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कोरोना महामारी के बीच न्यायिक सक्रियता - ज्यूडिशियल एक्टिविज्म

समाज में सरकार, नौकरशाही या प्रणाली में चिंताजनक खामी उजागर होती है, तो जनता आम तौर से न्यायपालिका से आस लगाती है. भारत में एक ऐसे समय में जब कोरोना महामारी अपने सबसे विकराल रूप में लाखों लोगों को अपना शिकार बना रही है, तो न्यायपालिका सक्रिय नजर आ रही है. ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि कोरोना महामारी के बीच न्यायिक सक्रियता किन मामलों के कारण सुर्खियों में है.

Judicial Activism Amidst Covid
Judicial Activism Amidst Covid

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Published : Apr 25, 2021, 7:10 PM IST

हैदराबाद : भारत के अलग-अलग अस्पतालों में ऑक्सीजन की समस्या के कारण सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है. न्यायपालिका ने इस मामले में सरकारों की जमकर खिंचाई की है. राज्य सरकारों के अलावा केंद्र सरकार से भी दिल्ली उच्च न्यायालय ने कई सख्त सवाल किए हैं. प्रणाली की खामियों को लेकर अदालत का स्वत: संज्ञान लेना और सरकारों को फटकार लगाने की घटनाओं को 'ज्यूडिशियल एक्टिविज्म' कहा जा रहा है.

ऑक्सीजन जैसी मूलभूत चिकित्सा जरूरत को लेकर हाईकोर्ट की पीठ इतनी नाराज हुई कि पीठ ने कह दिया कि ऑक्सीजन सप्लाई में अड़चन आने पर अदालत दोषी को 'लटका' देगी. अदालतों की ऐसी टिप्पणियों को न्यायिक सक्रियता या ज्यूडिशियल एक्टिविज्म के रूप में भी सुर्खियां मिल रही हैं. आइए एक नजर डालते हैं कुछ ऐसे प्रमुख अदालती घटनाक्रम पर जहां सरकारों को निर्देश देने और लचर रूख दिखाने पर फटकारने के मामले में अदालतों ने सख्ती दिखाई है.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दिया निर्देश

उच्चतम न्यायालय ने देश में कोरोना महामारी की मौजूदा गंभीर स्थिति का स्वत: संज्ञान लिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि कोर्ट कई मुद्दों पर एक 'राष्ट्रीय योजना' चाहता है. इसमें वायरस से संक्रमित रोगियों के इलाज के लिए ऑक्सीजन और आवश्यक दवाओं की आपूर्ति शामिल हैं.

पूर्व प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की बेंच ने केंद्र को नोटिस जारी किया और कहा कि वह इस महीने की 24 तारीख को मामले की सुनवाई करेगा.

एक नजर राज्यों में COVID-19 की स्थिति पर उच्च न्यायालयों के रूख पर :-

दिल्ली हाईकोर्ट-

अदालत ने राज्य सरकार को अस्पतालों की लचर स्थिति की खबरों के संदर्भ में मरीजों के लिए उपलब्ध बेड की संख्या, ऑक्सीजन की उपलब्धता, राज्य में हेल्थकेयर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर शपथ पत्र दायर करने का निर्देश दिया.

दिल्ली सरकार को ऑक्सीजन की आपूर्ति न करने पर एक ऑक्सीजन उत्पादक को दिल्ली हाईकोर्ट ने अवमानना ​​नोटिस जारी किया. ऐसा अदालत के आदेश का अनुपालन न करने पर किया गया.

गुजरात उच्च न्यायालय-

राज्य सरकार को महामारी फैलने से रोकने के लिए युद्धस्तर पर प्रभावी दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश.

राज्य सरकार के आंकड़े वास्तविक कोरोना संक्रमित मामलों के साथ मेल नहीं खाने पर अदालत ने कहा कि सरकार COVID डेटा को पारदर्शी तरीके से प्रस्तुत करे.

निजी वाहनों में आने वाले रोगियों को अस्पतालों में प्रवेश न मिलने पर अदालत ने दिखाई सख्ती. अदालत ने ऐसे लोगों की चिंताओं का निराकरण करने के संबंध में जवाब देने के लिए कहा.

परीक्षण सुविधाओं में जिलेवार विभाजन करने का निर्देश. बीजेपी के रेमेडिसविर वितरण अभियान पर नोटिस जारी.

महाराष्ट्र-

बंबई उच्च न्यायालय:

गैर-कोरोना अस्पतालों में भर्ती कोरोना रोगियों को रेमेडिसविर मुहैया कराने का निर्देश.

नागपुर में कोरोना रोगियों का इलाज करने वाले अस्पतालों को रेमेड्सविर की 10,000 शीशियां प्रदान करने का निर्देश.

स्वत: संज्ञान मामले में कैदियों की संख्या कम करने (decongest) का निर्देश.

इसके अलावा आईसीएमआर की वेबसाइट पर अपलोड किए जाने के इंतजार के बिना, मरीजों की कोरोना जांच रिपोर्ट, वॉट्सएप और हार्ड कॉपी के माध्यम से तुरंत जारी करने का निर्देश.

उत्तर प्रदेश

इलाहाबाद उच्च न्यायालय-

उत्तर प्रदेश के 5 शहरों- प्रयागराज, वाराणसी, लखनऊ, कानपुर, गोरखपुर में लॉकडाउन का आदेश. अदालत ने महामारी से लड़ते हुए एक साल का अनुभव होने के बाद भी पर्याप्त कदम नहीं उठाने के लिए सरकार के खिलाफ कड़ी टिप्पणी भी की.

अदालत ने कहा, यह शर्म की बात है कि सरकार को COVID-19 की दूसरी लहर की भयावहता का पता था, फिर भी उसने पहले से चीजों की योजना नहीं बनाई.

बिहार

पटना उच्च न्यायालय-

प्रतिदिन COVID संबंधित सार्वजनिक ब्रीफिंग सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश. अदालत ने कहा कि कोई भी जानकारी जनता के लिए उपलब्ध नहीं है.

बिहार में COVID प्रबंधन पर पटना हाईकोर्ट ने गंभीर चिंता व्यक्त की. चिंता के अन्य कारणों में रेमेडिसविर इंजेक्शन के अवैध व्यापार और आरटी-पीसीआर परीक्षणों की धीमी दर का भी उल्लेख.

अदालत ने राज्य सरकार से इस बात पर भी जवाब मांगा कि कुछ अपंजीकृत अस्पतालों के संचालन की अनुमति क्यों दी गई.

कर्नाटक उच्च न्यायालय-

विश्वविद्यालयों को शैक्षणिक वर्ष 2021-22 से ऑनलाइन डिजिटल मूल्यांकन प्रणाली लागू करने का निर्देश.

राज्यभर की प्रयोगशालाओं से COVID जांच की रिपोर्ट 24 घंटे के भीतर सुनिश्चित करने को लेकर राज्य सरकार को निर्देश.

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय-

इंसानों के जीने के अधिकार को लेकर कोर्ट की सख्त टिप्पणी. कोर्ट ने कहा, 'कोई भी लोकप्रिय सरकार स्वास्थ्य के बुनियादी मानवाधिकार को नकारने का जोखिम नहीं उठा सकती.' सरकार को निर्देश जारी.

अदालत ने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार नागरिकों के लिए तभी सुरक्षित किया जा सकता है जब राज्य उनके उपचार, स्वास्थ्य सेवा के लिए पर्याप्त उपाय उपलब्ध कराएंगे और उनकी देखभाल करेंगे और उन्हें कोरोनावायरस जैसी आपदाओं से बचाएंगे.

झारखंड हाई कोर्ट-

कोरोना महामारी के मद्देनजर झारखंड की दयनीय स्थिति और रेमेडिसविर इंजेक्शन और दवाओं की अनुपलब्धता और COVID प्रबंधन जैसे कई मुद्दों पर राज्य सरकार को निर्देश जारी किए गए.

उच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा कि झारखंड एक स्वास्थ्य आपातकाल की ओर बढ़ रहा है और सीटी स्कैन मशीन उपलब्ध न होना एक गंभीर चिंता का विषय है.

पश्चिम बंगाल

कलकत्ता उच्च न्यायालय-

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान पुलिस बल और सरकारी अधिकारियों की मदद से COVID प्रोटोकॉल / दिशानिर्देशों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश जारी.

उड़ीसा उच्च न्यायालय-

हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम या राज्य खाद्य सुरक्षा योजना के तहत कमजोर श्रेणियों के लोगों के कवरेज को बढ़ाने का निरंतर प्रयास करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिया।

तेलंगाना हाईकोर्ट-

तेलंगाना उच्च न्यायालय ने गत 19 अप्रैल को राज्य सरकार को यह तय करने के लिए 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया था कि क्या वह कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों में वृद्धि को रोकने के लिए लॉकडाउन लागू करेगा ?

अदालत ने चेतावनी दी कि यदि राज्य प्राधिकारी दो दिनों के भीतर निर्णय नहीं करेंगे तो कोर्ट अपने आप ही आदेश जारी करेगा.

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