नई दिल्ली : ओबीसी समुदाय की सभी जातियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाए गए जस्टिस रोहिणी आयोग का कार्यकाल एक बार फिर 6 महीने के लिए बढ़ा दिया गया है. महीने भर पहले ही न्याय अधिकारिता मंत्रालय द्वारा यह जानकारी दी गई थी कि आयोग ने अपना कार्यकाल बढ़ाने की मांग नहीं की है और जुलाई अंत तक इसकी रिपोर्ट आ जाएगी. सवाल ये कि अगर कमीशन ने अपना कार्यकाल बढ़ाने की मांग नही क थी, तो क्यों सरकार इसे बढ़ाती जा रही है.
नाम न बताने की शर्त पर बीजेपी के एक नेता ने बताया कि इस रिपोर्ट के आने से कुछ राज्यों की राजनीति में जातिगत व्यवस्था में काफी फर्क पड़ सकता है. मसलन इस आयोग ने ओबीसी से जुड़े सारे आंकड़ों को डिजिटल मोड में डालने और ओबीसी सर्टिफिकेट जारी करने से पहले एक स्टैंडर्ड सिस्टम बनाने की सिफारिश की थी, जिससे कहीं ना कहीं ओबीसी जातिगत व्यवस्था पूरी तरह से पारदर्शी हो जाती. यदि वर्तमान माहौल में यह व्यवस्था लागू कर दी जाती है तो, खास तौर पर यूपी और उत्तर भारत के कई राज्यों की राजनीति पर असर पड़ सकता है, क्योंकि बिहार में यादव वोट बैंक का 90 के दशक के बाद से ही खासा असर रहा है और इस वोट बैंक में काफी वृद्धि भी हुई है. वहीं उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की राजनीति यादवों के नाम पर आधारित है. मगर इस बार भारतीय जनता पार्टी को ऐसा लगता है कि आजमगढ़ की जीत जिसमें पार्टी के यादव उम्मीदवार की जीत हुई है उससे कहीं ना कहीं यादव वोट बैंक धीरे-धीरे बीजेपी के खाते में आ रहा है और फिलहाल पार्टी ओबीसी की राजनीति में कोई बदलाव कर अपने लिए कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती.
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वास्तविकता ये है कि इस आयोग का गठन ओबीसी जाति-व्यवस्थता के अंतर्गत सभी जातियों को समान आरक्षण देने के उद्देश्य से किया गया था. लेकिन इसमें भी जो मलाईदार तबका था और जिनकी संख्या अधिक थी, उन्हें ज्यादा आरक्षण की सुविधा मिली. एक सरकारी आंकड़े के अनुसार नौकरी और अलग अलग भर्तियों में 24.95 प्रतिशत हिस्सा केवल 10 ओबीसी समाज को ही मिल पाया, जबकि 994 ओबीसी उपजातियों का प्रतिनिधित्व केवल 2.68 % है. इसी तरह सैक्षणिक संस्थानों में 983 ओबीसी समुदायों का प्रतिनिधित्व शून्य के बराबर है.
दरअसल इस आयोग के उप वर्गीकरण की वजह बैकवर्ड में फॉरवर्ड यानी, यादव, मीणा,जैसी जातियां जिनकी संख्या अलग अलग राज्यों में बहुतायत में हैं , वो सिर्फ 27%में से सिर्फ एक हिस्से के लिए ही योग्य होंगे, जिससे वर्तमान स्थिति बिल्कुल उलट हो जायेगी. और ओबीसी में ताकतवर जातियां सरकार से नाराज हो सकती हैं. यही डर बीजेपी को सता रहा है. फिलहाल ये दबदबा रखने वाली जातियां वोटबैंक समेत आरक्षण में भी बड़ा भाग झटक लेती हैं और बीजेपी को ऐसा लगता है कि कई राज्यों में इन जातियों ने पार्टी का साथ दिया है,ऐसे में इसमें छेड़-छाड़ पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है.