गुवाहाटी: यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम ने 29 दिसंबर को नई दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक में केंद्र और असम सरकार के साथ शांति समझौता किया. शांति समझौते के बाद एक नाम चर्चा में है और वह है उल्फा (स्वतंत्र) के प्रमुख परेश बरुआ का, जो आज भी संप्रभु असम की अपनी मांग पर कायम हैं. उल्फा (आई) यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम का एक अलग गुट है, जिसका गठन 2012 में हुआ था, जब मुख्य संगठन के कई वरिष्ठ नेताओं ने आत्मसमर्पण किया और प्राथमिक मांग के बिना शांति वार्ता के लिए सहमति व्यक्त की.
शांति समझौते के बाद देश के गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा था कि यह असम के लिए सुनहरा दिन है. केंद्रीय गृह मंत्री और असम के सीएम डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर के बाद कहा कि यह शांति संधि शांति का संदेश लाएगी और यह राज्य के तेजी से विकास का अग्रदूत बनेगी. पीएम मोदी भी शांति समझौते की तारीफ करते हैं.
असम में कई लोग शांति समझौते को लेकर आशान्वित हैं और उनका मानना है कि इससे असम के लोगों का सपना पूरा होगा. लेकिन साथ ही कुछ लोग उल्फा के तत्कालीन सी इन सी और अब उल्फा (आई) के प्रमुख परेश बरुआ को भी याद कर रहे हैं. क्या बातचीत की मेज पर आएंगे परेश बरुआ? वह शांति संधि पर हस्ताक्षर करेंगे? ऐसे कई सवाल हैं जो लोगों के मन में उठते रहे हैं.
असम के सीएम, कई शिक्षाविद्, बुद्धिजीवी, पूर्व उल्फा नेता और राजनेता परेश बरुआ का नाम लेते रहे हैं. क्योंकि वह अभी भी हथियारों के साथ सक्रिय हैं और संप्रभु असम की अपनी मांग पर कायम हैं. उल्लेखनीय है कि कई युवा यहां तक कि पत्रकार और इंजीनियर भी उल्फा (आई) में शामिल हुए हैं. 66 साल के परेश बरुआ अपनी प्रमुख मांग के बिना बातचीत की मेज पर बैठने को राजी नहीं हैं, ये तो सब जानते हैं.
उल्फा के महासचिव और उल्फा भारत सरकार शांति समझौते के अभिन्न अंग अनूप चेतिया ने मीडिया से कहा, 'जो कुछ हम दिल्ली से हासिल नहीं कर सके, उसे परेश बरुआ और उनकी टीम को हासिल करने दीजिए.'
शांति समझौते के बाद सीएम हिमंत ने कहा कि इस शांति संधि ने परेश बरुआ के लिए शांति वार्ता का रास्ता खोल दिया है. दो दिन पहले उन्होंने मीडिया के सामने कहा था कि, शांति समझौते को लेकर उनकी परेश बरुआ से कई बार बात हुई है.