वाराणसी:जाती पाती पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई, महान संत कबीर साहब जिनकी आज जयंती मनाई जा रही है. कबीर साहब लहरतारा वाराणसी में एक तालाब में कमल पुष्प पर प्रकट हुए थे. इसके बाद उनका लालन-पालन नीरू और नीमा नाम के जुलाहे दंपति ने किया था. बचपन से ही उन्हें जाती-पाती और धर्म के ताने सुनने पड़ते थे.
वाराणसी में कबीर की प्राकट्य स्थली से लेकर उनकी कर्मस्थली के अलावा एक ऐसा स्थान भी है, जिसके बारे में कम लोग ही जानते हैं. कबीर पंथ के लिए यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी स्थान पर कबीर को गुरु मंत्र मिला था. वह गुरु मंत्र जिसने एक आम लड़के को कबीर की ओर अग्रसर किया. आइए आज कबीर जयंती पर आपको कबीर पंथ के उस महत्वपूर्ण स्थान के बारे में बताते हैं, जहां गुरु से गुरु मंत्र मिलने के बाद उन्होंने पूरे विश्व को एक अलग संदेश देने का प्रयास किया.
कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे. किस जाति और किस धर्म से थे यह भी किसी को नहीं पता. लेकिन, राम के अनन्य भक्त और बिना पढ़े-लिखे होने के बाद भी उनकी बातें, उनकी वाणी आज पूरे विश्व को एक मार्ग दिखाने का काम कर रही है. वैसे तो काशी नगरी विद्वानों और संतों की नगरी हमेशा से रही है. लेकिन, कबीर से जुड़ी कई ऐसी कहानियां भी हैं, जो काशी के अलग-अलग हिस्सों में आपको सुनने को मिल जाएंगी.
ऐसी ही कहानी वाराणसी के पंचगंगा घाट से जुड़ी हुई है. पंचगंगा घाट एक आम लड़के के कबीर बनने का साक्षी है. कबीर प्राकट्य स्थल लहरतारा के महंत आचार्य गोविंद दास का कहना है कि पंचगंगा घाट कबीर के संत कबीर बनने का सबसे बड़ा प्रमाण है. इसी घाट पर काशी के महान विद्वान और संत रामानंदाचार्य रहते थे.
कबीर एक बार उनसे मिलने पहुंचे और उन्हें अपने गुरु बनाने की इच्छा जाहिर करते हुए उनका चरण स्पर्श करने की कोशिश की. लेकिन रामानंदाचार्य नाराज हो गए और उनसे कहा कि तुम अभी बहुत छोटे हो यहां से जाओ और तुम अभी इस योग्य नहीं हो कि तुम्हें मैं अपना शिष्य बना लूं, लेकिन, कबीर ने उनसे ही शिक्षा लेने की धुन पकड़ ली. रोज उनके पास जाते और वहां से उनको यह कहकर लौटा दिया जाता कि तुम्हें शिक्षा-दीक्षा नहीं दूंगा. लेकिन, कबीर ने हट पकड़ ली और एक दिन जब रामानंदाचार्य जी सुबह सूर्य उदय से पहले घाटों की सीढ़ियों से उतरकर मां गंगा में स्नान करने जा रहे थे. उसी दौरान ब्रह्म मुहूर्त में कबीर वहां एक सीढ़ी पर जाकर लेट गए.
कबीर के सीने पर पड़ गया था रामानंदाचार्य का पैर