श्रीनगर :निर्वाचित विधानसभा की अनुपस्थिति में, जम्मू और कश्मीर आज राष्ट्रपति चुनाव में मतदान नहीं कर पाया. 90 के दशक के बाद यह दूसरी बार है जब जम्मू-कश्मीर में उच्च स्तरीय चुनाव में मतदान करने के लिए निर्वाचित विधानसभा नहीं है. 1990 और 1996 के बीच, जम्मू और कश्मीर छह साल के लिए राष्ट्रपति शासन के अधीन था. 1992 में, जम्मू और कश्मीर ने निर्वाचित विधायकों की अनुपस्थिति में मतदान नहीं किया. हालांकि, वर्तमान में पांच निर्वाचित सांसद में सत्तारूढ़ भाजपा के दो और नेशनल कांफ्रेंस से तीन सदस्यों ने मतदान में हिस्सा लिया.
2018 के बाद से, जम्मू और कश्मीर राष्ट्रपति शासन के अधीन है, वर्तमान में राज्य के डाउनग्रेड होने और दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित होने के बाद से उपराज्यपाल ही इसके प्रशासक हैं. राष्ट्रपति चुनाव को लेकर नेशनल कांफ्रेंस विपक्ष के साथ है.
पिछले राष्ट्रपति चुनावों में नेकां ने विपक्षी यूपीए उम्मीदवार मीरा कुमार का समर्थन किया था, जबकि पीडीपी ने भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए उम्मीदवार राम नाथ कोविंद के पक्ष में मतदान किया था क्योंकि उस समय जम्मू-कश्मीर में भाजपा के साथ गठबंधन सरकार थी.
बता दें कि मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है. चुनाव आयोग के मुताबिक इस बार एक सांसद के वोट का मूल्य 700 है. राष्ट्रपति चुनाव में एक सांसद के मत का मूल्य दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर समेत अन्य राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं के लिए निर्वाचित सदस्यों की संख्या पर आधारित होता है. राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा और दिल्ली, पुडुचेरी तथा जम्मू कश्मीर सहित राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं के सदस्य मतदान करते हैं.
अगस्त 2019 में लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित होने से पहले तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य में 83 विधानसभा सीट थीं. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार, केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी, जबकि लद्दाख पर सीधे केंद्र का शासन होगा. राष्ट्रपति चुनाव के लिए जम्मू-कश्मीर में कोई मतदान केंद्र स्थापित नहीं किया गया और केंद्र शासित प्रदेश के सभी पांच सांसदों ने अपना वोट कमरा नंबर 63, पहली मंजिल, संसद भवन, नई दिल्ली में डाला. यह पहली बार नहीं है कि किसी राज्य विधानसभा के विधायक राष्ट्रपति चुनाव में भाग नहीं लिया. वर्ष 1974 में 182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा को नवनिर्माण आंदोलन के बाद मार्च में भंग कर दिया गया था.
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