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क्या UPI ने खत्म कर दिया, 'छुट्टा नहीं है, टॉफी ले लो' - sale of toffees change

सॉरी, छुट्टा नहीं है, टॉफी ले ले. कुछ सालों पहले तक यह सुनना बहुत ही आम था. आप किसी भी दुकान से सामान खरीदते हों, ऐसा आपने जरूर सुना होगा. लेकिन यूपीआई ने सबकुछ बदल दिया. अब जितने का बिल हो, आप उतना ही भुगतान करते हैं. 96 रुपये का बिल है, तो आपको 100 रुपये देकर चार रुपये के टॉफी लेने की जरूरत नहीं है. खुदरा आपके पास है, या नहीं है, इसकी कोई टेंशन नहीं है. संभवतः यही वजह है कि अब टॉफी बिजनेस वाले यूपीआई को 'कोस' रहे हैं. उनका मानना है कि इसकी वजह से टॉफी की बिक्री कम हो गई है.

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Published : Oct 19, 2022, 5:55 PM IST

नई दिल्ली : डिजिटल करेंसी ने हमारे जीवन को आसान कर दिया है. जब से यूपीआई आया है, हमें पेमेंट को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं होती है. चाहे रेस्तरां हो या किराना स्टोर, हर जगह यूपीआई के जरिए भुगतान की सुविधा उपलब्ध है. कैब ड्राइवरों से लेकर वैलेट पार्किंग, मॉल में प्रवेश से लेकर टोल भुगतान, बिजली के बिल से लेकर एलपीजी बुकिंग तक, यह अब हर जगह स्वीकार किया जाता है. यहां तक ​​कि सड़क के किनारे गोलगप्पे वाले भी यूपीआई भुगतान स्वीकार करते हैं. इसका एक फायदा यह भी है कि जितने का बिल होता है, आप उतना ही भुगतान करते हैं.

अब जरा यूपीआई के पहले के समय को याद कीजिए, 96 रुपये का पेमेंट करना होता था, तो आप सौ रुपये दुकानदार को देते थे. दुकानदार आपको चार रुपये के बदले 'टॉफी' दे दिया करता था, या फिर कहता होगा कि अभी खुदरे पैसे नहीं हैं, कोई दूसरा सामान ले लो या फिर अगले दिन आना. और कभी कभार तो वह सॉरी भी जरूर कहता होगा...कि छुट्टा पैसा नहीं है. इसका एक अलग मजा था. खासकर उनके लिए जो टॉफी पसंद करते हैं. लेकिन अब कुछ लोगों का कहना है कि यूपीआई की वजह से टॉफी का कारोबार ही प्रभावित होने लगा है.

ग्रोथ एक्स के फाउंडर अभिषेक पाटिल ने बताया, '2010 की शुरुआत में मोंडेलेज इंटरनेशनल, मार्स, नेस्ले, परफेटी वैन मेल, पार्ले एग्रो प्राइवेट लिमिटेड और आईटीसी लिमिटेड सहित लगभग सभी बड़े कैंडी खिलाड़ियों ने सेल में तेजी देखी थी, लेकिन जैसे ही यूपीआई आया, इनका सेल प्रभावित हो गया.' उन्होंने यहां तक ​​​​दावा किया कि हर्शे, दुनिया की सबसे बड़ी चॉकलेट और टॉफ़ी निर्माता में से एक, ने कहा कि कोविड के बाद पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मार्केट भारत में प्रभावित हुआ है, यानि टॉफी की सेल कम हुई है. उनका साफ-साफ कहना है कि कोविड की वजह से भारत ने जिस तेजी से यूपीआई पर काम किया, इससे टॉफी की बिक्री प्रभावित हो गई.

कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इस तर्क से सहमत नहीं हैं. कैपिटलमाइंड के सीईओ दीपक शेनॉय के मुताबिक, अभिषेक ने जो भी कुछ कहा है, वह सच नहीं है. उन्होंने ट्विटर पर भारत में कैंडी बनाने वाली एक लोकप्रिय फर्म - लोट्टे की वार्षिक रिपोर्ट पोस्ट पोस्ट की. इसके अनुसार 2021 के मुकाबले 2022 में टॉफी की बिक्री में कहीं ज्यादा इजाफा देखा गया. दीपक ने लिखा, 'मुझे नहीं लगता कि यूपीआई टॉफी व्यवसाय को मार रहा है. यह कल्पना की तरह लगता है. लोटे इंडिया के परिणाम कुछ और बता रहे हैं.'

रिटेल रिसर्च के प्रमुख- एचडीएफसी सिक्योरिटीज, दीपक जसानी ने अपने तर्क में दीपक शेनॉय का समर्थन किया और कहा, 'यूपीआई भुगतान टॉफी व्यवसाय को नहीं मार सकता है. टॉफी निर्माता लोटे इंडिया कोविड की अवधि को छोड़कर बिक्री में वृद्धि की रिपोर्ट कर रहा है.'

हालांकि, मुंबई स्थित वित्तीय सलाहकार फर्म केडिया एडवाइजरी के प्रमुख, अजय केडिया की एक अलग राय है. उन्होंने कहा कि टॉफी के दिन यूपीआई के साथ चले गए हैं और डिजिटल भुगतान ने भारत में रफ्तार पकड़ ली है. यूपीआई भुगतान एक वित्तीय क्रांति है, यह ध्यान दिया जा सकता है कि भुगतान के माध्यम से सितंबर में UPI ने 11 लाख करोड़ रुपये का मील का पत्थर पार किया. महीने के दौरान, प्लेटफॉर्म पर वॉल्यूम के लिहाज से 678 करोड़ ट्रांजेक्शन किए गए.'

उन्होंने आगे कहा, '1-2 खुदरा रुपया भी धीरे-धीरे बड़ी राशि हो जाती है. अब लोग वही भुगतान कर रहे हैं, जो वह खर्च करते हैं. जाहिर है, टॉफी की बिक्री तो कम होगी ही. आखिर में यह तो कहा ही जा सकता है कि टॉफी या नो टॉफी, 'छुट्टा' या नो छुट्टा, वास्तव में मायने रखता है वह यह है कि उपभोक्ताओं के रूप में हमें क्या लाभ होता है. और जैसा कि प्रधान मंत्री मोदी कहते हैं, 'कैशलेस डे आउट' होना अच्छा है.

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(ANI)

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