हैदराबाद: पिछले 48 हफ्तों से पंजाब कांग्रेस में चल रही खींचतान में 48 घंटे के अंदर इतने ट्विस्ट आए कि बॉलीवुड की पॉलिटिकल थ्रिलर फिल्म के लेखक भी पानी-पानी हो जाएं. खैर कैप्टन अमरिंदर सिंह (cap. amrinder singh) के इस्तीफे के बाद दिल्ली से चंडीगढ़ तक लंबे मंथन और कई नामों पर माथापच्ची के बाद कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी (charanjeet singh channi) को पंजाब का नया 'कैप्टन' बना दिया.
सवाल है कि क्या पंजाब को पहला दलित मुख्यमंत्री देकर कांग्रेस ने 2022 से पहले मास्टरस्ट्रोक लगा दिया है ?क्या दलित चेहरे के सहारे दूसरे दलों को पछाड़कर कांग्रेस फिर से जीत की राह तलाश लेगी ? या फिर कभी पंजाब के मुखिया रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस का खेल बिगाड़ देंगे ? इन सवालों का जवाब मिलेगा ईटीवी भारत एक्सप्लेनर में (etv bharat explainer)
दलित मुख्यमंत्री कांग्रेस का मास्टरस्ट्रोक कैसे ?
दरअसल पंजाब में आबादी के लिहाज से दलितों की संख्या देश में सबसे अधिक है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक पंजाब में 32% दलित आबादी है. पंजाब की 117 सीटों में से 34 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, इसके अलावा बाकी सीटों पर भी इनका प्रभाव है. साल 1966 में संयुक्त पंजाब से हरियाणा और हिमाचल अलग होने के बाद दलित चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने की बातें बहुत हुई हैं लेकिन बाजी कांग्रेस ने मार ली है.
पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री बने चरणजीत सिंह चन्नी जानकार मानते हैं कि कैप्टन के इस्तीफे के बाद दलित वोटवैंक कांग्रेस के हाथ से छिटक भी सकता था. ऐसे में विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़े पंजाब में कांग्रेस के पास मौके पर चौका लगाने का मौका था. भले ही चरणजीत सिंह चन्नी 4 से 5 महीने के लिए मुख्यमंत्री होंगे लेकिन कांग्रेस ने बाकी पार्टियों को इस मामले में तो पीछे छोड़ ही दिया है.
कांशीराम के पंजाब में कांग्रेस ने दे दिया पहला दलित मुख्यमंत्री
मायावती की बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक रहे कांशीराम का जन्म पंजाब के रोपण में हुआ था. बहुत कम लोगों को जानकारी है कि कांशीराम पंजाब की होशियारपुर लोकसभा सीट से साल 1996 में सांसद भी रहे. कांशीराम के पंजाब में सक्रिय रहते बीएसपी का भी कुछ सीटों पर दबदबा रहा और वो भी चाहते थे कि पंजाब में दलित सीएम बने. सियासी जानकार मानते हैं कि कांग्रेस दलित वोटरों के बीच ये मैसेज भी दे सकती है कि कांशीराम के सपने को उन्होंने पूरा किया है और इसका कुछ फायदा अगले साल होने वाले यूपी चुनाव में भी लिया जा सकता है.
दलित मुख्यमंत्री बनाने के मामले में कांग्रेस ने विरोधियों को पछाड़ा विरोधी सोचते रहे और कांग्रेस ने बाजी मार ली
दरअसल पंजाब की सियासत में दलित वोट बैंक को कोई भी नहीं नकार सकता. खासकर इस बार शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन में चुनाव लड़ने का फैसला लिया है और दलित डिप्टी सीएम बनाने का वादा किया है. अब तक अकाली दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली भाजपा भी दलित मुख्यमंत्री की बात कहकर पंजाब में अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुकी थी. आम आदमी पार्टी को पिछली बार 9 आरक्षित सीटों पर जीत मिली थी लेकिन फिलहाल दलित वोटबैंक को लुभाने के लिए मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री पद का ऐलान नहीं किया है. लेकिन कांग्रेस ने मौका मिलते ही दलित मुख्यमंत्री बनाकर बाजी मार ली है.
भले ही कुछ लोग इसे सिखों के बड़े तबके की नाराजगी का जोखिम मोल लेने वाला फैसला बताएं लेकिन कांग्रेस ने उसकी भरपाई एक हिंदू और एक सिख डिप्टी सीएम बनाकर करने की कोशिश की है. अब देखना ये होगा कि ये कदम कांग्रेस की मजबूती बनेगा या फिर मजबूरी में लिया फैसला भर बनकर रह जाएगा.
2022 और पंजाब का जातिगत समीकरण
कांग्रेस चरणजीत सिंह चन्नी को दलित मुख्यमंत्री के रूप में प्रचारित कर रही है. साथ ही हिंदू चेहरे के रूप में ओपी सोनी और सिख चेहरे के रूप में सुखजिंदर रंधावा को उप मुख्यमंत्री बनाया है. इस तरह पंजाब में सिख, हिंदू और दलित वोट बैंक को साधने के लिए कांग्रेस ने सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला अपनाया है. सिख मतदाता अकाली और कांग्रेस के साथ जाता रहा है, कैप्टन की छवि से सिख और हिंदू वोट भी कांग्रेस को मिलते रहे हैं. लेकिन अभी कैप्टन की नाराजगी और भविष्य की चाल भी कांग्रेस के लिए बहुत मायने रखती है.
शहरी क्षेत्रों का हिंदू मतदाता बीजेपी के साथ जाता है और इसी आधार पर अकाली-भाजपा गठबंधन के दिनों में सीटों का बंटवारा होता था. लेकिन अब बीजेपी अकेली लड़ेगी तो हिंदू वोट बैंक किसके खाते में जाएगा ? कांग्रेस ने हिंदू उप मुख्यमंत्री देकर पहली चाल चल दी है. दलित वोट बैंक बंटता रहा है एक बड़ा वर्ग कांग्रेस के साथ जाता रहा है, जो बचते हैं वो अकाली दल से लेकर बीजेपी तक में बंटते रहे हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने भी अच्छे खासे वोट बटोरे थे और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 9 सीटें हासिल की थी.
नए सीएम चरणजीत चन्नी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर दिखे सिद्धू चरणजीत चन्नी और सिद्धू के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी कांग्रेस
कैप्टन अमरिंदर सिंह नवजोत सिंह सिद्धू को मुख्यमंत्री बनाने के खिलाफ रहे हैं. उनके तेवर को देखते हुए भी मुख्यमंत्री का नया चेहरा तलाशा गया लेकिन भले सिद्धू मुख्यमंत्री ना बने हों लेकिन कांग्रेस आलाकमान का भरोसा सिद्धू पर कायम है. कांग्रेस के मुताबिक आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव में सीएम चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के चेहरे पर चुनाव लड़ेंगे. चरणजीत चन्नी ने बतौर मुख्यमंत्री अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में भले कैप्टन अमरिंदर सिंह की तारीफ की हो लेकिन अमरिंदर सिंह ना शपथ ग्रहण में दिखे और ना ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में. हालांकि सिद्धू हर तस्वीर में नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बिल्कुल बगल में बैठे नजर आए, जो आने वाले दिनों में पंजाब में कांग्रेस सरकार की चाल-ढाल को दिखा रहा था. कुछ जानकार इसे 100 फीसदी सिद्धू की जीत मान रहे हैं.
तो क्या कैप्टन बिगाड़ेंगे कांग्रेस का खेल ?
"जहां तक मेरे भविष्य की राजनीति की बात है. भविष्य की राजनीति में हमेशा ही विकल्प रहते हैं. जब वक्त आएगा उन विकल्पों का इस्तेमाल करूंगा. मैं अपने साथियों के साथ बात करूंगा और फिर भविष्य की राजनीति पर हम फैसला करेंगे."
मुख्यमंत्री पद छोड़ने से पहले ये कैप्टन अमरिंदर सिंह के आखिरी बयान के कुछ शब्द हैं. जिसमें उन्होंने अपनी भविष्य की राजनीति को लेकर एक पहेली छोड़ी है. अगर कैप्टन को वक्त रहते कांग्रेस नहीं मना पाई और इस कैप्टन की भविष्य की सियासत वाली पहेली को नहीं बूझ पाई तो क्या कांग्रेस का खेल बिगड़ सकता है ? मुख्यमंत्री पद छोड़ने से पहले कैप्टन के बयान में कांग्रेस आलाकमान को लेकर भी एक तल्खी दिखी थी. कैप्टन ने कहा था...
"पिछले कुछ महीनों में तीसरी बार विधायकों को दिल्ली बुलाया गया, मैं समझता हूं कि क्या मेरे ऊपर किसी को कोई शक है, क्या मैं सरकार नहीं चला पाया या कोई और बात हुई है लेकिन मैं अपमानित महसूस कर रहा हूं जिस तरह से ये बात हुई है. दो महीने में 3 बार विधायकों को बुलाया है इसलिये मैंने फैसला लिया कि मैं मुख्यमंत्री पद छोड़ दूंगा और जिन पर उन्हें भरोसा होगा उनको वो बना दें."
साफ समझा इस बयान में 'उन्हें' का इस्तेमाल कांग्रेस आलाकमान और 'उनको' यानि नवजोत सिंह सिद्धू के लिए कहा गया हैं. हालांकि सिद्धू की बजाय अब चरणजीत चन्नी मुख्यमंत्री बन चुके हैं. सिद्धू को लेकर कैप्टन के तेवर पहले से ही आक्रामक रहे हैं लेकिन आलाकमान को लेकर उनका इस तरह का बयान पहली बार आया है.
सिद्धू बनाम कैप्टन की जंग में फिलहाल सिद्धू आगे कैप्टन के पास विकल्प क्या है ?
1) कांग्रेस का हाथ छोड़ना - अमरिंदर सिंह ने कहा कि उनका अपमान हुआ है तो सवाल है कि क्या कैप्टन उस कांग्रेस का हाथ छोड़ देंगे जिसने उन्हें साढे नौ सा तक पंजाब का मुख्यमंत्री बनाए रखा. उनकी जुबां से भविष्य की राजनीति के विकल्प की बात सुनकर आलाकमान के भी कान खड़े जरूर हो गए होंगे. जानकार मानते हैं कि मुख्यमंत्री चुनने में माथापच्ची और सिद्धू, रंधावा, अंबिका सोनी समेत कई नामों पर चर्चा के बाद दलित चेहरे को कमान सौंपने का फैसला कैप्टन को ध्यान में रखते हुए ही किया गया है.
क्या कैप्टन बिगाड़ेंगे कांग्रेस का खेल ? कुछ जानकार मानते हैं कि सीएम पद छिनने के बाद कांग्रेस में रहना अमरिंदर सिंह की मजबूरी नहीं है. इस समय मजबूरी कांग्रेस की है कि कैसे कैप्टन को मनाया जाए और अपने साथ बनाए रखे. सिद्धू लंबे वक्त से उनके निशाने पर रहे हैं और आगे भी ऐसा ही होगा. कैप्टन की छवि पंजाब में एक अच्छे नेता और पूर्व फौजी की रही है और उनके चेहरे पर कांग्रेस को लगभग हर तबके का वोट मिला है. ऐसे में कैप्टन ने 'हाथ' छोड़ा तो कांग्रेस का खेल बिगड़ जाएगा.
2) अलग पार्टी बनाना - कैप्टन के मौजूदा तेवर, घटनाक्रम और सूबे में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए अलग पार्टी से भी इनकार नहीं किया जा सकता. जानकार मानते हैं कि अलग-अलग दलों के बागी मिलकर कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ एक मंच पर आ सकते हैं. किसान आंदोलन भी इस बार के चुनाव में अहम मुद्दा होगा, ऐसे में अमरिंदर सिंह का हर एक्शन चुनाव का रुख बदल सकता है. वैसे कांग्रेस छोड़ना और अलग पार्टी बनाने के सवाल के बीच ये ध्यान रखना होगा कि जब पंजाब में 2022 का सियासी समर चल रहा होगा उस वक्त कैप्टन अमरिंदर सिंह 80 बरस के हो चुके होंगे. उम्र के इस पड़ाव में एक नई पार्टी खड़ी करना कैप्टन अमरिंदर सिंह की जिंदगी की सबसे बड़ी चुनौती साबित होगा.
3) बीजेपी के साथ- मौजूदा सियासी घटनाक्रम के बीच कुछ लोग इस बात की संभावना भी जता रहे हैं. कैप्टन का चेहरा, फौजी इतिहास और बीजेपी का राष्ट्रवाद इस लिहाज से परफेक्ट कॉम्बिनेशन भी है. लेकिन कई सियासी जानकार इसे बहुत दूर की कौड़ी मानते हैं, क्योंकि ऐसा करने पर बीजेपी और कैप्टन दोनों को कई मोर्चों पर समझौते करने होंगे. खासकर किसान आंदोलन को देखते हुए कृषि कानूनों को लेकर कैप्टन अमरिंदर का जो स्टैंड रहा है उसे देखते हुए बीजेपी और कैप्टन साहब के बीच रिश्तेदारी फिलहाल ख्याली पुलाव ही लगता है. लेकिन कहते हैं कि इश्क और जंग की तरह सियासत में भी सब जायज़ है और देश की सियासत ने कई बार इसे साबित भी किया है.
कुल मिलाकर कैप्टन साहब का तीनों में से कोई भी कदम हो, नुकसान सीधे-सीधे कांग्रेस को ही होगा. जो 2022 में 2017 के नतीजों को रिपीट करने का ख्वाब देख रही है. खासकर दलित मुख्यमंत्री बनाकर वो इस वक्त खुद को फ्रंटफुट पर महसूस कर रही है लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह की एक चाल कांग्रेस को बहुत पीछे धकेल सकती है.
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