श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने लश्कर-ए-तैयबा के सात कथित सक्रिय सदस्यों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा है. अभियोजन पक्ष के अनुसार ये आतंकी सदस्य घाटी में अशांति फैलाने पर तुले हुए थे और सरकारों को उखाड़ फेंकने के लिए आतंकवादी गतिविधियों और तोड़फोड़ के कार्यों में संलग्न थे. न्यायमूर्ति मुहम्मद अकरम चौधरी की पीठ ने अभियोजन पक्ष द्वारा निचली अदालत के समक्ष पेश किए गए सबूतों पर गंभीर आपत्ति जताई.
जानकारी के अनुसार इस मामले में, 28 अगस्त, 2004 को पक्का डंगा पुलिस स्टेशन के प्रभारी को एक विश्वसनीय स्रोत से पता चला था कि आरोपी, जो कथित रूप से सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य थे, उनका इरादा जम्मू और कश्मीर राज्य में परेशानी पैदा करना था. सूत्र के अनुसार, प्रतिवादी पास के मांडा जम्मू के जंगल में मौजूद थे, जहां वे कथित तौर पर अपनी नापाक योजनाओं को अंजाम देने की साजिश रच रहे थे.
इस जानकारी के बाद एक मामला दर्ज किया गया, जिसमें आरोपियों पर आरपीसी (रणबीर दंड संहिता) के कई प्रावधानों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था. जिसमें धारा 121, 121-ए, 122, 120-बी, 153ए, साथ ही विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4/5 और शस्त्र अधिनियम की धारा 7/25 शामिल हैं. आरोपी कथित तौर पर पुलिस बल द्वारा की गई एक छापेमारी के दौरान एक साथ साजिश रचते पाए गए, जिसमें वर्दी और सादे कपड़ों में अधिकारी शामिल थे.