जोधपुर.तमाम दावों और वादों के बीच आखिरकार अशोक गहलोत कांग्रेस की सरकार रिपीट कराने में सफल नहीं हो सके. पहले की तरह दो बार सीएम रहते हुए वो चुनाव हार गए यानी हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन का रिवाज इस बार भी कायम रहा. वहीं, सबसे बड़ी बात यह है कि इस चुनाव में गहलोत अपने गृह जिले को भी नहीं बचा पाए. जोधपुर की 10 में से 8 सीटों पर भाजपा को जीत मिती तो कांग्रेस महज 2 सीटों पर सिमट कर रह गई. बात अगर अशोक गहलोत के विधानसभा क्षेत्र सरदारपुरा की करें तो यहां पिछली बार पूर्व सीएम को 45 हजार से अधिक मतों से जीत मिली थी, लेकिन इस बार जीत का अंतर घटकर 26 हजार हो गया. साथ ही सबसे चौंकाने वाली बात ये रही कि गहलोत खुद का बूथ भी नहीं बचा पाए.
खुद का बूथ भी नहीं बचा पाए गहलोत :इधर, कांग्रेस की हार के बाद केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने गहलोत पर तंज कसा. उन्होंने कहा, ''गहलोत की जादूगरी और तिलिस्म दोनों ही खत्म हो गया.'' इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सरदारपुरा के जिस बूथ संख्या 111 पर पूर्व सीएम ने वोट डाला था, वहां भाजपा प्रत्याशी प्रो. महेंद्र सिंह राठौड़ 43 मतों से आगे रहे. यहां भाजपा को 462 और कांग्रेस को 419 वोट पड़े. वहीं, 2013 की मोदी लहर में भी गहलोत अपने जिले में अकेले ऐसे उम्मीदवार थे, जिन्हें जीत मिली थी. शेष सभी कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव हार गए थे.
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पहली बार मतदान के दिन घूमे :सामान्य तौर पर अशोक गहलोत चुनावों में अपने परिवार के साथ मतदान करने के बाद जयपुर के लिए निकल जाते थे, लेकिन इस बार 25 नवंबर को मतदान के बाद वो दोपहर तक रूके थे और इस दौरान जोधपुर शहर व सूरसागर क्षेत्र के कई पोलिंग बूथों पर जाकर लोगों से बातचीत करते दिखते थे. फिर भी पार्टी और को इससे कोई खास लाभ नहीं हुआ और नतीजा सब के सामने है.