13 साल बाद आया बहुचर्चित प्रिटिंग घोटाले में फैसला, तत्कालीन कलेक्टर जगदीश शर्मा समेत 6 अफसरों को चार साल का कारावास
Jhabua Printing Scam:झाबुआ में 13 साल पुराने एक मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम कोर्ट ने झाबुआ के तत्कालीन कलेक्टर जगदीश शर्मा समेत 6 अफसरों को दोषी करार देते हुए 4-4 साल की सजा सुनाई है. आइए जानते हैं, क्या है पूरा मामला
झाबुआ. 13 साल पुराने और शहर के बहुचर्चित प्रिंटिंग घोटाले में शनिवार को फैसला आ गया. मामले में विशेष न्यायाधीश राजेंद्र शर्मा की बेंच ने फैसला सुनाया. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की कोर्ट ने झाबुआ के तत्कालीन कलेक्टर जगदीश शर्मा ( पिता- बृजनंदन शर्मा) समेत 6 अफसरों को जेल भेज दिया है.
इनमें तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ जगमोहन धुर्वे (पिता- गजरूप सिंह धुर्वे), राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के परियोजना के तत्कालीन अधिकारी नाथू सिंह (पिता- नारायण सिंह तंवर), जिला पंचायत में स्वच्छता मिशन के तत्कालीन जिला समन्वयक अमित (पिता-आरएस दुबे), जिला पंचायत के तत्कालीन वरिष्ठ लेखा अधिकारी सदाशिव (पिता- भीमसिंह डाबर) और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तत्कालीन लेखाधिकारी आशीष (पिता- सुरेश कदम) को दोषी करार दिया है. साथ ही अलग-अलग धाराओं के तहत 4-4 साल की जेल और 9 हजार रुपए का अर्थ दंड देने का फैसला सुनाया है.
प्रिंटिंग कारोबारी को 7 साल की सजा: इसके अलावा जिस प्रिटिंग कारोबारी मुकेश (पिता- सत्यानारयण शर्मा) को आर्थिक लाभ पहुंचाया था, उसे भी सात साल की सजा सुनाई गई है. साथ ही 19 हजार का जुर्माना कोर्ट ने लगाया है. इनके अलावा दो लोग (एके खंडूरी और देवदत्त) को बरी कर दिया गया है. इन दोनों के खिलाफ आरोप तय नहीं हो पाए हैं.
क्या है पूरा मामला:अभियोजन के अनुसार, मेघनगर के रहने वाले परिवादी राजेश सोलंकी ने विशेष न्यायाधीश न्यायालय झाबुआ के सामने 4 फरवरी 2010 को लिखित परिवाद पत्र प्रस्तुत किया था. इसमें आरोप लगाया था कि झाबुआ के तत्कालीन कलेक्टर जगदीश शर्मा और अन्य अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए शासकीय प्रिंटिंग के समस्त कार्य शासकीय मुद्रणालय से न कराकर, निजी प्रिंटर को अवैध लाभ पहुंचाया.
अधिकारियों ने पद का दुरुपयोग किया: इस पूरे मामले की जांच विशेष पुलिस स्थापना इंदौर को सौंपी गई थी. जांच के दौरान आरोपी की पुष्टी हुई थी. साथ ही तब मामले से जुड़े सबूत भी सामने आए थे. इसमें अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग किया था. उन्होंने बिना टेंडर के ही शासकीय प्रेस से कई गुना महंगे दर पर भोपाल के राहुल प्रिंटर के मालिक मुकेश शर्मा से प्रिटिंग का काम करवाया था.
इसके बिल भी सीधे पास किए गए. इस मामले में खुलासा हुआ था कि करीबन 6 गुना महंगे दर पर कार्य करवाया गया था. आरोपियों की तरफ से करीबन 27,70,725 रुपए का अवैध भुगतान किया गया. इधर, लोकायुक्त पुलिस ने पूरे मामले में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की धाराओं के साथ केस दर्ज किया था.
मामले में 34 लोगों ने दिए बयान:इस पूरे केस में करीबन 34 लोगों ने अपने बयान दिए. इनमें कोर्ट ने करीबन 6 अफसरों को धारा 13(1)(डी), 13 (2) पीसी एक्ट और धारा 120 (बी) में दोषी करार दिया. शासन की ओर से प्रकरण का संचालन जिला लोक अभियोजन अधिकारी राजीव रूसिया के साथ अतिरिक्त जिला लोक अभियोजन अधिकारी मनीषा मुवेल और एडीपीओ राजेंद्र पालसिंह की तरफ से की गई.