नई दिल्ली : कन्हैया कुमार कांग्रेस (Kanhaiya Kumar Congress) में शामिल हो गए हैं. जिग्नेश मेवानी कांग्रेस (Jignesh Mevani Congress) में शामिल नहीं हुए हैं. जिग्नेश ने कहा है कि कुछ तकनीकी अड़चनों के कारण अभी कांग्रेस में शामिल नहीं हो सके हैं. बता दें कि कांग्रेस में शामिल हुए कन्हैया (Kanhaiya Joins Congress) सीपीआई नेता रह चुके हैं. इससे पहले कन्हैया जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष रहे थे. गौरतलब है कि फिलहाल, जिग्नेश मेवानी गुजरात के निर्दलीय विधायक हैं. उन्होंने कहा कि वैचारिक रूप से वे कांग्रेस से जुड़ गए हैं.
कन्हैया कुमार-जिग्नेश मेवानी कांग्रेस में शामिल हुए इस दौरान कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि इन्होंने (कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी) लगातार मोदी सरकार और हिटलरशाही की नीति के खिलाफ संघर्ष किया. हमारे इन साथियों को लगा कि ये आवाज और बुलंद हो पाएगी जब ये कांग्रेस और राहुल गांधी की आवाज में मिलकर एक और एक ग्यारह की आवाज बन जाएगी.
कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला और कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास ने संवाददाता सम्मेलन में दोनों नेताओं का स्वागत किया. वेणुगोपाल ने कहा कि कन्हैया कुमार देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रतीक हैं. उनके शामिल होने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ेगा. जिग्नेश जी के भी शामिल होने से पार्टी को मजबूती मिलेगी.
कन्हैया कुमार-जिग्नेश (फाइल फोटो) भक्त चरण दास ने कहा कि कन्हैया और जिग्नेश ने भगत सिंह की जयंती पर ऐतिहासिक निर्णय लिया है. दोनों ने कमजोर और बेसहारा लोगों की आवाज उठाई है. राहुल जी के साथ इन दोनों नेताओं का विचारधारा का मेल भी है. ये दोनों नेता कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण योगदान करेंगे.
कन्हैया कुमार ने कहा कि करोड़ों नौजवानों को लगने लगा है कि कांग्रेस नहीं बचेगी, तो देश भी नहीं बचेगा और ऐसे में वह लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए कांग्रेस में शामिल हुए हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि देश में वैचारिक संघर्ष को कांग्रेस ही नेतृत्व ही दे सकती है.
उन्होंने अपनी पुरानी पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का धन्यवाद किया.
उन्होंने कहा कि मुझे महसूस होता है कि इस देश की सत्ता में एक ऐसी सोच के लोग काबिज हैं, जो इस देश की चिंतन परंपरा, संस्कृति, इसके मूल्य, इतिहास और वर्तमान को खत्म कर रहे हैं. इस सोच से लड़ना है... देश की सबसे पुरानी और सबसे लोकतांत्रिक पार्टी में इसलिए शामिल होना चाहते हैं क्योंकि यह पार्टी नहीं बचेगी, तो देश नहीं बचेगा.
उन्होंने जोर देकर कहा कि आज देश को भगत सिंह के 'साहस', अम्बेडकर की समानता और गांधी की 'एकता' की जरूरत है.
जिग्नेश ने कहा कि देश के युवाओं और संविधान में विश्वास करने वालों को मिलकर लड़ाई लड़नी है क्योंकि देश अब तक के सबसे अप्रत्याशित संकट का सामना कर रहा है.
इससे पहले शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती के अवसर पर इन दोनों युवा नेताओं और हार्दिक पटेल ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की.
बता दें हाल ही में कन्हैया कुमार ने राहुल गांधी से मुलाकात की थी, जिसके बाद से ही राजनीतिक गलियारे में अटकलें तेज हो गई थीं.
कन्हैया की मोदी विरोध पहचान
कन्हैया कुमार छात्र आंदोलन से निकले हैं. सीपीआई के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन से जुड़े हुए रहे हैं. वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं. उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार के बेगूसराय से चुनाव लड़ा था और बीजेपी के उम्मीदवार गिरिराज सिंह से हार गए थे. 2016 में कन्हैया कुमार का जेएनयू अवतार काफी पॉपुलर हुआ था. राष्ट्रदोह कानून के खिलाफ आंदोलन, भड़काऊ भाषण, गिरफ्तारी के बाद कन्हैया वामपंथी राजनीति का नया चेहरा बनकर उभरे थे.
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जेएनयू से निकलने के बाद कन्हैया कुमार ने सीपीआई जॉइन की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बेगूसराय से बीजेपी के गिरिराज के खिलाफ ताल ठोंकी थी मगर करीब 22 प्रतिशत वोट हासिल करने के बावजूद वह हार गए थे. बेगूसराय में भूमिहार जाति के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है और कन्हैया कुमार भी भूमिहार हैं.
जिग्नेश मेवानी दलित आंदोलन का चेहरा
जिग्नेश मेवानी दलित आंदोलन का चेहरा रहे हैं. राजनीति में आने से पहले वह पत्रकार, वकील थे और फिर दलित एक्टिविस्ट बने और अब नेता हैं. मेवानी तब अचानक सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने वेरावल में उना वाली घटना के बाद घोषणा की थी कि अब दलित लोग समाज के लिए मरे हुए पशुओं का चमड़ा निकालने, मैला ढोने जैसा 'गंदा काम' नहीं करेंगे. इसके बाद से मेवानी देशभर की सुर्खियों में रहे हैं. वो अक्सर प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं.
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राहुल के करीबी छोड़ रहे कांग्रेस
वहीं, कांग्रेस में युवा नेता पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी या अन्य दलों का दामन थाम रहे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, अशोक तंवर, प्रियंका चतुर्वेदी, ललितेशपति त्रिपाठी जैसे कई युवा नेता कांग्रेस छोड़कर चले गए. ये सभी ऐसे नाम हैं, जिन्हें राहुल गांधी के सबसे प्रमुख करीबियों में गिना जाता था. राहुल के इस यूथ ब्रिगेड को कांग्रेस के भविष्य का चेहरा माना जाता था. इसके बाद भी कांग्रेस इन्हें पार्टी में रोककर नहीं रख सकी.
कांग्रेस में एक के बाद एक कई युवा नेता पार्टी छोड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ गुलाम नबी आजाद सहित तमाम बुजुर्ग नेता पार्टी में साइड लाइन हैं. माना जा रहा है कि युवा नेताओं के जाने से पैदा हुए वैक्यूम को भरने के लिए कांग्रेस कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी की एंट्री हुई है. दोनों ही नेता युवा हैं, आंदोलन से निकले हैं और अपनी पीढ़ी के युवाओं के बीच अच्छी पकड़ भी रखते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस कन्हैया, जिग्नेश और हार्दिक जैसे नेताओं की 'आउटसोर्स' करके युवाओं की पार्टी न रहने का ठप्पा हटाना चाहती है.