शिमला:22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. सियासी गलियारों से लेकर कानून की दहलीज तक राम मंदिर के लिए लंबी लड़ाई लड़ी गई. भले देश के करोड़ों लोगों के लिए ये विश्वास, धर्म, आस्था या भावना से जुड़ा पहलू हो लेकिन ये भी सच है कि इस पर दशकों से राजनीति हावी रही है. राम मंदिर का जिक्र आस्था के साथ सियासत के साथ होता रहा है. सियासत के अखाड़े में ये वो दांव रहा है, जिसपर मानो भारतीय जनता का एकाधिकार रहा. दूसरे दल भले इसे आस्था का मुद्दा बताएं या खुद को भी राम नाम का हिस्सेदार बताएं लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी ने राम मंदिर मुद्दे का दामन एक बार पकड़ा तो फिर कभी नहीं छोड़ा. सियासी रण में इसका फायदा भी बीजेपी को मिला है लेकिन सवाल है कि राम या राम मंदिर भाजपा के एजेंडे में कब शामिल हुए ? कब अयोध्या में राम मंदिर बनाने की बात हुई ?
पालमपुर में रखी गई थी राम मंदिर की नींव- पालमपुर कहां है, इस सवाल के जवाब के लिए ज्यादातर लोगों को गूगल का सहारा लेना पड़ेगा. ये छोटा सा शहर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में है. जहां पहली बार राम मंदिर बीजेपी के सिलेबस में जुड़ा और फिर इस मुद्दे ने भारतीय जनता पार्टी को देश की सियासत का टॉपर बना दिया.
साल 1989 में 9, 10 और 11 जून को बीजेपी का अधिवेशन पालमपुर में हुआ था. जहां बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी की अगुवाई में हुई. जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर विजयाराजे सिंधिया और शांता कुमार समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता मौजूद थे. इस बैठक में पहली बार अयोध्या में राम मंदिर बनाने का प्रस्ताव पास हुआ. जिसे पालमपुर प्रस्ताव के नाम से भी जानते हैं. बैठक के बाद 11 जून 1989 को पालमपुर में एक जनसभा हुई जिसका मंच संचालन बीजेपी के पूर्व विधायक राधा रमण शास्त्री कर रहे थे. जो उस दिन को कुछ इस तरह याद करते हैं.
"1989 में 9, 10, 11 जून को बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का अधिवेशन पालमपुर में हुआ था. कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पास हुआ कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए. 11 जून की रात को पालमपुर के गांधी मैदान में एक जनसभा आयोजित हुई, जिसमें पार्टी के कार्यकर्ता ही नहीं हजारों लोग भी अपनी नींद छोड़कर वहां पहुंचे थे. मैं उस मंच का संचालन कर रहा था, जहां अटल बिहारी वाजपेयी ने राम मंदिर बनाने को लेकर पास हुए प्रस्ताव की जानकारी दी. जिसे सुनकर लोग खुशी से झूम उठे और नाचने-गाने लगे. उस दृश्य को शब्दों में बयां नहीं कर सकता"- राधा रमण शास्त्री, पूर्व शिक्षा मंत्री व पूर्व विधानसभा स्पीकर, हिमाचल प्रदेश
2 सीट से 85 सीटों पर पहुंची बीजेपी-1989 का ये वो वक्त था जब देश में एक बार फिर आम चुनाव होने वाले थे. पालमपुर अधिवेशन से पहले राम मंदिर का झंडा विश्व हिंदू परिषद ने उठा रखा था. जिसे 1989 में बीजेपी ने ऐसा अपनाया कि भारतीय जनता पार्टी और राम मंदिर मानो एक दूसरे के पूरक लगने लगे. पालमपुर अधिवेशन के करीब 5 महीने बाद देश में लोकसभा चुनाव होने थे. बीजेपी ने राम मंदिर को पहली बार अपने घोषणा पत्र में जगह दी और इस मुद्दे को देशभर में पहुंचाया. राम मंदिर को लेकर अटल-आडवाणी की लिखी पटकथा आगे चलकर सुपरहिट होने वाली थी. 1989 लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो भारतीय जनता पार्टी के खाते में 85 सीटें आई. 1984 के आम चुनाव में बीजेपी सिर्फ 2 सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी. देश की सियासत में बीजेपी के बढ़ते कदमों का ये ट्रेलर भर था. पूरी पिक्चर अभी बाकी थी.
राम मंदिर के लिए रथ यात्रा- 1990 आते-आते बीजेपी ने पालमपुर में पास हुए राम मंदिर प्रस्ताव को पार्टी का लक्ष्य बना लिया था. जिसका फायदा उसे 1989 के चुनावों में भी मिल चुका था. इस बीच 25 सितंबर 1990 को बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की अपनी 10,000 किलोमीटर की रथ यात्रा शुरू कर दी. इस यात्रा को गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार से होते हुए उत्तर प्रदेश के अयोध्या पहुंचना था. लेकिन उससे पहले ही बिहार की तत्कालीन लालू प्रसाद यादव सरकार ने आडवाणी को हिरासत में लेकर रथ यात्रा पर ब्रेक लगा दिया था. इसके बाद इतिहास के पन्नों में 5 दिसंबर 1992 का वो दिन भी जुड़ा जब अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया गया.
"11 जून 1989 को पालमपुर में ऐतिहासिक प्रस्ताव पास किया था. इसके बाद राम मंदिर आंदोलन में बीजेपी ने पूरी ताकत झोंकी थी. लाल कृष्ण आडवाणी की ऐतिहासिक रथ यात्रा से लेकर सड़क से संसद और अदालत तक कई तरह के संघर्ष के बाद अंत में देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी राम मंदिर पर अपनी मुहर लगाई और अब भव्य राम मंदिर बनकर तैयार है." - शांता कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश