शिमला : हिमाचल प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष (PCC Chief) कुलदीप सिंह राठौर (kuldeep singh rathore) पार्टी संगठन के पुराने खिलाड़ी हैं. वे जाने-माने वकील हैं और 19 साल की उम्र से ही कांग्रेस से जुड़े हुए हैं. पहले एनएसयूआई से और फिर बाद में कांग्रेस से जुड़े. पिछले एक दशक से कांग्रेस के महासचिव रहे कुलदीप पिछले ढाई साल से हिमाचल कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. चुनावी राजनीति में जद्दोजहद कर अपनी जगह बनाने में लगे हैं. फिलहाल, अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है, लेकिन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए कमर कसे बैठे हैं. अपने से वरिष्ठ नेताओं को साधकर चलने की कोशिश कर रहे राठौर के सामने कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी से निपटना सबसे बड़ी चुनौती है. भाजपा के आगे बिना वीरभद्र सिंह के वह कांग्रेस की प्रदेश राजनीति को किस तरह आगे ले जा पाएंगे, ऐसे तमाम ज्वलंत प्रश्न सहित कई ताजातरीन मुद्दों पर कुलदीप सिंह ने ईटीवी भारत के रीजनल एडिटर सचिन शर्मा से बात की.
सवाल : ढाई साल पहले जब आपको पीसीसी चीफ की जिम्मेदारी मिली, हिमाचल में कांग्रेस कठिन समय से गुजर रही थी. आपकी पहली परीक्षा लोकसभा चुनाव में हुई, लेकिन चार सीटों वाले प्रदेश में कांग्रेस की झोली खाली ही रह गई! अब अगले साल चुनाव हैं, ऐसे में क्या तैयारी है आपकी ?
जवाब : कुलदीप सिंह राठौर ने कहा कि जब मुझे हिमाचल कांग्रेस की जिम्मेदारी सौंपी गई उस समय स्थितियां बहुत प्रतिकूल थीं. संगठन में बहुत कुछ अच्छा नहीं था. इसलिए पार्टी आलाकमान ने प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को संगठित करने की जिम्मेदारी दी. जब मुझे पार्टी को संभालने की जिम्मेदारी दी गई तब लोकसभा के चुनाव दहलीज पर थे, इसलिए पार्टी के पुनर्गठन करने के लिए ज्यादा समय नहीं मिल पाया. लोकसभा चुनाव में पुरानी टीम के सहारे ही चलना पड़ा. उस समय मोदी लहर थी. चुनाव मुद्दों पर आधारित नहीं था, छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर उस समय चुनाव लड़ा गया. देश के दूसरे प्रदेशों की तरह हिमाचल में भी कांग्रेस की हार हुई. कुलदीप राठौर ने कहा कि उसके बाद मैंने संगठन को एकजुट करने का बीड़ा उठाया और जो विरोधाभास था, उसे दूर करने का प्रयास किया. इस मुश्किल हालात में प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ और मजबूत चेहरा रहे वीरभद्र सिंह का समर्थन हासिल किया. इसके साथ ही पार्टी के तमाम नेताओं को भी एक मंच पर लाने का प्रयास किया. हाल ही में पार्टी चिह्न पर हुए नगर निगम चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया.
सवाल : छह बार के मुख्यमंत्री और हिमाचल कांग्रेस के स्तंभ वीरभद्र सिंह के देहावसान के बाद हिमाचल कांग्रेस में एक बड़ा शून्य पैदा हो गया है. वीरभद्र सिंह का चेहरा किसी भी चुनाव में जीत की गारंटी माना जाता था. अब कांग्रेस किसकी अगुवाई में चुनाव मैदान में उतरेगी ?
जवाब : राठौर ने कहा कि वीरभद्र सिंह का मुकाबला कोई नहीं कर सकता क्योंकि राजनीति में उनका अपना कद रहा है. वीरभद्र सिंह के कामों की इबारत हर शहर में देखी जा सकती है. हमें एकजुट होकर चुनाव लड़ना होगा और हमें संगठित होकर एक कलेक्टिव लीडरशीप में चुनाव लड़ना होगा. साथ ही संगठन को भी मजबूत करना होगा. मेरा प्रयास भी है कि कांग्रेस जमीनी स्तर तक मजबूत हो इसलिए मैंने व्यापक स्तर पर प्रदेश का दौरा किया है. अभी-अभी मंडी जिले का दौरा करके आया हूं. जो जनसमूह कांग्रेस की रैली में उमड़ रहा है, उसे देख कर ऐसे लगता है कि संगठन मजबूत हुआ है और हिमाचल की जनता बदलाव चाहती है.
सवाल : हाल ही में मंडी जिले में आपने दौरे किए. सरकाघाट और जोगिंद्रनगर में कांग्रेस नेता आपस में ही भिड़ गए. व्यथित होकर आपको कहना पड़ा कि यही हाल रहा तो चुनाव कैसे जीतेंगे? आप वकालत के पेशे से हैं, ऐसे गुटबाजी वाले माहौल में कांग्रेस को चुनाव जिताने के लिए आपके पास क्या दलील है ?
जवाब : जब मैंने दौरे की शुरुआत की तो सरकाघाट में ये घटना हुई. अकसर प्रदेश अध्यक्ष जब आते हैं तो टिकट की होड़ में जो लोग रहते हैं उनकी कोशिश होती है कि प्रदेशाध्यक्ष के सामने अपनी ताकत दिखाएं. मैंने इस बात का बुरा नहीं माना. सभी ने अपने-अपने समर्थक नेताओं के नारे लगाए. बीजेपी का नारा नहीं लगा. हालांकि, मैंने इस दौरान कहा कि इस तरह से टुकड़ों में बंटकर पार्टी नहीं चलने वाली है. हमें मिलजुलकर प्रयास करना होगा. दरअसल, सरकराघाट में पार्टी काफी समय से हार रही है, इसलिए मैंने नेताओं और कार्यकर्ताओं सख्त हिदायत भी दी. इसका असर ये हुआ कि बाकी जितने भी विधानसभा क्षेत्र हैं. वहां इस तरह की घटना नहीं हुई. मंडी जिले के जितने भी बड़े नेता हैं जैसे कौल सिंह ठाकुर, रंगीलाराम, पिछला लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी आश्रय शर्मा इन सबको एक मंच पर बुलाया. इससे पूरे प्रदेश में एकता का संदेश गया है. उसके बाद मुख्यमंत्री के चुनाव क्षेत्र सिराज में सबसे ज्यादा लोगों ने स्वागत किया. कुलदीप राठौर ने कहा कि मुख्यमंत्री के क्षेत्र में भी विकास नहीं हुआ है.
सवाल: आपके पास चुनावी राजनीति का अनुभव नहीं है. महासचिव के तौर पर आप लंबे समय तक संगठन से जुड़े रहे हैं. ऐसे में क्या आपको चुनावी प्रबंधन में दिक्कत नहीं आएगी ?
जवाब : इतने साल से चुनाव नहीं लड़ने के पीछे अहम बात ये है कि मेरे क्षेत्र से विद्या स्टोक्स लड़ीं और उनसे मेरे अच्छे संबंध रहे हैं. इसलिए उनके खिलाफ कभी मैंने टिकट की मांग नहीं की. मैंने हमेशा संगठन को मजबूती प्रदान करने के लिए काम किया. चुनाव के दौरान पार्टी कार्यालय में बैठकर रणनीति मैं ही बनाता रहा. प्रदेश में 4 अध्यक्षों के साथ मैंने काम किया है. जितने चुनाव हुए उसमें जनसभाएं और रैलियों की रणनीति मैं ही तैयार करता रहा. इसका ये फायदा ये हुआ कि हिमाचल के सभी विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को मैं उनके नाम से जानता हूं.
सवाल: भाजपा ने मिशन रिपीट का नारा दिया है और कांग्रेस मिशन डिलीट की बात करती है. संगठन के तौर पर भाजपा हमेशा चुनावी मोड में रहती है. भाजपा के मिशन रिपीट को ध्वस्त करने के लिए आपके पास क्या प्लान है ?
जवाब:भारतीय जनता पार्टी की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ कांग्रेस पार्टी लगातार सड़कों पर उतरती रही है और बीजेपी पर हमला करती रही है. महंगाई, बेरोजगारी चरम सीमा पर है, विकास बिल्कुल ठप पड़ा है. सरकार हर मोर्चे पर असफल साबित हो रही है. इसके साथ ही कुलदीप राठौर ने कहा कि मुख्यमंत्री का प्रशासन पर नियंत्रण नहीं है. ब्यूरोक्रेसी को सीएम लगातार ताश का पत्तों की तरह फेंट रहे हैं. कोरोना के समय बीजेपी सरकार लगातार असफल साबित हुई है. लोगों को उम्मीद थी कि सरकार मदद करेगी, लेकिन सरकार ने इस मुश्किल घड़ी में जनता को निराश किया है. इस सरकार में प्रदेश के ऊपर लगातार कर्ज का बोझ बढ़ता ही जा रहा है.