श्रीनगर :जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने 2017 में श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में हुई पुलिस उपाधीक्षक की हत्या के मामले में मुख्य आरोपी की निवारक हिरासत (preventive detention) को बरकरार रखते हुए याचिका को खारिज कर दिया. आरोपी की हिरासत के आदेश को कई आधारों पर चुनौती दी गई थी. इस संबंध में जस्टिस एमए चौधरी के कोर्ट ने बुघवार को याचिकाकर्ता और उत्तरदाताओं की दलीलें सुनने के बाद याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसे किसी भी योग्यता से रहित पाया गया है.जस्टिस एम ए चौधरी ने उनकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर फैसला करते हुए कहा कि किसी गंभीर अपराध के लिए पहले से ही हिरासत में मौजूद व्यक्ति की निवारक हिरासत के संबंध में कानूनी स्थिति अच्छी तरह से तय है.
कोर्ट ने कहा कि आम तौर पर ऐसे व्यक्तियों की निवारक हिरासत का आदेश नहीं दिया जाता है, लेकिन ऐसा तब किया जा सकता है जब यह मानने के ठोस कारण हों कि व्यक्ति को जमानत पर रिहा किया जा सकता है या बरी होने या मूल अपराध में आरोप मुक्त होने के कारण रिहा किया जा सकता है. अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि निवारक हिरासत दंडात्मक नहीं है, बल्कि प्रकृति में केवल निवारक है, जिसका उद्देश्य समाज की रक्षा करना है और आगे कहा कि हिरासत के आधार और हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की संतुष्टि डीएसपी लिंचिंग मामले में वानी की भागीदारी का संकेत देने वाली सामग्री पर आधारित थी.
बता दें कि यह घटना 22 और 23 जून, 2017 की मध्यरात्रि की है जब श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में जामिया मस्जिद के बाहर भीड़ ने जम्मू-कश्मीर पुलिस की सुरक्षा शाखा के एक पुलिस उपाधीक्षक (डीवाईएसपी) मोहम्मद अयूब पंडित की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. अधिकारी को शब-ए-कद्र की पूर्व संध्या पर एक बड़ी सभा के दौरान सुरक्षा कर्मियों की निगरानी के लिए मस्जिद में तैनात किया गया था. इस दौरान भीड़ ने अधिकारी पर न केवल हमला किया था बल्कि उसकी सर्विस पिस्तौल छीन ली थी और उसे तब तक बेरहमी से पीटा जब तक उसने दम नहीं तोड़ दिया.