तिरुवनंतपुरम: भले ही उन्होंने करोड़ों रुपये की परियोजनाओं के तहत देश को चंद्रमा पर विजय प्राप्त करने में मदद की हो, सूर्य के लिए भी ऐसा ही प्रयास कर रहे हों और भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी में व्यस्त हों, लेकिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस. सोमनाथ की विनम्र शुरुआत एक पुरानी साइकिल और एक मामूली से आवास से हुई जिनका इस्तेमाल वह कॉलेज में रहने के दौरान परिवहन और छात्रावास के खर्चों में कटौती के लिए करते थे.
कई अन्य बातों के अलावा इन छोटे विवरणों का उल्लेख उनकी मलयालम में लिखी आत्मकथा में मिलता है, जिसे वे प्रतिभाशाली लेकिन आत्मविश्वास की कमी से जूझ रहे युवाओं को प्रेरित करने का प्रयास कहते हैं. मलयालम में 'निलावु कुदिचा सिम्हांगल' शीर्षक से लिखी गई आत्मकथा प्रेरणा की एक कहानी है. यह कठिनाइयों का सामना करने में कड़ी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति पर केंद्रित है और सोमनाथ के नेतृत्व वाले चंद्र मिशन 'चंद्रयान-3' की भारी सफलता से प्रेरित है, जिसने भारत को राष्ट्रों की एक विशिष्ट श्रेणी में ला खड़ा किया.
चंद्र मिशन की सफलता के बाद और 'आदित्य-एल1' सौर मिशन तथा गगनयान परीक्षण वाहन के लगातार प्रक्षेपण के बीच सोमनाथ ने अपनी आत्मकथा लिखने के लिए किसी तरह समय निकाल लिया. केरल स्थित लिपि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक नवंबर में बिक्री के लिए उपलब्ध होगी. यह किताब एक गरीब गांव के युवा की घटनापूर्ण गाथा, इसरो के माध्यम से विकास, वर्तमान प्रतिष्ठित पद तक पहुंचने और चंद्रयान-3 प्रक्षेपण तक की उनकी यात्रा की कहानी है. सोमनाथ ने कहा कि वह इसे एक प्रेरक आत्मकथा के बजाय प्रेरक कहानी कहना चाहेंगे.