हैदराबाद : मराठा कोटा पर आठ मार्च को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर कुछ महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए. कोर्ट ने पूछा आखिर कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण जारी रहेगा. क्या आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमाएं हटाई जा सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच पूरे मामले की सुनवाई कर रही है.
इस मामले में वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि न्यायालयों को बदली हुई परिस्थितियों के मद्देनजर आरक्षण कोटा तय करने की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़ देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि 50 फीसदी की सीमाएं 1931 की जनगणना पर आधारित था.
नौकरियों में कितना आरक्षण
इस पृष्ठभूमि में आइए समझते हैं हमारे संविधान में आरक्षण को लेकर क्या प्रावधान हैं और समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट ने इस पर क्या फैसले दिए हैं. केंद्र सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और संघ राज्य क्षेत्रों में, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / ओबीसीके लिए आरक्षित सीटें क्रमशः 15 फीसदी, 7.5 फीसदी और 27 फीसदी हैं.
अनुसूचित जाति की परिभाषा
अनुसूचित जाति की परिभाषा के लिए अनुच्छेद 366 और अनुच्छेद 341 को एक साथ पढ़े जाने की जरूरत है. अधिसूचित करने का अधिकार राष्ट्रपति को है. अनुसूचित जातियों का वर्गीकरण राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में अलग-अलग हो सकता है. राज्यों के मामले में राष्ट्रपति राज्यपाल की सलाह से अधिसूचना जारी करते हैं. केवल उन्हीं जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में दर्शाया जा सकता है, जिन्हें अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति के आदेश में अधिसूचित किया गया है.
संसद अनुच्छेद 341(2) के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना के जरिए अनुसूचित जातियों की सूची में बदलाव कर सकता है.
हिंदू और सिख के अलावा दूसरे धर्मों के लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं मिलेगा. अनुसूचित जाति ऑर्डर 1950 में ऐसा लिखा है.
पिछड़ा वर्ग
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अलावा संविधान ने पिछड़े समुदायों को भी सुरक्षा प्रदान की है. पिछड़ा समुदाय हिंदू, मुस्लिम, ईसाई समेत सभी धर्मों के लिए हैं. अनुच्छेद 15 (4) के तहत राज्य को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा किसी भी सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार है. अनुच्छेद 16 (4) के तहत पिछड़े वर्गों के लिए पदों का आरक्षण हो सकता है. जिस समय संविधान लिखा जा रहा था, उस समय पिछड़ा वर्ग को लेकर बहुत अधिक सूचनाएं उपलब्ध नहीं थीं. 15 (4) और अनुच्छेद 340 में प्रयुक्त 'अभिव्यक्ति' सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए है. अनुच्छेद 16 (4) में प्रयुक्त अभिव्यक्ति 'पिछड़ी' है और अनुच्छेद 46 में प्रयुक्त शब्द 'कमजोर वर्ग' है.
मंडल आयोग
भारत सरकार ने एक जनवरी 1979 को अनुच्छेद 340 के तहत पिछड़ा वर्ग आयोग (मंडल आयोग) की नियुक्ति की. 31 दिसंबर 1980 को आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की. आयोग को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को परिभाषित करने के लिए मानदंड निर्धारित करने का काम सौंपा गया था. आयोग ने कहा कि एससी और एसटी की आबादी 22.5 फीसदी है. पिछड़े समुदाय की आबादी 52 फीसदी है. इसलिए पिछड़े समुदाय के लिए सभी पदों पर 52 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए. आयोग ने, हालांकि, अपनी संस्तुति में ये भी कहा कि कुल आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती है. इस संवैधानिक सीमा की बाध्यता की वजह से मंडल आयोग ने ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण की संस्तुतिकी.
मंडल आयोग ने आर्थिक आधार को फैक्टर नहीं माना. इसकी अनदेखी की कि उच्च जाति में भी बहुत सारे ऐसे हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब है. वे भी आरक्षण के हकदार हो सकते हैं.