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स्टेरॉयड के असंतुलित इस्तेमाल से हाेता है ब्लैक फंगस!

ईटीवी भारत से बात करते हुए चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर अरुणलोक चक्रवर्ती ने कहा कि म्यूकोर्मिकोसिस (ब्लैक फंगस) इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाओं के अनियंत्रित उपयोग से बढ़ जाता है.

हैदराबाद
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Published : May 29, 2021, 4:57 AM IST

हैदराबाद: शाेध में पाया गया है कि म्यूकोर्मिकोसिस (ब्लैक फंगस) इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाओं के अनियंत्रित उपयोग से बढ़ जाता है. एक अध्ययन में पाया गया कि इसके 63 प्रतिशत रोगियों काे जरूरत से अधिक मात्रा में स्टेरॉयड दी गई थी.

चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर अरुणलोक चक्रवर्ती ने 2017 में ब्लैक फंगस पर व्यापक अध्ययन किया. वह डब्ल्यूएचओ द्वारा समर्थित एक सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल, रोगाणुरोधी प्रतिरोध निगरानी नेटवर्क के समन्वयक हैं. पेश हैं ईटीवी भारत द्वारा प्रो. चक्रवर्ती से लिए गए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के मुख्य अंश..

सवाल : भारत में ब्लैक फंगस फैलने का कारण क्या है?

जवाब : मुख्य कारण स्टेरॉयड का असंतुलित उपयोग है. हमने देश के 16 केंद्रों में 350, कोविड-19 रोगियों का अध्ययन किया है. हमने इन रोगियों में स्टेरॉयड के जरूरत से ज्यादा खुराक पाई है. जैसे यदि उचित खुराक प्रति दिन 6 मिलीग्राम थी, तो उन्हें 30 मिलीग्राम प्रेस्क्राइब किया गया था.

हल्के लक्षणों वाले रोगियों को भी स्टेरॉयड प्रेस्क्राइब किए गए थे. दूसरा कारण हाई ब्लड शुगर है. ऐसे कोविड-19 वाले कई मरीजाें काे मधुमेह भी था.

लगभग 25 प्रतिशत रोगियों में ब्लड शुगर 300 या 400 तक बढ़ा हुआ था. स्टेरॉयड के ओवरडोज से ब्लड शुगर 800 तक पहुंच गया. वायरल अटैक के साथ स्टेरॉयड के इस्तेमाल से इम्यून सिस्टम कमजोर हो गया है. इससे ब्लैक फंगस के संक्रमण में वृद्धि हुई है. इस बात का कोई सबूत नहीं है कि ब्लैक फंगस ऑक्सीजन कंसंटेटर्स या ह्यूमिडिफायर से शुरू हुआ था.

सवाल : क्या यह महामारी केवल भारत में ही है?

जवाब :देश में ब्लैक फंगस के मामलाें का पाया जाना कोई असामान्य नहीं है. हालांकि सामान्य तौर पर ये संक्रमण किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में 70 गुना अधिक है. महामारी से पहले हमारे पास 1,00,000 मामलों में से 14 ब्लैक फंगस संक्रमण थे. जनवरी 2016 से सितंबर 2017 के बीच हमने देश भर के 12 केंद्रों में 465 मरीजों का अध्ययन किया है. इनमें से 315 लोग यानी 67.7 फीसदी मरीज पर्यावरण से इस बीमारी की चपेट में आए.

32 प्रतिशत में फेफड़ों में संक्रमण के कारण यह विकसित हुआ. उनमें से अधिकांश (73.5 प्रतिशत) मधुमेह रोगी या गंभीर सह-रुग्णता वाले व्यक्ति थे. कुल रोगियों में से 242 (52 प्रतिशत) की 90 दिनों के भीतर मृत्यु हो गई.

सवाल : ब्लैक फंगस संक्रमण के लक्षण क्या हैं? मामलों में गिरावट की संभावना कब है?

जवाब :एक तरफा चेहरे की सूजन, सिरदर्द, नाक या साइनस, नाक या मुंह के ऊपरी हिस्से पर काले घाव, नाक से काला या भूरा स्राव, दांतों का ढीला होना इसके प्राथमिक लक्षण हैं. दोनों मेडिकल और सर्जिकल चिकित्सा की जरूरत है.

2017 के अध्ययन के दौरान 82 प्रतिशत रोगियों को एम्फोटेरिसिन बी दिया गया. अध्ययन के तहत कुल 465 रोगियों में से 107 को सर्जरी करानी पड़ी. जब तक हम मधुमेह और स्टेरॉयड के उपयोग को नियंत्रित करने में विफल रहते हैं, तब तक ब्लैक फंगस का प्रकोप जारी रहेगा.

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वर्तमान में, हमारे पास संक्रमण के इलाज के लिए बहुत सी वैकल्पिक दवाएं हैं चूंकि चिकित्सा समुदाय को पहले ही इसकी गंभीरता का एहसास हो गया है, हम एक या दो महीने में मामलों में गिरावट देख सकते हैं.

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