इंदौर: एक लड़की से दुष्कर्म के आरोपी लड़के को जमानत देने से इनकार करते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High Court) की इंदौर खंडपीठ ने ऐसे मामलों से निपटने के लिहाज से किशोर न्याय अधिनियम को पूरी तरह अपर्याप्त और अनुपयुक्त करार दिया है और पूछा है कि देश का कानून बनाने वालों की अंतरात्मा को झकझोरने के लिए कितनी और निर्भया (बलात्कार पीड़ितों) की कुर्बानियों की जरूरत है.
अदालत ने यह भी कहा कि यह अधिनियम 16 वर्ष से कम आयु के अपराधियों को जघन्य अपराध करने के लिए 'खुली छूट' (फ्री हैंड) देता है. सरकारी वकील पूर्वा महाजन (Public Prosecutor Purva Mahajan) ने शुक्रवार को बताया कि न्यायमूर्ति सुबोध अभयंकर की पीठ ने 15 जून को मामले की सुनवाई करते हुए एक लड़की के साथ दुष्कर्म के नाबालिग आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की. अदालत का यह आदेश 25 जून को जारी किया गया है.
अदालत ने कहा कि इस अदालत को यह कहने में भी दु:ख हो रहा है कि विधायिका ने अब भी दिल्ली के निर्भया मामले (Delhi's Nirbhaya case) से कोई सबक नहीं सीखा है. चूंकि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 15 के तहत जघन्य अपराधों में बच्चे की उम्र अब भी 16 साल से कम रखी गई है, जो 16 साल से कम उम्र के अपराधियों को जघन्य अपराध करने के लिए 'फ्री हैंड' देता है. अदालत ने कहा कि इस प्रकार स्पष्ट तौर पर जघन्य अपराध करने के बावजूद याचिकाकर्ता पर एक किशोर के रूप में मुकदमा चलाया जाएगा, क्योंकि वह इस किशोर न्याय अधिनियम की धारा 15 के प्रावधान के अनुरूप 16 साल से कम का है.