हल्द्वानी: दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा मानी जाने वाली कैलाश मानसरोवर यात्रा (Kailas Mansarovar Yatra 2022) इस साल भी नहीं होगी. पिछले दो सालों से कोरोना के कारण ये यात्रा नहीं हो पाई है. हालांकि इस साल 12 जून को कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू होनी थी, जो सितंबर के दूसरे सप्ताह तक चलती है. लेकिन आखिर समय पर ये यात्रा रद्द कर दी है. हालांकि इस बार कैलाश मानसरोवर यात्रा कैंसिल करने के कारण स्पष्ट नहीं किया गया है.
कैलाश मानसरोवर यात्रा रद्द होने से केएमवीएन (कुमाऊं मंडल विकास निगम) को करीब 4 से 5 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है. इस यात्रा के रद्द होने से न सिर्फ केएमवीएन (कुमाऊं मंडल विकास निगम) को बड़ा नुकसान हुआ है, बल्कि यात्रा पड़ाव काठगोदाम से लेकर पिथौरागढ़ जिले में पड़ने वाले गुंजी तक के व्यापारी भी मायूस हुए हैं.
तीसरी बार कैंसिल हुई कैलाश मानसरोवर यात्रा पढ़ें- उत्तराखंड: ओम पर्वत से 'पार्वती' को उठा लाई पुलिस, शिव से विवाह पर अड़ी थी युवती बता दें कि कैलाश मानसरोवर यात्रा का पहला पड़ाव उत्तराखंड के काठगोदाम से शुरू होता है. इसके बाद यात्रा भीमताल से अल्मोड़ा और पिथौरागढ़-गूंजी-नाभीढांग होते हुए चीन तिब्बत बॉर्डर तक पहुंचती है. पिछले दो साल से कोरोना के कारण कैलाश मानसरोवर यात्रा रद्द हो रही है. कैलाश मानसरोवर यात्रा रद्द होने से केएमवीएन को तीन सालों में करीब 10 से 12 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है.
केएमवीएन के महाप्रबंधक एपी बाजपेयी का कहना है कि कैलाश मानसरोवर यात्रा का संचालन केंद्र सरकार करती है, लेकिन व्यवस्थाएं केएमवीएन के जिम्मे होती है. यात्रा संचालन के लिए केंद्र से किसी तरह का कोई दिशा-निर्देश नहीं मिले हैं. इस यात्रा के इस वर्ष भी न होने से उत्तराखंड में आर्थिक नुकसान भी हो रहा है. हालांकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर विदेश मंत्रालय से बातचीत करने की बात कही है.
पढ़ें-कैलाश मानसरोवर: यात्रा रद होने से कारोबार प्रभावित, कैसे चलेगी रोजी-रोटी?
कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए हर साल दिसंबर माह में देश भर से यात्रा में जाने वाले यात्रियों से आवेदन लिए जाते हैं. इसके बाद आवेदन जनवरी माह में विदेश मंत्रालय के तत्वावधान में पहली बैठक होती है. यात्रा को लेकर इस बार ना, तो दिल्ली में कोई बैठक हुई और ना ही किसी भी तरह की तैयारियां. जिसके बाद से ही इस यात्रा के रद्द होने के कयास लगने शुरू हो गए थे.
केएमवीएन से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 1981 में 3 दलों में 59 यात्रियों से ये यात्रा शुरू हुई. धीरे-धीरे विश्व पटल पर ख्याति प्राप्त करने के बाद यात्री दलों की संख्या लगातार बढ़ती गयी. अब यात्री दलों की संख्या बढ़कर 18 हो चुकी है. आंकड़ों के मुताबिक अब तक 460 दलों में 16,865 श्रद्धालु यात्रा कर चुके हैं. दिल्ली से शुरू होने वाली इस यात्रा में यात्रियों का दल दिल्ली से यात्रा करते हुए हल्द्वानी,अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, धारचूला, नजंग, बूंदी, गुंजी और लिपुलेख पड़ावों से होते हुए चाइना में प्रवेश करता है. इस तरह कैलाश मानसरोवर यात्रा कुल 18 दिन में सम्पन्न होती है. जबकि 18 दलों की यात्रा सम्पन्न होने में करीब 4 महीने लगते हैं. इस दौरान सीमान्त क्षेत्र में खासी रौनक देखने को मिलती थी.
पोनी पोर्टर का कारोबार चौपट: यात्रा रद्द होने से सीमांत क्षेत्र के करीब 300 पोनी पोर्टर का सीजनल रोजगार चौपट हो गया है. ये पोनी पोर्टर यात्रा के दौरान सामान ढोकर अपनी साल भर की रोजी-रोटी का जुगाड़ करते थे. यही नहीं यात्रा रद्द होने से सीमांत क्षेत्र के डेढ़ हजार से अधिक व्यापारियों का कारोबार भी प्रभावित हुआ है. जिनमें आम व्यापारियों के साथ ही हथकरघा, ऊनी उद्योग और जड़ी बूटी उद्योग से जुड़े व्यवसायी भी प्रभावित हुए हैं.