अयोध्या : रामनगरी में प्रभु के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की गहमागहमी के बीच कई ऐसे संत हैं, जिनके बारे में लोग बेहद कम जानते हैं. राम मंदिर आंदोलन में इन संतों ने अहम भूमिका निभाई थी. लाठियां खाईं, कई बार जेल गए और अपनी आंखों से कारसेवकों पर गोलियां बरसाते हुए भी देखा. इस सबके बावजूद इन संतों-महंतों ने अपने संघर्ष को कभी विराम नहीं दिया. राम मंदिर आंदोलन के लिए हर वह आहुति दी, जिसकी उस वक्त जरूरत थी. अयोध्या में ऐसा ही एक नाम है जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी करपात्री जी महाराज का. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सहयोगी रहे करपात्री जी महाराज ने भी मंदिर आंदोलन में बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई थी. उन्होंने संकल्प लिया था कि जब तक राम मंदिर का निर्माण नहीं हो जाता, तब तक वह सिर्फ एक समय अठारह कौर ही भोजन करेंगे, सिला हुआ वस्त्र नहीं पहनेंगे और खड़ाऊ पहन कर ही चलेंगे. करपात्री जी की प्रतिज्ञा पूर्ण होने वाली है, पर अतीत की स्मृतियों में जब वह झांकते हैं तो भावुक हुए बिना नहीं रह पाते.
पांच सौ साल पुराना है मंदिर के लिए संघर्ष
स्वामी करपात्री जी महाराज बताते हैं कि आज अयोध्या अपने वैभव के शिखर पर है. इसमें उन लोगों का योगदान है, जिन्होंने 1990-92 में शहादत दी थी. कहते हैं, पांच सौ साल पूर्व जब बाबर के कहने पर मीरबाकी ने राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी, तब से यहां संघर्ष जारी है. यहां से 22 किलोमीटर दूर एक गांव है सनेथू. उस गांव के देवेंद्र पांडेय कारसेवा में सबसे पहले शहीद होने वालों में शामिल थे. आज भी उनकी तलवार वहां पर रखी गई है. अफसोस है कि उनके यहां तक निमंत्रण नहीं पहुंचा पाए. उसी के निकट एक गांव है सरायमाफी. यहां के सूर्यवंशी ठाकुरों ने कसम ली थी कि जब तक अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण नहीं हो जाएगा, तब तक जूते नहीं पहनेंगे, छाता नहीं लगाएंगे और पगड़ी भी नहीं बांधेंगे. आज भी उस गांव के लोग जूते नहीं पहनते हैं और पगड़ी भी नहीं बांधते हैं. फिर कोई किसी भी पद पर क्यों न हो.
बिंदेश्वरी प्रसाद ने सबसे पहले देखी थी रामलला की मूर्ति
स्वामी करपात्री जी महाराज बताते हैं कि राम मंदिर के लिए पांच सौ वर्षों में साढ़े चार लाख लोग अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं. रामलला की जो मूर्ति है, वह स्व प्राकट्य है यानी अपने आप प्रकट हुई. एक बहुत बुजुर्ग संत हुआ करते थे बिंदेश्वरी प्रसाद शुक्ला. दो माह पूर्व उन्होंने शरीर त्याग दिया है. उन्हें चौदह भाषाओं का ज्ञान था. वह अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. संपूर्णानंद के साथी भी रहे थे. सबसे पहले उन्होंने ही रामलला की मूर्ति को देखा था. जिसके बाद उन्होंने मूर्ति को स्नान कराया और चरणामृत लिया. अब महाराज जी नहीं हैं. उनके चरणों में कोटि-कोटि वंदन. इसके बाद हिंदू महासभा के जिलाध्यक्ष गोपाल सिंह विशारद कोर्ट में याचिका दायर की. जब कमेटी बनी तो कोई उससे जुड़ने को तैयार नहीं था. सभी को शासन-प्रशासन से डर लग रहा था. अवैद्यनाथ जी ने कहा कि मैं इसका अध्यक्ष बनूंगा और कमेटी के कार्यों को आगे बढ़ाऊंगा. अवैद्यनाथ जी ने डॉ. रामविलास वेदांती से कहा कि आप डरो नहीं, हम आपके साथ हैं. वेदांती ट्रस्ट के सदस्य बनाए गए. उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोगों को जोड़ा गया, जिनकी विचारधारा राम मंदिर निर्माण से परिपूर्ण थी.
मोदी के रूप में मिले विश्वामित्र