बरेली :कोरोना काल में लोगों ने अपनों को खो दिया, जिनका ख्याल आते ही मन भारी हो जाता है. पलायन करते मजदूरों के चेहरे अभी वैसे ही याद हैं. उन्हीं हालातों और उस दौर को उत्तर प्रदेश के बरेली के रहने वाले निर्मल सक्सेना ने अपनी किताब वुहान डायरी में बयां किया है. वह कहते हैं कि उनकी कहानी काल्पनिक है, लेकिन कोरोना की उत्पत्ति को लेकर एक हजार सवालों के नौ सौ निन्यानबे जवाब उसमें शामिल हैं.
निर्मल सक्सेना कहते हैं कि कोरोना के दौर में लागू किए गए लॉकडाउन में लोगों का जीवन जैसे थम सा गया था. बाहर रहने वाले मजदूर घर लौटने लगे थे. जब तक लोगों के पास अपनी जमा पूंजि रही तब तक वह अपनी रोजीरोटी की व्यवस्था करते रहे. उसके बाद सीधे अपने घर को पैदल ही पलायन को मजबूर हो गए.
काल्पनिकता के कथानक पर कोरोना की सच्चाई कोई साधन घर वापसी का नहीं था, सिर्फ पैदल ही घर जाने लगे. कुछ लोग इनमें ऐसे थे जिन्हें अपना घर भी नासीब नहीं हुआ, क्योंकि कोरोना वायरस अपने पैर पसार चुका था. स्थिति यह थी कि आदमी आदमी से ही डरने लगा.
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लेखक निर्मल सक्सेना ने बताया कि उन्होंने वुहान डायरी में कोरोना वायरस का एक विस्तारित काल्पनिक चित्र उकेरा है. उनकी किताब में चीन से कैसे निकला कोरोना वायरस और लोगों को किस तरह प्रभावित किया पर, इस बारे में लिखा है.
लेखक और शायर निर्मल सक्सेना ने बताया कि वुहान डायरी, एक उपन्यास के तौर पर लिखी गई एक काल्पनिक कथा है, लेकिन उनका दावा है कि इस उपन्यास में जो भी है वह सौ प्रतिशत सही है.
बता दें कि कोरोना के दौर में उत्तर प्रदेश शासन और प्रशासन ने बहुत ही तत्परता के साथ लोगों की मदद करनी शुरू की थीं. प्रवासियों के लिए निजी बस सेवाएं, सूखा राशन, भोजन, दवाई की उपलब्धता, ऑक्सीजन की व्यवस्था, आदि बड़े पैमाने पर शुरू किया, जो आज भी अनवरत जारी है. वहीं, गौर करें तो सरकार की कोरोना के खिलाफ रणनीति और प्रसाशन की तत्परता से भारत ने सौ करोड़ के वैक्सीनेशन को भी छू लिया.
बता दें कि 30 अप्रैल को यूपी में सर्वाधिक एक्टिव केस तीन लाख 10 हजार 783 रहे. अब यह संख्या 85 हो गई. वहीं रिकवरी रेट मार्च में जहां 98.2 फीसदी थी, जो अप्रैल में घटकर 76 फीसद तक पहुंच गई थी. वर्तमान में फिर रिकवरी रेट 98.7 फीसद हो गई है.