विकसित हो गई हैं. लक्ष्मी हेब्बलकर, जिन्होंने पार्टी पर व्यक्तिगत प्रभाव विकसित किया है, बेलगाम ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र के हर घर से परिचित हैं. स्वयं की शक्ति के साथ-साथ क्षेत्र में चलायी गयी विकास परियोजना, मराठा समाज सहित सभी समाजों से उनका अविच्छिन्न संबंध, अराशिना कुमकुम कार्यक्रम हर गांव में आयोजित किया जाता है, राजहंसगड़ा किले पर शिवाजी की मूर्ति की स्थापना लक्ष्मी हेब्बलकर के लिए एक प्लस होने की संभावना है.

पिछले चुनाव में लक्ष्मी की जीत के लिए कड़ी मेहनत करने वाले पूर्व मंत्री रमेश जरकिहोली ने तय किया है कि वे इस बार लक्ष्मी हेब्बलकर को हराएंगे. अब इंतजार करना होगा और देखना होगा कि वह किस हद तक अपने शिष्य नागेश मनोलकर को बीजेपी का टिकट दिलाने में कामयाब होंगे.

बालचंद्र का जरकीहोली व्यक्तिगत रसूख: व्यक्तिगत रसूख 60 वर्षों से अधिक समय से अराभावी निर्वाचन क्षेत्र में निहित है. दिवंगत वीएस कौजलागी ने पांच बार अपने दम पर जीत दर्ज की थी. अब बालचंद्र जरकीहोली भी अपने निजी करिश्मे से लगातार पांच बार जीत चुके हैं और उन्हें छठी बार जीत का भरोसा है. कांग्रेस से अरविंद दलवई, सामाजिक कार्यकर्ता भीमप्पा गड़ाडा ने बागी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा है, जिन्हें कांग्रेस का टिकट नहीं मिला. जेडीएस पार्टी से दो बार जीत चुके बालचंद्र तीन बार बीजेपी से विधायक रह चुके हैं. इस प्रकार अराभवी निर्वाचन क्षेत्र के लोग पार्टी के बजाय व्यक्ति को मान्यता देते रहे हैं.

चिक्कोडी पर भी हुक्केरी परिवार का प्रभुत्व: चिक्कोडी-सदलगा निर्वाचन क्षेत्र पांच बार विधायक, विधान परिषद के दो बार सदस्य, एक बार सांसद रहे प्रकाश हुक्केरी के नियंत्रण में है. पिता के नक्शेकदम पर चलने वाले गणेश हुकेरी दो बार जीत चुके हैं. अब उन्हें हैट्रिक जीत का पूरा भरोसा है. पूर्व मंत्री स्वर्गीय उमेश कट्टी के भाई पूर्व सांसद रमेश कट्टी ने भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था और गणेश हुक्केरी को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है.

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निप्पनी में प्रभावशाली है जोले: मंत्री शशिकला जोले ने निप्पानी विधानसभा क्षेत्र में अपना गढ़ बना लिया है और अब वह तीसरी बार जीतने की कोशिश कर रही हैं. इसके लिए उनके पति अन्ना साहब जोले समर्थन में खड़े हुए और जोरदार प्रचार किया. कांग्रेस के पुराने शेर काकासाहेब पाटिल मैदान में हैं, जबकि रमेश जराकीहोली के करीबी उत्तम पाटिल ने एनसीपी से उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा है.

कुल मिलाकर बेलगाम जिले की इन आठ विधानसभा सीटों पर व्यक्तिगत रसूख का ही बोलबाला है और इस परिवार का अब तक दबदबा रहा है. यह देखने के लिए हमें 13 मई तक इंतजार करना होगा कि क्या यह इस बार भी जारी रहेगा या यहां के मतदाता इनके रसूख पर पूर्ण विराम लगा देंगे.

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