हैदराबाद: जब भी राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद की चर्चा होगी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का नाम जरूर आएगा. इस विवाद कल्याण सिंह को न सिर्फ अपनी सरकार गंवानी पड़ी थी, बल्कि उन्हें एक दिन के लिए तिहाड़ जेल जाना पड़ा था. वह कल्याण सिंह ही थे, जिन्होंने मुख्यमंत्री के पद होते हुए 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने से इनकार कर दिया था. इसका नतीजा यह रहा कि विवादित बाबरी ढांचे को कारसेवकों ने ध्वस्त कर दिया.
अवमानना के केस में मिली थी सांकेतिक सजा
अक्टूबर 1994 उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को एक दिन के लिए जेल की सजा हुई थी. दरअसल कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि बाबरी ढ़ांचे को कई नुकसान नहीं होने देंगे. बावजूद इसके 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने ढांचा गिरा दिया. इसके बाद कल्याण सिंह पर कोर्ट की अवमानना का केस चला. यह अवमानना की अर्जी मोहम्मद असलम नाम के युवक की ओर से दाखिल की गयी थी. 24 अक्टूबर 1994 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि, अदालत की अवमानना ने देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को प्रभावित किया है, इसलिए मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को सांकेतिक तौर पर एक दिन के लिए जेल भेजा जा रहा है. उन पर 20,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा रहा है.
सरकार गंवाने का कभी नहीं रहा कल्याण सिंह को मलाल
कल्याण सिंह राम मंदिर आंदोलन से लगातार जुड़े रहे. 90 के दौर में अटल बिहारी वाजपेयी को बाद बीजेपी के दूसरे ऐसे नेता थे, जिन्हें देखने और सुनने के लिए लोगों में दीवानगी थी. अपनी सभाओं में वह खुलेआम कहते रहे कि राम के लिए वह अपनी सत्ता को कई बार कुर्बान कर सकते हैं. उन्होंने कभी जेल की सजा पर अफसोस नहीं जताया. 30 जुलाई 2020 को मीडिया से बातचीत में कल्याण सिंह ने कहा कि बाबरी विध्वंस के बाद उनकी सरकार गिरा दी गई और उन पर जुर्माना लगा लेकिन इसका उन्हें कोई मलाल नहीं है. उनका कहना था कि यह फैसला मैंने लिया था और यह हिंदुस्तान के हित में था.
जब जेल में लगाई शाखा
ऐसा नहीं है कि वह सिर्फ एक बार जेल गए. घटना 1990 की है. विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में कारसेवा की घोषणा की थी. तब उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने हजारों कारसेवकों को गिरफ्तार किया था. इलाहाबाद की नैनी जेल में करीब साढ़े छह हजार कारसेवकों के साथ पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी बंद थे. तब उन्होंने जेल में ही शाखा लगाई थी.
आखिर क्या हुआ था 6 दिसंबर 1992 को
छह दिसंबर 1992 को विश्व हिंदू परिषद के आह्वान पर करीब डेढ़ लाख कारसेवक सांकेतिक कारसेवा करने अयोध्या पहुंचे थे. एक दिन पहले यानी पाँच दिसम्बर को दोपहर विश्व हिंदू परिषद मार्ग दर्शक मंडल ने औपचारिक निर्णय लिया था कि केवल सांकेतिक कारसेवा होगी. रिपोर्टस के अनुसार, अचानक भीड़ उग्र हो गई और कारसेवकों ने ढांचे को ध्वस्त कर दिया. हालांकि लिब्राहन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इसे सोची समझी साजिश करार दिया था.
जब भीड़ गुंबद ध्वस्त कर रही थी, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह कालिदास मार्ग स्थित आवास में थे. उनके साथ लालजी टंडन भी मौजूद थे. जब अयोध्या में कारसेवकों के उग्र होने की खबर लखनऊ पहुंची, उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक एस एम त्रिपाठी सीएम से मिलने पहुंचे. उन्होंने कल्याण सिंह से फायरिंग की इजाजत मांगी. सीएम ने पुलिस महानिदेशक को आंसू गैस और लाठी चार्ज कर हालात काबू करने का आदेश दिया. शाम होते -होते बाबरी मस्जिद ध्वस्त हो चुकी थी. कल्याण ने इसकी जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. मगर तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव की सलाह पर राष्ट्रपति ने कल्याण सरकार को बर्खास्त कर दिया और राष्ट्रपति शासन लगाने की घोषणा कर दी.
बीजेपी को मिला बड़ा फायदा
इस घटना के बाद भले ही कल्याण सिंह की सरकार चली गई, मगर बीजेपी को इससे राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा राजनीतिक फायदा मिला. बीजेपी गुजरात और महाराष्ट्र के अलावा हिंदी पट्टी में मजबूत हो गई. आगामी चुनावों राजस्थान, हिमाचल, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तरप्रदेश में उभरी. राम मंदिर आंदोलन का असर यह रहा कि 1996 के ग्यारहवीं लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीजेपी को 161 सीटों में से 52 उत्तरप्रदेश से मिली. मध्यप्रदेश से पार्टी के खाते में 27 सीटें आई. बिहार में भाजपा ने 18 सीटें जीतीं. महाराष्ट्र में भाजपा ने 16 सीटों पर जीत दर्ज की. गुजरात से 12 सीटों पर पार्टी को सफलता मिली.