भारत में कोरोना की दूसरी लहर क्यों गंभीर होती जा रही है ? इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है ? क्या प्रतिदिन चार लाख तक के आंकड़े भी आ सकते हैं ?
यह सही है कि पिछले साल के मुकाबले इस बार मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. इसकी दो वजहें हो सकती हैं. पहला- पिछले साल जैसे ही संक्रमण की दर घटने लगी, हमलोग पूरी तरह से लापरवाह हो गए. और दूसरी वजह है वायरस के अलग-अलग म्यूटेंट रूप. म्यूटेंट वायरस ज्यादा खतरनाक हैं. अब देखिए, अचानक ही पूरी आबादी का टीकाकरण नहीं कर सकते हैं, लिहाजा हमें कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करना ही होगा. अच्छी गुणवत्ता के मास्क का प्रयोग, सामाजिक दूरी बनाए रखें और घरों या बंद जगहों पर रहें तो उसका वेंटिलेशन अच्छा होना चाहिए. क्योंकि संक्रमित लोगों की संख्या अधिक है, इसलिए छोटा प्रतिशत भी बड़ा आंकड़ा दिखता है. और हमारे पास इससे निपटने के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य ढांचा उपलब्ध नहीं है. फिर भी, हम हाथ-पर-हाथ धरकर बैठे नहीं रह सकते हैं. मामले बढ़ते ही जाएंगे. सुखद स्थिति ये है कि अब राज्य सरकारों ने प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए हैं. इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि हर दिन चार लाख का आंकड़ा न पहुंच पाए.
हमने शुरू में टीके के उत्पादन पर खूब वाहवाही बटोरी. लेकिन जब जरूरत पड़ी, तो उसकी किल्लत हो गई, क्यों ?
इसके तीन कारण हैं. टीके के उत्पादन के लिए लगने वाले कच्चे पदार्थ भारत में उपलब्ध नहीं हैं. लिहाजा, दुनिया में जहां भी टीके का उत्पादन किया जा रहा है, सबको कच्चा पदार्थ चाहिए और उनका सोर्स सीमित है. दूसरी वजह है टीके का उत्पादन करने वाली कंपनियों ने दावा किया था कि वे पर्याप्त संख्या में उपलब्ध करवा पाएंगे, लेकिन कई वजहों से वे पूरा नहीं कर सके. तीसरा कारण है, टीके को कितनी संख्या में कहां भेजें. निर्यात भी करना है और देश के अंदर भी उपलब्ध करवाना है. अगर सरकार टुकड़ों में ऑर्डर देती है, उसे कम समय में उत्पादन करने के लिए कहा जाता है और वह भी कम कीमत पर, तो कंपनियों के सामने दिक्कतें आएंगी.
आगे जाकर वायरस किस तरह का व्यवहार कर पाएगा, क्या हमारे पास कोई अध्ययन रिपोर्ट है ?
पिछले एक साल का हमारे पास अनुभव है. वायरस किस तरह का व्यवहार कर रहा है, इसकी कुछ हद तक जानकारी है. थोड़ा बहुत अनुमान भी लगाया जा सकता है. अन्य वायरसों की तरह यह भी मल्टीप्लाय हो रहा है. परिणामस्वरूप संक्रमण फैलने की दर अधिक होगी. अगर टीके का व्यापक प्रयोग किया जाता है, तो संभव है कि इम्युन सिस्टम से बच जाएंगे. सौभाग्य से, क्योंकि वायरस का स्पाइक प्रोटीन संक्रमण के लिए आवश्यक है और स्पाइक प्रोटीन कितना बदल सकता है इसकी एक सीमा है, यह संभव है कि वायरस में हम जिस भिन्नता को देखने की संभावना रखते हैं वह अगले दो वर्षों में दिखाई दे. रैंडम म्यूटेशन कुछ उपभेदों को गंभीर बीमारी के लिए सक्षम बना सकते हैं, इन म्यूटेशनों को भी अच्छी तरह से फैलने वाले वायरस के साथ होने की आवश्यकता होगी, और चूंकि वायरस जो अपने मेजबानों को मारते हैं वे आसानी से मल्टीप्लाय नहीं कर सकते हैं. आगे चलकर यह गंभीर बीमारी नहीं होगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है.
दूसरी लहर पर रोक लगाने के लिए लॉकडाउन को आप किस रूप में देखते हैं. क्या आर्थिक और राजनीतिक कारणों की वजह से वैज्ञानिक अध्ययन और निर्णय प्रभावित होंगे ? क्या सरकार ठीक ढंग से कदम उठा रही है ?
हमें लॉकडाउन से हटकर दूसरे विकल्पों पर विचार करना होगा. कौन से हमारे क्रियाकलाप हैं, जिनकी वजह से ये तेजी से फैलते हैं. क्या हम उसका वर्गीकरण कर सकते हैं. चुनावी रैली, सिनेमा थियेटर, स्कूल, कॉलेज या बाजार. सरकार के सामने सही आंकड़े होने चाहिए. लॉकडाउन तो काफी कड़ा कदम है. हम सामाजिक और आर्थिक क्रियाकलाप को प्रभावित किए बिना भी बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं.
भारत में फैले न्यू वैरिएंट के बारे में कुछ बताएं ?