नई दिल्ली : मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High Court) ने गुरुवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न (sexual harassment) के अपने आरोपों की जांच के बाद इस्तीफा दे चुकी पूर्व महिला न्यायिक अधिकारी यह आरोप नहीं लगा सकती कि उनकी शिकायत असत्य पाये जाने के चार साल बाद वह इस्तीफा देने के लिए मजबूर हुईं.
शीर्ष न्यायालय, खुद को फिर से बहाल करने का अनुरोध करने वाली महिला न्यायिक अधिकारी की याचिका पर सुनवाई कर रहा है. उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष न्यायालय से कहा कि 'कामकाज के प्रतिकूल माहौल' का आधार, जिसके चलते उनके कथित तौर पर इस्तीफा देने के लिए मजबूर होने का विषय उनके यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के चार साल बाद उठाया जा रहा है.
मेहता ने न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की पीठ से कहा, 'किसी महिला का यौन उत्पीड़न बहुत गंभीर मुद्दा है, आरोप सत्य नहीं पाया जा रहा है और यह भी किसी संस्थान के प्रशासन के लिए एक गंभीर मुद्दा है.'