भोपाल: ज्योतिरादित्य सिंधिया यानी महाराज. इन दिनों राजनीति के पिच पर भी ऐसी बॉलिंग कर रहें हैं, कि सब बोल्ड हो रहें हैं. इनके कद के आगे सब इनके विरोधी अब बौने साबित हो रहें हैं. कभी ये कांग्रेस के पहली पंक्ति के नेता थे तो, अब इनकी पहचान भारतीय जनता पार्टी है. राजनीति का ककहरा इन्होंने घर से ही पढ़ा. ग्वालियर राजघराने की विरासत संभाले हैं तो सर्वविदित है कि राजनीति तो इनके DNA में है. 1 जनवरी 1971 को जन्में ज्योतिरादित्य कुर्मी मराठा परिवार के वारिस हैं.
पिता माधवराव सिंधिया की विमान हादसे में असामयिक मौत के बाद इन्होंने राज गद्दी संभाली और उन्हीं के रास्ते पर चलते हुए कांग्रेस के हो गए. समय के साथ इन्हें कांग्रेस में कई अहम पदों पर बिठाया भी गया लेकिन फिर धीरे धीरे इनका मोह भंग भी हुआ. वजह कई रहीं. खासकर वर्चस्व की लड़ाई.
मध्यप्रदेश कांग्रेस खेमों में बंटी थी. इनमें से दो बड़े अहम थे एक ओर दिग्विजय- कमलनाथ ग्रुप तो दूसरी ओर खड़े थे महाराज. जब सिंधिया कांग्रेस में थे, तब बीजेपी के साथ-साथ उनकी अपनी ही कांग्रेस पार्टी में उनके विरोधियों की कमी नहीं थी. दिग्विजय सिंह के खेमे से जुड़े लोग पार्टी में रहते हुए सिंधिया के लिए परेशानी खड़ी करने की कोशिश करते रहे लेकिन सिंधिया पर कभी इसका असर नहीं हुआ बल्कि विरोधियों को ही समय-समय पर मुंह की खानी पड़ी.
आपको बता दें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कैबिनेट मंत्री पद की शपथ लेने के बाद मीडिया से बातचीत के दौरान कहा प्रधानमंत्री मोदी जी ने और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मुझे जो जिम्मेदारी दी है. मैं उसका पूरी ईमानदारी से पालन करूँगा, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रधानमंत्री मोदी का आभार व्यक्त किया.
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कहां से प्राप्त की शिक्षा -दीक्षा
ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रारंभिक शिक्षा कैंपिनय स्कूल और देहरादून स्थित दून स्कूल से हुई. 1993 में इन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में बीए किया तो वहीं 2001 में इन्होंने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एमए किया.
यह भी कोई छुपी हुई बात नहीं कि भले ही मध्य-प्रदेश में बीजेपी की सरकार रही हो लेकिन ग्वालियर चंबल-अंचल में सिंधिया को सीधी टक्कर देना किसी के बूते की बात नहीं रही.
संक्षेप में राजनैतिक सफर