भोजपुरः बिहार के आरा सिविल कोर्टमें ब्रिटिश शासन काल (Case Filed During British Time) में दायर एक संपत्ति विवाद के मामले में 108 साल बाद अहम फैसला सुनाया गया. कोर्ट के एडीजे 7 श्वेता कुमारी सिंह ने 108 साल (Justice After 108 Years In property Dispute) से चल रहे टाइटल सूट का अपना निर्णय सुनाया. जज ने इस मामले में जब्त जमीन को मुक्त करने का फैसला भी दिया. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मामले में रिस्पांडेड पक्ष की चौथी पीढ़ी को न्याय मिला है. जिसके बाद उनके परिवार में काफी खुशी है. हालांकि परिवार के एक बुजुर्ग ने निराशा भरे लहजे में कहा कि फैसले से खुशी तो है, लेकिन हमारे देश की न्याय प्रणाली इतनी जटिल है कि जिन्होंने इस केस के लिए न्याय की आस लगाई थी, वो आज इस दुनिया में नहीं हैं.
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जमीन के मालिक की 1911 में हुई मौतः मिली जानकारी के अनुसार कोईलवर निवासी नथुनी खान की साल 1911 में मृत्यु हुई थी, जो नौ एकड़ जमीन के मालिक थे. उसके बाद उनकी बीवी जैतुन, बहन बीबी बदलन और बेटी बीबी सलमा के बीच संपत्ति बंटवारे को लेकर झगड़ा शुरू हो गया था. स्थिति ये हुई कि सन 1914 में मामला कोर्ट तक जा पहुंचा था. तब 14 फरवरी 1931 को तत्कालीन कार्यपालक दंडाधिकारी द्वारा 146 के तहत संपत्ति जब्त कर ली गयी. उसके बाद कोर्ट में टाइटल शूट किया गया. उसमें फैसला आने के बाद अपील दायर का दौर शुरू हो गया.
1914 में हिस्सेदारी को लेकर वाद दाखिलःकेस के रिस्पांडेड पक्ष के अधिवक्ता सतेंद्र कुमार सिंहके मुताबिक पहले 1914 हिस्सेदारी को लेकर वाद दाखिल किया गया था. जिसके बाद जमीन के एक हिस्सेदार से कोईलवर पठानटोला निवासी स्वर्गीय दरबारी सिंह ने 3 एकड़ जमीन खरीद ली. इधर कोईलवर के ही रहने वाले स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह ने भी स्वर्गीय नथुनी खान के वारिसान से कुछ हिस्से की जमीन खरीदी. जिसके बाद दोनों खरिदारों के बीच खरीदी हुई संपत्ति को लेकर मुकदमा शुरू हो गया. फिर 1927 में भी केस फाइल किया गया था. अंतिम केस फाइल 1970 में किया गया था. जिसमें फैसला आने पर 1992 में अपील दायर की गयी थी. उसमें सुनवाई करते हुये एडीजे 7 श्वेता कुमारी सिंह ने मामले इसी साल 11 मार्च को निपटारा कर दिया साथ ही जब्त संपत्ति को भी मुक्त करने का आदेश दे दिया.
108 सालों के बाद रिस्पांडेड पक्ष में खुशीः लंबे कानूनी दांव पेंच के बाद आए इस फैसले से अपीलार्थी पक्ष यानी स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह के अधिवक्ता राजनाथ सिंह इस फैसले से नाखुश नजर आ रहे हैं. उनका मानना है कि इतने लंबे समय के बाद जो फैसला दिया गया है वो कागजात और कानून के अनुकूल नहीं हुआ है. इस लिए उनके पक्ष के द्वारा इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में चुनौती देने की बात कही जा रही है. जबकि 108 सालों के बाद रिस्पांडेड पक्ष में फैसला आने के बाद स्वर्गीय दरबारी के वंशजों में काफी खुशी देखी जा रही है. फैसला आने के बाद स्वर्गीय दरबारी सिंह के पोते अरविंद सिंह का कहना है कि हम लोगों को काफी खुशी महसूस हो रही है.