नई दिल्ली : फिल्म निर्माण में डायरेक्शन, एक्टिंग, सिनेमैटोग्राफी व एडिटिंग जैसे लफ्ज तो आपने सुने ही होंगे, लेकिन फिल्म रेस्टोरेशन या फिल्म प्रिजर्वेशन (Film Preservation or Film Restoration) के बारे में आप कितना जानते हैं? जी हां, फिल्म रेस्टोरेशन यानी पुरानी फिल्म की डैमेज्ड प्रिंट को फिर से सुधार कर ठीक वैसा ही बना देना, जैसी वो पहले थी. भारत में 1913 में भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फाल्के ने राजा हरिशचन्द्र फिल्म बनाई थी. आज अनुमान है कि अलग-अलग भाषाओं में भारत में 900 से ज्यादा फिल्म बन रही हैं. सिनेमा के रुपहले पर्दे पर आने से पहले फिल्म निर्माण के बाद भी कई तरह की चुनौतियों से निर्माता और निर्देशकों को जूझना पड़ता है. जिसमें फिल्म दर्शकों के लिए थियेटर में लाने से पहले निर्माता व निर्देशक अपने-अपने दौर में कई समस्याओं से जूझते रहे हैं. इसीलिए कई फिल्म विश्वस्तरीय स्टोरी लाइन, पिक्चराइजेशन, एक्टिंग और एडिटिंग के बावजूद डिब्बा बंद हो जाती हैं. कुछ सिल्वर स्क्रीन पर आ भी जाएं तो मार्केटिंग, प्रमोशन की रेस में पिछड़ जाती हैं. हिन्दुस्तानी सिनेमा में ऐसी कई यादगार फिल्में हैं, जो वैश्विक स्तर पर पहुंचतीं तो यकीनन देश का मान बढ़ातीं. आपको जानकर हैरानी होगी कि आज ऐसी कई फिल्में हैं. जो अपने आप में एतिहासिक हैं, लेकिन उनके प्रिंट कहीं कबाड़ में पड़े हैं. किसी के प्रिंट से सिल्वर कोटिंग को निकालकर उन्हें कचरा ही मान लिया गया. इस बार फ्रांस में हो रहे कांस फिल्म फेस्टिवल में भारत के खाते में एक बड़ी उपलब्धि जुड़ रही है.
प्रसिद्ध मलयाली फिल्ममेकर जी.अरविन्द गोविंदन की 1978 में आई फिल्म 'थंप' ( Malayalam Film Thump) की डैमेज्ड प्रिंट को सालों की मेहनत के बाद फिर से उसी रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है. जैसा कि वो अपने निर्माण के वक्त में थी. प्रसिद्ध फिल्ममेकर और क्रिएटिव डायरेक्टर शिवेन्द्र सिंह डूंगरपुर ( shivendra singh dungarpur) इस काम को कई सालों से शिद्दत से कर रहे हैं. शिवेन्द्र सिंह डूंगरपुर देश के ख्यातनाम फिल्म मेकर हैं. उनकी डॉक्यूमेंट्री सेल्यूलाइट मैन को 2012 में बेस्ट बायोग्राफिकल बेस्ट हिस्टोरिक रिकंस्ट्रक्शन कैटेगरी में राष्ट्रीय पुरस्कार (National Film Award) मिल चुका है. इन दिनों शिवेन्द्र मुंबई में फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन के नाम से संस्था चला रहे हैं. 2010, 2012 में भी उन्होंने 1948 में बनी भारतीय फिल्म कल्पना को इसी तरह पुन: संरक्षित किया था . ये फिल्म भारत को मिली आजादी के बाद उस वक्त की गई कल्पनाओं पर आधारित थी. जिसमें दिखाया गया था कि आने वाले वक्त में भारत कैसा होगा. हेरिटेज फाउंडेशन संस्था (film heritage foundation) के ब्रांड एम्बेस्डर अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachhan) हैं. और जया बच्चन (Jaya Bachchan) भी इस काम में उनके साथ जुड़ी हुई हैं. अपनी रेस्टोर्ड फिल्म थंप के कांस में ग्लोबल प्रीमियर होने से शिवेन्द्र खासा उत्साहित हैं.
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने ट्वीट करके शिवेन्द्र सिंह डूंगरपुर को उनकी इस उपलब्धि के लिए बधाई दी है. उन्होंने थंप फिल्म के चयन पर खुशी ज़ाहिर करते हुए अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा -'यह सुनकर मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं.' उन्होंने कहा कि यह गर्व का विषय है कि फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन ने ‘थंप‘ फिल्म के रेस्टोरेशन के लिए समर्पित होकर काम किया और कांस फिल्म फेस्टिवल के लिए इसका चयन कराने में सफलता हासिल की. अमिताभ बच्चन ने विश्वास व्यक्त किया कि भारतीय फिल्म हेरिटेज को बचाने की यात्रा में यह कदम मील का पत्थर साबित होगा. उन्होंने कहा कि ‘थंप’ फिल्म को कांस फिल्म फेस्टिवल में आमंत्रित किया जाना गौरवपूर्ण है.
शिवेन्द्र ने ईटीवी भारत से हुई एक्सक्लूसिव चर्चा में बताया कि देश में फिल्म सरंक्षण एवं फिल्म बहाली के क्षेत्र में आज से कुछ वर्ष पूर्व तक सिर्फ एक नाम था पी.के. नायर का, जिन्होंने राष्ट्रीय फिल्म आर्काइव संस्थान, पुणे के माध्यम से कई फिल्मों का सरंक्षण किया था. उन्हीं की विरासत को वो आगे बढ़ा रहे हैं. अपनी इस साल 17 से 21 मई तक फ़्रांस में हो रहे 75वें वार्षिक कांस फिल्म फेस्टिवल के प्रीमियर शो में यह प्रदर्शित होगी. मलयालम फिल्म के सर्वकालीन महान फिल्मकार जी. अरविंदन गोविंदन की इस फिल्म थंप (1978) का रेस्टोरेशन फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन, वर्ल्ड सिनेमा फाउंडेशन एवं सिनेटिका डी. बोलोनिया संस्थान ने एक साथ मिलकर किया है. इसकी कहानी शुरू होती है उस गांव से जहां पहली बार सर्कस लगता है. गांव वालों और सर्कस के कलाकारों के बीच किस तरह संपर्क होता है. किरदार जुड़ते रहते हैं.