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गंगा घाट है, लाशें हैं और दाह संस्कार की अनुमति भी, नहीं है तो सिर्फ प्रशासन की मंशा

बिहार के बक्सर जिले के महादेवा घाट और गाजीपुर के कुछ इलाकों में गंगा में शव उतराते मिले थे. इस मामले को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने पड़ताल की. इस मामले में स्थानीय लोगों ने प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया है. लोगों ने कहा कि श्मशान घाट पर शवों को जलाने की कोई व्यवस्था नहीं है.

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Published : May 11, 2021, 6:30 PM IST

गाजीपुर : कोरोना काल में गंगा नदी में लावारिस लाशों के मिलने का सिलसिला लगातार जारी है. जिससे जिला प्रशासन समेत लोगों में हड़कम्प की स्थिति है. इस मामले को लेकर ईटीवी भारत टीम ने पड़ताल की. पड़ताल में जो खुलासा हुआ वह बेहद चौंकाने और डराने वाला है. स्थानीय लोगों की मानें तो प्रशासन की बेपरवाही की सजा स्थानीय लोगों को भुगतनी पड़ रही है.

गाजीपुर के विभिन्न इलाकों में श्मशान घाट तो हैं, लेकिन वहां समुचित व्यवस्था नहीं है. जिससे लोग लाशों को जलाने की बजाय उसे प्रवाह कर रहे है. जो कोरोना काल मे बेहद खतरनाक है और प्रशासनिक इंतजामों की पोल खोलता है.

बारा गांव के पास मिली लाशें

दरअसल, बिहार बॉर्डर से सटे गाजीपुर के बारा इलाके में गंगा नदी में करीब 40-50 की संख्या में शव उतराते मिले थे. जिसके बाद हर तरफ हड़कंप मच गया. सूचना के बाद प्रशासनिक अमला मौके पर पहुंचा और जांच पड़ताल की. मामले की जांच के लिए गाजीपुर प्रशासन ने दो टीमों का गठन कर जांच के निर्देश दिए हैं, इन सबके बीच ये सवाल बड़ा है कि आखिर ये शव कहां से आए.

पड़ताल में चौंकाने वाला खुलासा

ईटीवी भारत की टीम इस मामले में पड़ताल के लिए बारा गांव पहुंची. इस दौरान जो तथ्य निकलकर सामने आए, उन्होंने न केवल प्रशासनिक इंतजामों की पोल खोलकर रख दी बल्कि कोरोना काल में खतरा भी बढ़ा दिया है. बारा गांव निवासी मनोज यादव ने बताया कि गंगा नदी में मिली लाशों के पीछे सबसे बड़ी वजह प्रशासनिक लापरवाही है.

क्योंकि घाटों पर लाशों को जलाने की अनुमति दे दी गई है लेकिन वहां कोई व्यवस्था नहीं है. वहां पर न ही लकड़ी की व्यवस्था है और न ही किसी अन्य तरह की सुविधा उपलब्ध है. जिससे लोग मजबूरन परंपरा के नाम शवों को गंगा में प्रवाहित कर रहे हैं. लोगों की मानें तो लोग शवों को लेकर घाट तक तो आ जाते है, लेकिन यहां लकड़ी न होने के चलते लोग प्रवाह कर चले जाते है.

ईटीवी भारत टीम की पड़ताल

श्मशान घाट पर नहीं है कोई व्यवस्था

बारा गांव निवासी विनय कुमार ने बताया कोरोना काल चल रहा है, लेकिन इस दौरान सरकार किसी भी तरीके का इंतजाम नहीं कर पा रही है. जिससे कोरोना मरीजों की मौत की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है. यही नहीं कोरोना से मौत के बाद उनकी बॉडी को डिस्पोज करने की व्यवस्था भी नहीं है. उन्होंने बताया कि 10 साल पहले यहां श्मशान घाट बनाए जाने के लिए फंड आया था. लेकिन वहां आज तक श्मशान घाट का निर्माण नहीं हो सका है.

लकड़ी की कीमतों में भारी इजाफा

यहीं नहीं उन्होंने बताया कि कोरोना के कारण मौतों में बढ़ोतरी हुई है, जिसके कारण लकड़ी की कीमतों में भी भारी इजाफा देखने को मिला है. लकड़ी की कीमतें 3 गुना तक बढ़ गई हैं. जिससे गरीब तबके के लोगों को समस्या आ रही है. विनय कुमार ने बताया कि यहां शासन-प्रशासन की तरफ इसको लेकर किसी तरह के इंतजाम नहीं किये जा रहे हैं. जिसके चलते लोगों को शवों का अंतिम संस्कार करने की बजाय गंगा में प्रवाहित करना पड़ता है.

मौत की संख्या में भारी इजाफा

बारा निवासी नियाज ने बताया कि उनके गांव में रोजाना तीन से चार लोगों की मौत हो रही है. जो दुर्व्यवस्था के चलते जलाई नहीं जा पा रही हैं. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह लोगों की गरीबी है, लोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि वह लाशों को जला सकें. मजबूरन उन्हें शवों को गंगा में प्रवाहित करना पड़ता है. इसके लिए सरकार या जिला प्रशासन किसी भी तरह का इंतजाम नहीं कर रहा है.

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कोरोना काल में खतरनाक है शवों का मिलना
भले ही लोग परंपरा और बदइंतजामी के नाम पर शवों का अंतिम संस्कार करने की बजाय गंगा में प्रवाहित कर रहे है, लेकिन गंगा नदी में बड़ी संख्या में उतराती मिली लाशों से कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ गया है.

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