श्रीनगर :कश्मीर की झीलों डल और वुलर में कार्प (carp) जैसी मछली की प्रजातियों और पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी पर जोर देने के चलते स्थानीय प्रजातियों की मछलियों की संख्या में गिरावट आई है. इसका सीधा सीधा प्रभाव मछली उत्पादन में पड़ा है. परिणामस्वरूप उत्पादन में काफी गिरावट दर्ज की गई है. डल और वुलर झील के अलावा मीठे पानी की अन्य झीलों का हाल भी कुछ ऐसा है.
यह 'कश्मीर में झील मत्स्य पालन' नामक शीर्षक वाले शोध में सामने आया, जिसमें दिखाया गया है कि डल झील में कार्प प्रजातियों की मछलियों की बढ़ती संख्या की वजह से स्किज़ोथोरैक्स schizothorax (मछली की एक देशी प्रजाति, जिसे आमतौर पर स्नो ट्राउट के नाम से भी जाना जाता है) के उत्पादन में लगातार गिरावट आई है.
राजस्व में आई कमी
कृषि के साथ मछली उत्पादन ने भी कुछ दशक पहले राज्य की अर्थव्यवस्था में 23 प्रतिशत का योगदान दिया. लेकिन अब मीठे पानी की झीलों में गैर देशी प्रजाति की मछलियों की संख्या में बढ़ोतरी और झील के पानी के कम होने के कारण राजस्व में कमी आई है.
इसके अलावा सब्जियों आदि की पैदावार में बढ़ोतरी और फ्लोटिंग गार्डनिंग के चलते भी मछली उत्पादन सिकुड़ कर रह गया है.
स्थानीय मछलियों की घटती संख्या का कारण
शुहामा में SKUAST-K के वैज्ञानिक डॉ गौहर बिलाल वानी का कहना है कि स्थानीय मछली प्रजातियों के लिए ब्रीडिंग पैटर्न और जलीय स्थितियां उनकी संख्या में कमी का बड़ा कारण है. उन्होंने कहा कि कार्प (carp) में ऐसा परिस्थियों में भी जीवित रहने की प्रवृत्ति होती है और वह आसानी से प्रजनन कर सकती है.
इसके अलावा, वानी ने कहा कि सरकार को किसी भी स्थानीय जल निकाय में कार्प जैसी मछलियों की संख्या बढ़ाने से पहले सही तरह से शोध करना चाहिए था.